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उत्तराखंड: सभी 13 जिलों में बनेंगे कंटीन्यूअस एम्बियंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम

पीएम 2.5 वायुप्रदूषण का एक बेहद खतरनाक घटक है. यह बायोमास मटेरियल के जलने से उत्पन्न होता है और इसके महीन कण फेफड़ों तक पहुंचकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं.

Uttarakhand News: उत्तराखंड जल्द ही देश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जहां के सभी 13 जिलों में कंटीन्यूअस एम्बियंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम (CAAQMS) स्थापित किए जाएंगे. इन आधुनिक स्टेशनों के माध्यम से वायु प्रदूषण से जुड़ी महत्वपूर्ण गैसों जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और वोलाटाईल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (VOC) का रियल टाइम डाटा मिलेगा. इससे न केवल प्रदूषण पर नजर रखने में मदद मिलेगी बल्कि समय रहते आवश्यक कदम भी उठाए जा सकेंगे.

उत्तराखंड पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के सदस्य सचिव डॉ पराग मधुकर धकाते ने एबीपी लाइव से खास बातचीत में बताया कि यह कदम उत्तराखंड के संवेदनशील पर्यावरण को बचाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है. उन्होंने कहा कि लगातार मॉनिटरिंग से वायु प्रदूषण के स्तर को तुरंत समझा जा सकेगा और इसके अनुसार सरकार अपनी रणनीतियों में समय-समय पर बदलाव कर सकेगी.

वायु गुणवत्ता बनाए रखना आवश्यक
उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना बेहद संवेदनशील है. यहां कई प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है और देश के बड़े नेशनल पार्क जैसे जिम कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क स्थित हैं. हजारों प्रकार के वन्यजीवों और जैव विविधता से भरपूर इस राज्य में वायु गुणवत्ता बनाए रखना नितांत आवश्यक है.

हाल के वर्षों में देखा गया है कि जंगलों में लगने वाली आग से न केवल भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है बल्कि यह प्रदेश के ग्लेशियरों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है. इन स्टेशनों के जरिए जंगलों में आग लगने के बाद वायुमंडल में होने वाले प्रदूषण का विश्लेषण किया जा सकेगा. इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि आग के दौरान किस प्रकार की और कितनी मात्रा में गैस उत्सर्जित हो रही है.

सख्त मानक तय किए
पीएम 2.5 वायुप्रदूषण का एक बेहद खतरनाक घटक है. यह बायोमास मटेरियल के जलने से उत्पन्न होता है और इसके महीन कण फेफड़ों तक पहुंचकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं. भारत सरकार ने इसके लिए सख्त मानक तय किए हैं. उत्तराखंड में इन मानकों के अनुसार वायु गुणवत्ता की निगरानी करना अब आसान हो जाएगा.

डॉ पराग मधुकर धकाते ने कहा कि उत्तराखंड में कंटीन्यूअस एयर मॉनिटरिंग स्टेशनों की स्थापना से पीएम 2.5 सहित तमाम खतरनाक गैसों की मात्रा का रियल टाइम विश्लेषण हो सकेगा. इससे समय रहते निवारक उपाय करना संभव होगा. उत्तराखंड में हर साल गर्मियों के दौरान जंगलों में आग लगने की घटनाएं आम हैं. इन घटनाओं के कारण भारी मात्रा में जहरीली गैसें वातावरण में फैलती हैं, जिसका सीधा असर न केवल मानव जीवन पर बल्कि वन्य जीवों और हिमालयी ग्लेशियरों पर भी पड़ता है. 

गैसों का मिलेगा सही-सही डाटा 
अभी तक इन गैसों का कोई स्पष्ट क्वांटिफिकेशन नहीं हो पाया था. अब इन नए मॉनिटरिंग स्टेशनों के माध्यम से आग से निकलने वाली गैसों का सही-सही डाटा प्राप्त होगा. इससे न केवल आग के कारण होने वाले नुकसान का सही आकलन हो सकेगा, बल्कि इससे निपटने के लिए समय पर कार्रवाई भी संभव होगी.

पर्यावरण में बदलाव एक सतत प्रक्रिया है और तेजी से बढ़ते प्रदूषण के चलते इसके मुकाबले के लिए रणनीतियों का भी लचीला होना जरूरी है. डॉ धकाते ने कहा कि इन मॉनिटरिंग स्टेशनों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर उत्तराखंड सरकार और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड समय-समय पर अपनी नीतियों में आवश्यक बदलाव कर पाएंगे. इससे प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों को नई गति मिलेगी और पर्यावरणीय आपदाओं को रोका जा सकेगा. 

उत्तराखंड का यह कदम पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता है. यदि सभी जिलों में इस तरह का रियल टाइम डाटा उपलब्ध होगा, तो वायु गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए एक ठोस आधार तैयार होगा. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में भी सहायता मिलेगी.

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भावी पीढ़ियों के लिए जरूरी
डॉ पराग मधुकर धकाते ने कहा, "उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता के लिए जाना जाता है. इस पहल से राज्य न केवल अपनी धरोहर को बचा सकेगा बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी एक स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण सुनिश्चित करेगा." 

उत्तराखंड का यह प्रयास न केवल राज्य के पर्यावरणीय संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि इससे मानव जीवन, वन्य जीवों और प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण को भी मजबूती मिलेगी. आने वाले समय में अन्य राज्य भी उत्तराखंड की इस पहल से प्रेरणा लेकर अपने यहां भी इस तरह के मॉनिटरिंग सिस्टम स्थापित कर सकते हैं.

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