'सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला अदालतों तक...', नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने CJI से की ये खास मांग
Nagina News: यूपी के नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कहा डॉ. भीमराव आंबेडकर सिर्फ विधिशास्त्र के महान विद्वान ही नहीं, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और समान न्याय प्रणाली के मार्गदर्शक भी रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के नगीना से सांसद और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई को पत्र लिखकर एक महत्वपूर्ण मांग रखी है. उन्होंने अपनी इस मांग की जानकारी सोशल मीडिया प्लेट्फॉर्म एक्स पर दी है. वहीं अब नगीना सांसद की इस मांग की राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा हो रही है.
नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने आग्रह किया है कि देश के सभी न्यायालयों, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालयों में भारतीय संविधान के निर्माता और आधुनिक भारत के शिल्पकार बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की तस्वीर अनिवार्य रूप से लगाई जाए.
भीम आर्मी चीफ ने पत्र में क्या कहा?
चंद्रशेखर आजाद ने अपने पत्र में कहा कि बाबा साहेब ने हमें वह संविधान दिया, जिसकी नींव पर न्यायपालिका खड़ी है और जिसने हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार दिलाया. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "भारत के सभी न्यायालयों में भारतीय संविधान के निर्माता, आधुनिक भारत के शिल्पकार, शोषितों-वंचितों एवं महिलाओं के मुक्तिदाता, ज्ञान के प्रतीक, विश्व रत्न परम पूज्य बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की तस्वीर लगाने के संबंध में मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई को पत्र लिखकर निवेदन किया है."
उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर सिर्फ विधिशास्त्र के महान विद्वान ही नहीं, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और समान न्याय प्रणाली के मार्गदर्शक भी रहे हैं. ऐसे में उनके योगदान का सम्मान किए बिना न्यायपालिका अधूरी है.
सांसद ने पत्र में तीन मुख्य बिंदु रखे हैं –
- भारत के सभी न्यायालयों में बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर स्थापित की जाए.
- यह कदम न्यायपालिका की निष्पक्षता, संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक होगा.
- तस्वीर स्थापित करने से शोषित और वंचित वर्ग को यह संदेश जाएगा कि न्यायालय केवल कानून का ही नहीं बल्कि संविधान निर्माता के विचारों का भी संरक्षक है.
चंद्रशेखर आजाद का मानना है कि यह कदम न्यायपालिका की गरिमा बढ़ाने के साथ-साथ देश की लोकतांत्रिक और संवैधानिक परंपराओं को और मजबूत करेगा. उनका यह पत्र सोशल और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है और इसे न्याय व्यवस्था में सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम पहल माना जा रहा है.
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