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Independence Day: लखीमपुर के पंडित राज नारायण मिश्र को दी गई थी स्वतंत्रता संग्राम की अंतिम फांसी, याद कर भावुक हुए परिजन
स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) में अंतिम फांसी लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) के रहने वाले पंडित राज नारायण मिश्र (Pandit Raj Narayan Mishra) को दी गई थी.
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Independence Day 2022: आजादी (Independence) के दौर के स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) में अंग्रेजी हुकूमत में अंतिम फांसी लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) के रहने वाले पंडित राज नारायण मिश्र (Pandit Raj Narayan Mishra) को दी गई थी. नौ दिसंबर 1944 को 24 साल की उम्र में लखनऊ (Lucknow) की जेल में शहीद पंडित राज नारायण मिश्र को फांसी पर लटका दिया गया था.
ये है इतिहास
लखीमपुर खीरी के रहने वाले युवक बलदेव प्रसाद के बेटे राज नारायण मिश्र 1942 के दौरान स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे. इनकी जिम्मेदारी शस्त्र इकठ्ठा करने की थी. यह शस्त्र जुटाने दौरान महमूदाबाद के कोठार में जिलेदार की बंदूक मांगने पहुंच गए. जिलेदार ने बंदूक देने से मना कर दिया और बंदूक उनके के ऊपर तान दी. यह देखकर जोशीले राज नारायण ने बंदूक छीनकर और जिलेदार को गोली मार दी. उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी.
शहीद राज नारायण मिश्र बंदूक लेकर भाग निकले और सीधे घर पहुंच गए. उन्होंने कहा कि सभी लोग यहां से हट जाओ और कह कर निकल गए. उसी दौरान अंग्रेज उनके घर पहुंचे, घर परिवार के साथ काफी जुल्म किया. घर खोदकर खेत बना डाला और खेत को खोद कर उसमें नमक भी बो दिया था. जिससे आज भी फसलें विधिवत नहीं हो पा रही हैं.
क्यों दी गई थी फांसी
राजदान मिश्र के फरार होने के बाद उनके ऊपर पांच सौ का पुरस्कार घोषित कर दिया गया था. कई महीने नजरबंद भी उनको रहना पड़ा था. अपना नाम पता बदलकर, वह भटकते रहे थे. हड़ताल करने के आरोप में मुंबई में उन्हें छह महीने की उनको सजा मिली थी. जिसके बाद 1943 में जेल से छूटने के बाद उत्तर प्रदेश वापस आए. कई जगह घूमते हुए वह मेरठ पहुंचे, जहां उन्हें पहचान कर गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर हत्या का मुकदमा चलाया गया.
27 जून 1944 को फांसी की सजा सुनाई गई. अंत में उन्हें लखनऊ जिला जेल लाया गया, जहां 9 दिसंबर 1944 को सुबह लखनऊ जेल में फांसी दे दी गई. उस समय राजनारायण की उम्र सिर्फ 24 साल की थी और वह हंसते हुए फांसी के फंदे पर खड़े होकर वंदे मातरम गीत गाया और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए. यह स्वतंत्रता आंदोलन की अंतिम फांसी थी. कहते हैं कि फांसी के बाद खुशी में पंडित राज नारायण मिश्र का वजन भी पड़ गया था.
क्या बोले पोते?
वहीं उनके पोते संजय मिश्र उर्फ दीपू उनकी याद कर रोने लगते हैं और कहते हैं कि शहीद के परिवार के हम लोगों को किनारे कर दिया गया है. कोई पूछने वाला भी नहीं कि हम लोग किस तरह से जी रहे हैं. अभी तक भी कोई सड़क का इंतजाम नहीं है. लखीमपुर शहर में शहीद राजनारायण मिश्र की याद में एक स्मारक के बनाया गया है.
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