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UP Election 2022: नरेंद्र मोदी सरकार को निशाने पर क्यों लिए हुए हैं मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक?

UP Election 2022: नरेंद्र मोदी सरकार एक बार फिर मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के निशाने पर है. उन्होंने कहा है कि किसानों की मौत पर शोक न जताना ठीक नहीं है. आइए जानते हैं ऐसा क्यों करते हैं वो.

मेघालय के राज्यपाल (Governor of Meghalaya) सत्यपाल मलिक (Satyapal Malik) किसान आंदोलन (Farmer Protest) को लेकर अपनी ही सरकार पर हमलावर रहते हैं. पहले उन्होंने कहा था कि अगर किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो बीजेपी अगले साल 5 राज्यों में होने वाले चुनाव हार जाएगी. बाद में उन्होंने यहां तक कह दिया कि किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी नेता गांवों में नहीं घुस पा रहे हैं. वहीं लखीमपुर खीरी कांड पर उन्होंने यहां तक कह दिया कि अजय मिश्र को मंत्री पद से हटा देना चाहिए, वो मंत्री बनने लायक नहीं हैं. एक समय बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे सत्यपाल मलिक ने एक बार फिर किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की है. आइए जानते हैं कि मलिक के निशाने पर अपनी ही सरकार क्यों है. 

सत्यपाल मलिक ने अब क्या कहा?

सत्यपाल मलिक रविवार को जयपुर में थे. वहां उन्होंने 'ग्लोबल जाट समिट' में कहा, ''इस देश ने अब तक इतने बड़े स्तर का आंदोलन नहीं देखा था, जहां पर 600 लोग शहीद हुए हुए हों. अगर एक जानवर भी मरता है तो दिल्ली के नेता शोक जताते हैं. कल महाराष्ट्र में आग लगी और दिल्ली से एक प्रस्ताव था. लेकिन हमारे 600 लोग मरे और किसी ने उन पर कुछ नहीं बोला. यह अच्छी स्थिति नहीं है.'' उन्होंने कहा कि किसानों के सवाल पर जब भी वो बोलते हैं तो कई हफ्ते उन्हें दिल्ली से फोन आने की शंका रहती है. उन्होंने कहा कि जिन्होंने मुझे राज्यपाल बनाया है, जब वह कह देंगे कि हम आपसे असहज महसूस कर रहे हैं तो मैं तुरंत पद छोड़ दूंगा. 

Meghalaya के Governor Satyapal Malik ने किसान आंदोलन को लेकर एक बार फिर साधा केंद्र पर निशाना

मलिक ने 1960 के दशक में छात्र संघ से राजनीति की शुरूआत की. वो राजनीतिक बयार की दिशा पहचानने में माहिर माने जाते हैं. इसलिए उन्हें खरी-खरी बोलने में कभी परेशानी नहीं होती है. जाट जाति के सत्यपाल मलिक ने दिग्गज किसान नेता चौधरी चरण सिंह से राजनीति का ककहरा सीखा. मलिक 1974 के चुनाव में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत से विधायक चुने गए. आपातकाल के विरोध में जेल में भी रहे. लोकदल ने उन्हें 1980 में राज्यसभा भेजा. लेकिन कांग्रेस विरोध से राजनीति शुरू करने वाले मलिक कांग्रेस में ही शामिल हो गए. कांग्रेस ने भी उन्हें राज्य सभा सदस्य बनाया. 

दलबदल में माहिर हैं सत्यपाल मलिक

बोफोर्स कांड के विरोध में कांग्रेस छोड़ने वालों में वीपी सिंह के अलावा सत्यपाल मलिक भी शामिल थे. उन्होंने जनता दल के टिकट पर 1989 का चुनाव अलीगढ़ से लड़ा. जाट बहुल इस सीट से उन्हें जीत मिली. और वो वीपी सिंह सरकार में मंत्री भी बने. उस समय मुलायम सिंह यादव एक छत्रप के तौर पर उभर रहे थे. और सत्यपाल मलिक उनके साथ हो लिए. मलिक 2004 में बीजेपी में शामिल हुए. बीजेपी में उन्हें पद-प्रतिष्ठा मिली. पहले उपाध्यक्ष बने फिर नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद 2017 में राज्यपाल बना दिए गए.

दरअसल सत्यपाल मलिक पश्चिम उत्तर प्रदेश से आते हैं. वहां किसान आंदोलन का जोर है. जाट बहुल पश्चिम उत्तर प्रदेश में इन दिनों बीजेपी विरोध की बयार बह रही है. यह सच है कि कई गांवों में बीजेपी नेताओं को घुसने नहीं दिया जा रहा है. पंचायत चुनाव में भी बीजेपी को इस इलाके में हार का सामना करना पड़ा. और जाटों में बीजेपी को लेकर जबरदस्त गुस्सा है. बीजेपी के जाट नेताओं को भी लोगों के भारी गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. यहां तक कि बीजेपी के जाट नेता पार्टी के कार्यक्रमों तक से नाम वापस ले रहे हैं. इन सबकी जानकारी सत्यपाल मलिक को है. यही वजह हो सकती है कि अपना राजनीतिक भविष्य देखते हुए वो पिछले काफी समय से अपनी ही सरकार को निशाने पर लिए हुए हैं. 

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