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UP Election 2022: 94 बार चुनाव हारने वाले 74 साल के हसनुराम अंबेडकरी फिर उतरे मैदान में, जानें- क्यों लड़ते हैं इलेक्शन

हसनुराम अंबेडकरी 40 साल से ज्यादा से राजनीति में सक्रिय हैं. उन्होंने 1977 से 1984 तक बामसेफ के जिला अध्यक्ष और राज्य उपाध्यक्ष के रूप में काम किया था. वह कुछ समय के लिए बसपा के सदस्य भी रहे.

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए उम्मीदवारों के नामांकन दाखिल करने का दौर शुरू हो चुका है. इसी कड़ी में आगरा में एक ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार ने कलेक्ट्रेट ऑफिस में नामांकन पत्र भरा है, जिसकी हर तरफ चर्चा हो रही है. आगरा जिले की खेरागढ़ सीट से पर्चा दाखिल करने वाले इस प्रत्याशी का नाम हसनुराम अंबेडकरी है. सबसे खास बत यह है कि 74 साल के हसनुराम अंबेडकरी इस बार का मिलाकर कुल 94वीं बार चुनावी मैदान में हैं.

बहुजन समाज पार्टी के अस्तित्व में आने से पहले हसनुराम अंबेडकरी कांशी राम द्वारा स्थापित अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी संघ (बामसेफ) में एक वरिष्ठ सदस्य थे. हसनुराम अंबेडकरी 1985 से लोकसभा, विधानसभा और अलग-अलग सीटों से पंचायत चुनाव सहित कई निकायों के लिए चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि उन्हें आज तक एक भी जीत नहीं मिली है. यही नहीं 1988 में राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन कर चुके हैं, हालांकि उनका नामांकन खारिज हो गया था.

100 बार चुनाव हारना चाहते हैं हसनुराम

हसनुराम अंबेडकरी ने कहा, "मैं हारने के लिए चुनाव लड़ता हूं. जीतने वाले नेता जनता को भूल जाते हैं. मैं 100 बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहता हूं. मुझे परवाह नहीं है कि मेरे विरोधी कौन हैं क्योंकि मैं अंबेडकर की विचारधारा में विश्वास करने वाले मतदाताओं को एक विकल्प देने के लिए चुनाव लड़ता हूं." हसनुराम अंबेडकरी इससे ठीक पहले 2021 में जिला परिषद चुनाव में मैदान में उतरे था, लेकिन हार का सामना करना पड़ा. वहीं 2019 का लोकसभा चुनाव आगरा और फतेहपुर सीकरी सीटों से लड़े, लेकिन अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे. चुनावों में उनको सबसे ज्यादा वोट 1989 के लोकसभा चुनाव मिला था, जब 36,000 वोट हासिल किए थे.

आगरा ग्रामीण सीट से भी दाखिल करेंगे पर्चा

हसनुराम अंबेडकरी ने बताया, "बुधवार को मेरे गृह क्षेत्र खेरागढ़ से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मेरा नामांकन स्वीकार कर लिया गया है. मेरे साथी अंबेडकरीवादी चाहते हैं कि मैं आगरा (ग्रामीण) सीट से भी नामांकन दाखिल करूं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, इसके लिए मैं आज नामांकन करूंगा." हसनुराम अपनी पत्नी और समर्थकों के साथ घर-घर जाकर प्रचार करना भी शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि अगर लोग मुझे वोट देते हैं, तो मैं संवैधानिक सिद्धांतों के अनुसार काम करूंगा. मेरा एजेंडा हमेशा निष्पक्ष और भ्रष्टाचार मुक्त विकास के साथ-साथ समाज में हाशिए पर खड़े लोगों का कल्याण होगा.

1985 में नहीं मिला था टिकट

हसनुराम अंबेडकरी 40 साल से ज्यादा से राजनीति में सक्रिय हैं. उन्होंने 1977 से 1984 तक बामसेफ के जिला अध्यक्ष और राज्य उपाध्यक्ष के रूप में काम किया था. वह कुछ समय के लिए बसपा के सदस्य भी रहे. उन्होंने बताया कि वे बामसेफ के एक समर्पित कार्यकर्ता थे और यूपी में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए बसपा के लिए भी काम किया. उन्होंने कहा, "1985 में जब मैंने टिकट मांगा, तो पार्टी के नेताओं ने मेरा उपहास किया और कहा कि मेरी पत्नी भी मुझे वोट नहीं देगी. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण मुझे अपमानित किया गया."

विधायक से बहस के बाद राजनीति में उतरे

उन्होंने बताया कि इस पूरे प्रकरण से मुझे बहुत निराशा हुई और तब से मैं हर चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ रहा हूं. हसनुराम अंबेडकरी ने कहा कि वह खेत मजदूर के रूप में काम करते हैं और उनके पास मनरेगा जॉब कार्ड है. उन्होंने कहा कि उनकी कोई स्कूली शिक्षा नहीं है, लेकिन वे हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी पढ़ और लिख लेते हैं.

हसनूराम का कहना है कि 1984 में लखनऊ में उनकी मुलाकात एक विधायक से हुई थी. विधायक से किसी बात को लेकर बहस हो गई तो विधायक ने हसनूराम से कह दिया कि तुम तो फला पार्टी के आदमी हो, तुम मेरे खिलाफ चुनाव लड़ सकते हो. हसनुराम उस दौरान राजस्व विभाग में अमीन के पद पर कार्ररत थे. उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और चुनावी मैदान में उतर गए. उनका कहना है कि डॉ भीमराव अंबेडकर विचारधारा के अनुसार वे चुनाव लड़ते हैं.

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