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Teachers Day: समाज को नई राह दिखाते इस शिक्षक के हौसले के सलाम, हाथ न होने के बावजूद लिख रहा है नौनिहालों की तकदीर

नारायण यादव अपनी तमाम खूबियों की वजह से स्टूडेंट्स और टीचर्स के साथ ही समाज में भी खासे लोकप्रिय हैं। उन्हें अब तक तमाम संस्थाएं सम्मानित भी कर चुकी हैं। इतना ही नहीं वह जितने अच्छे शिक्षक हैं, उतने ही सच्चे समाजसेवी भी हैं।

प्रयागराज, मोहम्मद मोईन। कहते हैं विकलांगता अभिशाप होती है, लेकिन अगर बुलंद हौसलों के साथ कोई काम किया जाए तो शारीरिक कमजोरी कभी मंजिल तक पहुंचने में रुकावट नहीं हो सकती। यह बात प्रयागराज के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक नारायण यादव पर पूरी तरह फिट बैठती है। नारायण जब छठी क्लास में पढ़ते थे, तभी एक हादसे का शिकार होने की वजह से उनके दोनों हाथ काटकर अलग कर दिए गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खुद इतनी डिग्रियां हासिल कीं, जो किसी साधारण इंसान के लिए किसी सपने से कम नहीं होती।

इतना ही नहीं दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद वह न सिर्फ आम शिक्षकों की तरह बच्चों को पढ़ा रहे हैं, बल्कि मानसिक रूप से कमजोर उन बच्चों में भी शिक्षा की अलख जगा रहे हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। दोनों हाथों से विकलांग ये अनूठे टीचर दूसरे शिक्षकों की तरह तेजी से ब्लैकबोर्ड पर लिखते हैं। बच्चों की कापियां जांचते हैं। संगीत के वाद्य यंत्रों को बजाकर अपने स्टूडेंट्स का मनोरंजन करते हैं तो साथ ही उनके बीच आउटडोर गेम्स खेलकर उन्हें फिट रहने का भी संदेश देते हैं।

Teachers Day: समाज को नई राह दिखाते इस शिक्षक के हौसले के सलाम, हाथ न होने के बावजूद लिख रहा है नौनिहालों की तकदीर

हाथ नहीं होने के बावजूद वह अपने स्टूडेंट्स के बीच लैपटॉप आपरेट कर उन्हें नई तकनीक की जानकारी देते हैं तो साथ ही स्मार्ट फोन चलाकर अपने विद्यार्थियों का हाल चाल भी लेते रहते हैं। दिव्यांग होने के बावजूद छात्रों और दूसरे टीचर्स के बीच लोकप्रिय ये टीचर अपने हौसलों की बदौलत विकलांगता के अभिशाप होने के दावे को भी गलत साबित करते हैं। खास बात ये है कि इस अनूठे टीचर ने मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के दर्द को महसूस करते हुए अपना तबादला अब उनके ही स्कूल में करा लिया है। अपनी बेमिसाल सेवाओं व शिक्षा के प्रति समर्पण की वजह से प्रयागराज के इस अनूठे टीचर को तमाम जगहों पर सम्मानित भी किया जा चुका है।

Teachers Day: समाज को नई राह दिखाते इस शिक्षक के हौसले के सलाम, हाथ न होने के बावजूद लिख रहा है नौनिहालों की तकदीर

अपने हौसले और जज्बे की वजह से शिक्षा जगत में बेमिसाल बने नारायण यादव मूल रूप से यूपी के मऊ जिले के रहने वाले हैं। सन 1990 में जब वह छठी क्लास में पढ़ते थे, तब उन्हें बिजली का जबरदस्त करंट लगा। डॉक्टर्स ने उनकी जिंदगी बचाने के लिए दोनों हाथों को काटा जाना जरूरी बताया। नारायण की जिंदगी बचाने के लिए परिवार वालों ने उनके दोनों हाथ कटवा दिए। शुरुआती कुछ दिन तो वह काफी परेशान रहे। जिंदगी उन्हें बोझ लगने लगी, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाने का फैसला किया। उन्होंने ग्रेजुएशन करने के बाद स्पेशल बीएड, एमए व एलएलबी समेत कई डिग्रियां हासिल कीं। अपनी काबिलियत के भरोसे वह कई दूसरी नौकरियां भी हासिल कर सकते थे, लेकिन उन्होंने शिक्षक बनने का ही फैसला किया, ताकि दूसरों की जिंदगी में उजाला भर सकें। लोगों को जागरूक व जिम्मेदार बना सकें। उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग में नौकरी मिल गई और वह बांदा जिले में शिक्षक बन गए।

Teachers Day: समाज को नई राह दिखाते इस शिक्षक के हौसले के सलाम, हाथ न होने के बावजूद लिख रहा है नौनिहालों की तकदीर

दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद वह जब बच्चों को दूसरे आम शिक्षकों की तरह पढ़ाते थे, तो लोग उन्हें देखकर हैरान रह जाते थे। हाथ के बिना भी वह तेजी से ब्लैक बोर्ड पर लिखते थे। बच्चों की कापियां जांचते थे। किताबों के पन्ने पलटते थे और रिपोर्ट कार्ड तैयार करने समेत दूसरे काम भी करते थे। इस बीच यूपी सरकार ने मानसिक रूप से कमजोर गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए सूबे में लखनऊ और प्रयागराज दो जगहों पर सरकारी आवासीय विद्यालय खोले तो शिक्षक नारायण यादव ने अपना तबादला यहीं करा लिया। उन्हें लगा कि मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षित व जागरूक करने का काम वह दूसरों से अधिक बेहतर ढंग से कर सकते हैं। प्रयागराज शहर से करीब पचीस किलोमीटर दूर कौड़िहार इलाके में चल रहे इस विशेष विद्यालय में भी शिक्षक नारायण यादव ने कुछ ही दिनों में अपनी अलग पहचान बना ली है।

Teachers Day: समाज को नई राह दिखाते इस शिक्षक के हौसले के सलाम, हाथ न होने के बावजूद लिख रहा है नौनिहालों की तकदीर

नारायण यादव अपनी तमाम खूबियों की वजह से स्टूडेंट्स और टीचर्स के साथ ही समाज में भी खासे लोकप्रिय हैं। उन्हें अब तक तमाम संस्थाएं सम्मानित भी कर चुकी हैं। इतना ही नहीं वह जितने अच्छे शिक्षक हैं, उतने ही सच्चे समाजसेवी भी हैं। वह दिव्यांगों के लिए काफी काम करते हैं। वह अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर हर साल सौ दिव्यांगों का सामूहिक विवाह भी कराते हैं। उनकी उम्र अभी महज अड़तीस साल है। उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है, लेकिन उनके हौसले और जज़्बे को देखकर कहा जा सकता है कि अपनी विकलांगता को मीलों पीछे छोड़कर आज वह हजारों लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

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