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Maharana Pratap Jayanti Special: महाराणा प्रताप ने जीती थीं मुगलों की 36 छावनियां, जानें कहां ली थी अंतिम सांस
Udaipur News: महाराणा प्रताप की वीरता के बारे में पूरा देश जानता है. वह कभी अकबर के अधीन नहीं आए और अपनी मातृभूमि की रक्षा की. आज उनकी 483वीं जयंती है. इस मौके पर शहर में कई आयोजन किए जाएंगे.
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Udaipur News: वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (Maharana Pratap), जिनकी बहादुरी और मातृभूमि से प्रेम और समर्पण को पूरा देश जानता है.जिन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और उसका डटकर सामना किया. आज उन्हीं महाराणा प्रताप की 483वीं जयंती है. मेवाड़ में इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है. इसके कार्यक्रम 15 दिन पहले ही शुरू हो गए हैं. आज भी कई कार्यक्रम होंगे. शोभायात्राएं निकाली जाएंगी, संगोष्ठियां होंगी,उनकी जन्मस्थली, राज तिलक स्थली सहित अन्य जगहों पर लोग पहुंचेंगे. आइये जानते हैं कुम्भकगढ़ किले में जन्म से लेकर राजधानी में निधन तक का महाराणा प्रताप का सफर इतिहासविद प्रोफेसर चंद्रशेखर शर्मा के अनुसार.
कुम्भलगढ़ में मिला शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान
महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रम संवत 1597 और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 में कुम्भलगढ़ में हुआ था. कुम्भलगढ़ किला उदयपुर संभाग के राजसमन्द जिले में है.इस विशाल किले को अजयगढ़ भी कहां जाता है, क्योंकि इसे कभी हराया नहीं जा सका.महाराणा प्रताप का बाल्यकाल यहीं पर गुजरा.फिर एक साल बाद 1541 में वह चित्तौड़गढ़ दुर्ग गए जहां 1546 तक रहे.फिर कुम्भकगढ़ में अगले 10 साल तक मां जयवंता बाई और सामंत जयमल के संरक्षण में शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा ली.
वर्ष 1568 में अकबर ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर दिया था.फिर युद्ध नीति के तहत महाराणा प्रताप पिता महाराणा उदय सिंह के साथ उदयपुर गिर्वा आ गए.इसके बाद पिता के साथ यहीं पर रहे.
चित्तौड़गढ़ छोड़कर पिता के साथ महाराणा प्रताप उदयपुर आ गए थे, लेकिन चार साल बाद ही पिता महाराणा उदय सिंह की 28 फरवरी 1572 में निधन हो गया.इसके बाद प्रताप का राजतिलक गोगुन्दा के श्मशान क्षेत्र में महादेव मंदिर की बावड़ी के पास हुआ.गोगुन्दा जो उदयपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर है.आज भी उनकी राजतिलक स्थली बनी हुई है.
हल्दी घाटी का युद्ध कब हुआ था?
राजतिलक के ठीक चार साल बाद अकबर के आक्रमण शुरू हो गए.साल 1572 में हल्दी घाटी का युद्ध हुआ. यह शायद ही किसी को पता नहीं होगा, क्योंकि इसके बारे में सभी जानते हैं.यहां राजपूती तलवार ने मुगलों को धूल चटाई थी. साल 1576 से 1586 तक अकबर के आक्रमण होते रहे.ऐसे में महाराणा प्रताप राजपाट छोड़ अपनी सेना के साथ जंगलों में रहे.उन्होंने मायरा की गुफा, जावर माइंस, कमलनाथ सहित अन्य जगह आरमारी बना रखी थी. वहां हथियार थे और युद्ध नीतियां बनाई जाती थीं. साल 1581 तक दिवेर से लेकर कुम्भलगढ़ तक महाराणा प्रताप ने मुगलों की 36 छावनियों को जीत था.इस दौरान यह कहा जाता था कि जहां राणा,वहीं मेवाड़ की राजधानी.
चावंड को राजधानी बनाया, वहीं ली अंतिम सांस
कई सालों तक अकबर से युद्ध चला लेकिन अकबर मेवाड़ को जीत नहीं सका.फिर 1586 में वीर महाराणा प्रताप ने चावंड को मेवाड़ की राजधानी बनाई और 12 साल तक शासन चलाया. साल 1597 में उनका निधन हो गया.चावंड उदयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर है. महाराणा प्रताप का किला खंडहर हो चुका है.महाराणा प्रताप, मेवाड़, महाराणा उदय सिंह, राजपुताना, एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर, कुम्भलगढ़ किला, चावंड, गोगुंदा, सिटी पैलेस उदयपुर.
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