Independence Day: "फ्रीडम स्ट्रगल इन" में है एटा और कासगंज के किस्से, अंग्रेजों की क्रूरता और कौमी एकता का रहा है मिसाल
1857 के बाद प्रकाशित पुस्तक "फ्रीडम स्ट्रगल इन" (Freedom Struggle In) के पांचवें अध्याय में कासगंज (Kasganj) और एटा (Etah) में अंग्रेजों की क्रूरता के किस्से मिलते हैं.

UP News: कासगंज (Kasganj) जिला मुख्यालय से 20 किमी दूरी पर सहावर (Sahawar) नगर आबाद है, अंग्रेजों (British) से मुल्क को आजाद कराने में यहां की अहम भूमिका रही है. इस नगर के मुखिया चौधरी मुहम्मद अली खान (Chaudhry Muhammad Ali Khan) 1857 के मुक्ति संग्राम में क्रांतिकारियों के सेनापति थे. यह सूचना विभाग द्वारा 1857 के बाद प्रकाशित पुस्तक "फ्रीडम स्ट्रगल इन" (Freedom Struggle In) के पांचवें अध्याय से भी जाना जाता है. आजादी की लड़ाई में एटा (Etah) में चौधरी साहब के बड़े समर्थक थे. अंग्रेज सेना के सैनिकों जिनके मुखिया कर्नल स्टीवन (Steven) थे, चौधरी मुहम्मद अली खान के सहावर में स्थित हवेली चौक बुलंद किले के गेट को हाथी से तुड़वाया था.
इसके बाद चौधरी साहब को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया और उन पर विशेष आयुक्त, क्लार्स्ट डार्नर की अदालत में मुकदमा चलाया गया. उन्हें देशद्रोह के अपराध का प्रमुख अपराधी घोषित किया गया और बरेली जेल में बंदूक की गोली से निशाना बनाकर शहीद कर दिया गया. उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई. चौधरी मुहम्मद अली खान की गिरफ्तारी के दौरान और बाद में, इस जगह के निवासियों पर ब्रिटिश सेना द्वारा की गई पशु क्रूरता और यहां के बाशिदों के ऊपर किए गए अत्याचार, आज तक यहां के निवासीयों की जुबान पर हैं.
अंग्रेजों की क्रूरता
इसके अलावा शहीदों की सामूहिक कब्र भी गवाह है. अंग्रेजों की क्रूरता घर की तलाशी के दौरान जब अंग्रेज मुहम्मद अली खान के करीबी रिश्तेदार कमर अली खान के घर में घुसे तो वह (कमर अली खान) अपने घर की अटारी में रुई के बोरे में छुपे थे. जालिम अंग्रेजों ने उस रुई के बोरों में आग लगा दी, जिसमें आजादी के दीवाने कमर अली खान जलकर राख हो गए. चौधरी मुहम्मद अली खान के रिहाइस के पास कुछ सीधे साधे लोग जैसे हिमायत अली खान, विलायत अली खान पर भी बगावत का मुकदमा चलाकर उनको भी बरेली जेल में शहीद कर दिया गया.
जिनको सामूहिक तौर पर अंग्रेजों ने जमीन में दफन कर दिया था. इनके साथ मिर्जा लोगों के घर भी तवाह कर दिए गए. मिर्जा हैदर बैग और इनके साथियों को गोली मार दी गई. इस तरह आजादी के दीवानों को गोली का निशाना बनाया गया. अंग्रेजों के जुल्म से चौधरी मोहम्मद अली खान ने अपने घराने के बच्चों को बचाने के लिए अपने करीबी दोस्त पड़ोसी गांव फरोली निवासी चतुर्वेदी के यहां छुपा दिया था. जब जालिम अंग्रेजों को यह मालूम हुआ तो जालिम अंग्रेज फरोली चतुर्वेदी के यहां जा धमके. इन बच्चों को देखकर कहा कि किसके बच्चे हैं. चतुर्वेदी ने कहा कि यह बच्चे हमारे अपने घर के हैं. बच्चे उस वक्त खाना खा रहे थे. जालिम अंग्रेजों ने कहा कि इन बच्चों का झूठा खाना खाकर दिखाओ. चतुर्वेदी ने इन बच्चों का झूठा खाना खाकर दिखाया. तब जाकर इन बच्चों की जान बच सकी. यह एक कौमी एकता की मिसाल है.
