इस्लाम पर मोहन भागवत के बयान पर सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती बोले, 'हमें अपने मजहब के...'
Syed Naseruddin Chishty on Mohan Bhagwat Statement: अजमेर दरगाह के दीवान सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि मोहन भागवत की बातों को बिल्कुल सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार (28 अगस्त) को कहा कि भारत में इस्लाम का हमेशा एक स्थान रहेगा. उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच आपसी विश्वास बनाए रखने की पुरज़ोर वकालत की. उनके इस बयान पर अजमेर दरगाह के दीवान सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने शुक्रवार (29 अगस्त) को प्रतिक्रिया दी. चिश्ती ने कहा कि उन्होंने (मोहन भागवत) सारी शंकाओं को दूर करते हुए बड़े स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस्लाम यहां था, है और आगे भी रहेगा. लेकिन हम सब हिंदुस्तानी और हमें अपने मजहब के साथ-साथ अपने देश के लिए भी अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए. सबको मिल जुलकर रहना चाहिए. मेरा मानना है कि मोहन भागवत का बयान इसी परिप्रेक्ष्य में था और इसे बिल्कुल सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए.
आरएसएस देश के लिए काम कर रही है- चिश्ती
सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने आगे कहा, "देश का राजनीतिक परिदृश्य यही रहा है कि मुसलमानों को हमेशा किसी न किसी का डर दिखाकर उनके वोट को लेने की कोशिश की गई है. चाहे वो किसी के भी द्वारा की गई हो. लेकिन पिछले 10 सालों से बीजेपी की सरकार है और आरएसएस भी देश के लिए काम कर रही है. अब मुसलमानों की सोच बदली है."
किसी को किसी से डरना नहीं चाहिए- चिश्ती
इसके साथ ही उन्होंने कहा, "ये बात बिल्कुल सही है कि इस देश में मुसलमान हो या कोई हो, किसी को किसी से डरना नहीं चाहिए. हमें संवैधानिक अधिकार के लिए तत्पर भी रहना चाहिए. लेकिन जिस तरीके से डर दिखाया गया था वो डर बिल्कुल बेमाने हैं. आज चाहे भारत सरकार हो चाहे आरएसएस हो, ये सब देशहित में सबको साथ लेकर चलने का प्रयास कर रहे हैं ताकि देश तरक्की करे और मजबूत हो."
काशी-मथुरा वाले बयान पर क्या बोले चिश्ती
मोहन भागवत ने ये भी कहा कि संघ काशी और मथुरा जैसे अभियान का समर्थन नहीं करेगा. इस पर सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा, "इस देश ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. धार्मिक उन्माद भी बहुत हुआ है. हमें ऐसी राह अग्रसर करनी चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी को एक साफ और सुरक्षित माहौल मिले जिससे की देश तरक्की कर सके. हम कब तक धार्मिक मामलों को लेकर उलझे रहेंगे? हम मजहब से अलग-अलग हैं. हमारी पूजा पद्धति अलग है लेकिन हम लोग हैं हिंदुस्तानी और कयामत तक हिंदुस्तानी ही रहेंगे. अगर कई मामले बैठने से सुलझ जाते हैं तो उनको बैठकर सुलझाना चाहिए. इसमें कोई बुराई नहीं है."
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Source: IOCL






















