Uttarakhand News: उत्तरकाशी की त्रासदी दे रही भविष्य में खतरे के संकेत, इन वजहों से पहाड़ हो रहे कमजोर!
Uttarkashi Cloud Brust: भू वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में लैंड स्लाइड, ग्लेशियरों का पिघलना और जल स्रोतों का समय से पहले सूखना पहाड़ों पर हो रहे भारी दबाव का ही परिणाम हैं

उत्तरकाशी के धराली में आई त्रासदी कई खतरनाक संदेश लेकर आई है. बीते दो दशकों में जिस तरह से उत्तराखंड में विकास परियोजनाओं के नाम पर तेजी से निर्माण कार्य हो रहा है और पर्यटकों की संख्या में तेजी आई है उससे पर्वतीय इलाकों में दबाव बड़ रहा है. अगर ऐसा ही रहा तो भविष्य में प्रकृति का रौद्र रूप संभलने का मौका नहीं देगा.
भू वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में लैंड स्लाइड, ग्लेशियरों का पिघलना और जल स्रोतों का समय से पहले सूखना पहाड़ों पर हो रहे भारी दबाव का ही परिणाम हैं. जिसकी वजह से प्रकृति असंतुलन की स्थितियां पैदा हो रही हैं. इसका असर सिर्फ पहाड़ों तक ही नहीं गंगा और यमुना के मैदानी इलाकों तक देखने को मिल रहा है.
जंगलों की कटाई से कमजोर हो रहे पहाड़
उत्तराखंड वन विभाग और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2005 से 2025 के बीत यहां के 1.85 लाख हेक्टेयर वन भूमि विकास कार्यों के लिए डायवर्ट की गई है. जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कुल क्षेत्रफल से भी बड़ा हिस्सा है.
उत्तराखंड में चारधाम परियोजना, सीमा तक सड़क निर्माण, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, ट्रांसमिशन लाइनें और खनन जैसी वजहों से वनों की कटाई की जा रही है. आकंड़ों के मुताबिक इन राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्र क़रीब 53,483 वर्ग किमी हैं. जिसमे से 24,305 वर्ग किमी क्षेत्रफल में वन हैं. ऐसे में पिछले 20 सालों में 1,850 वर्ग किमी जंगलों की कटाई का मतलब हैं कि 7.6 फीसद हिस्से के जंगल काट दिए गए.
विकास परियोजनाओं के नाम पर कटाई
ये आंकड़ा अपने आप में बहुत बड़ा है. ऐसे में विकास के नाम पर नीति निर्माण करने वालों को एक बार फिर से सोचने की जरूरत है. जंगलों के कटने से पहाड़ों की पकड़ कमजोर हो जाती है. यही वजह हैं कि बारिश के दिनों में अक्सर भूस्खलन की घटनाएं देखने को मिलती है.
पर्यटकों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी
पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में जिस तरह से उत्तराखंड में पर्यटन का विस्तार हुआ है उससे भी काफी नुक़सान पहुंचा है. पिछले कुछ सालों में पर्यटन तीन गुना बढ़कर पांच करोड़ की संख्या को पार गया है. जिसकी वजह से बड़ी संख्या में पहाड़ों की आवाजाही हो रही है. जिससे पहाड़ों पर सूक्ष्म दरारें हो रही है.
हरिद्वार, ऋषिकेश, मसूरी, चारधाम यात्रा के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक हर साल यहां पहुँच रहे हैं. जिससे यहां के प्राकृतिक संतुलन पर सीधा असर पड़ रहा है. जिससे आने वाले दिनों में खतरा और बढ़ सकता है. सरकार को इस ओर भी ध्यान देने की ज़रूरत है.
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