मौलाना अब्दुल करीम आजाद को किया बेघर
एटा जिले के दूसरी जंगे आजादी के दीवाने मौलाना अब्दुल करीम आजाद "आजाद तो कुछ नहीं एक तमन्ना है. "जरा सी लाकर रख दे कोई खाके वतन कफन में" सहावर नगर के बाशिंदे डॉक्टर इस्लाम अहमद फारुकी ने बताया कि मादरे वतन के सपूतों में रंगरेज बिरादरी के लोग आजादी की लड़ाई लड़ने में कभी पीछे नहीं रहे. मेरे वालिद मरहूम हबीब उल्ला का 23 साल पहले 100 साल की उम्र में इंतकाल हो गया. इनके रिश्तेदार मौलाना अब्दुल करीम आजाद बाशिंदा कस्बा जैथरा जिला एटा के थे, जो अंग्रेजों की नजर में जिला एटा के बड़े मुस्लिम बागी समझे जाते थे.
अंग्रेजी हुकूमत का दुश्मन होने का बना पर गौरे और मन के कालों की हुकूमत ने इनके मकान, दरवाजे, चौखट, चारपाई, संदूक, कपड़े वगैरह सब तहस नहस करके बेघर कर दिया. इन जालिमों से तंग आकर वो पनाह लेने अपनी ससुराल सहावर आगये. इनके सगे सालों ने इनको अपने यहां पनाह न दी, फिर वो हबीब उल्ला रंगरेज जो उस वक्त पुलिस में चौकीदार थे रात में अपने घर बुला लाए. इनके बड़े भाई हमीद उल्लाह ने हबीब उल्ला को डराया, अंग्रेजों की सरकार का बागी है और तू पुलिस का एक हिस्सा है. तुझे भी इसके साथ जेल जाना पड़ेगा. इस बागी को भगा दे, इसी वक्त हबीब उल्ला ने अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर उसी वक्त गांव म्यासुर भाग कर गंगा के नजदीक अपने साले के यहां एक छोटे से गांव चकरा के पास एक झोंपड़े में पनाह दिलवाई.
मौलाना अब्दुल करीम को सजा
एटा जिले के जैथरा कस्बे के बाशिंदे आजादी के सिपाई मौलाना अब्दुल करीम की तमाम जिंदगी अंग्रेजों की हुकूमत की मुखालफत में गुजरी. अंग्रेजों भारत छोड़ो मुहिम की वजह से बरेली के सिटी मजिस्ट्रेट ने इनको आठ महीने की सजा और बीस हजार रुपए जुर्माना बतौर सजा सुनाई. बरेली से दो सितंबर 1943 को कैंप जेल लखनऊ भेजे गए, जहां से 17 फरवरी 1945 में रिहा किए गए. मौलाना अब्दुल करीम चार बार जेल गए और तीन साल आठ महीने की कैद और मशक्कत के साथ 100 रुपए जुर्माना की सजा पाई. सरकार ने मौलाना अब्दुल करीम आजाद को स्वंतत्रता सैनानी घोषित किया और इनका इंतकाल राजकीय सम्मान के साथ कस्बा जैथरा में किया गया. इस तरह एटा और कासगंज के आजादी के दीवाने भी पीछे नहीं रहे. अपनी जान और माल को मुल्क को आजाद करने की खातिर कुर्बान कर मुल्क को आजादी दिलाई.
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