'भीड़भाड़ वाली मुंबई लोकल में दरवाजे पर खड़े होना 'लापरवाही' नहीं', मृतक के परिवार को मिलेगा मुआवजा
Mumbai News: मुंबई लोकल ट्रेन हादसे में हाईकोर्ट ने मृतक यात्री के परिजनों को मुआवज़ा देने का आदेश बरकरार रखा और कहा कि भीड़भाड़ में पायदान पर खड़े होना लापरवाही नहीं बल्कि मजबूरी है.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल ने लोकल ट्रेन से गिरकर मृत हुए एक यात्री के परिजनों को मुआवज़ा देने का निर्देश दिया था. सरकार ने इस फैसले को चुनौती दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि ट्रिब्यूनल का आदेश पूरी तरह सही और न्यायसंगत है.
कोर्ट के अनुसार, भीड़भाड़ वाली मुंबई लोकल में दरवाजे के पास खड़े होने को लापरवाही नहीं माना जा सकता, क्योंकि रोज़ाना लाखों यात्रियों के पास यही एकमात्र विकल्प होता है. अदालत ने कहा कि ट्रेन में प्रवेश करना भीड़ की वजह से मुश्किल होता है, और अपनी नौकरी पर पहुंचने के लिए यात्री मजबूरन इसी तरह सफर करते हैं.
2005 की घटना का मामला
यह मामला 2005 की उस घटना से जुड़ा है जब भायंदर से मैरीलाइन की ओर जा रहे एक यात्री को भारी भीड़ के कारण ट्रेन से उतरते समय धक्का लगा और वह नीचे गिर गया. उसे अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन 2 नवंबर को उसकी मृत्यु हो गई. परिवार ने ट्रिब्यूनल में मुआवजे की मांग की थी, जिसे मंजूरी दे दी गई थी.
सरकार की दलील थी कि घटना में यात्री की खुद की लापरवाही थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. अदालत ने यह भी माना कि मृतक के पास वैध लोकल ट्रेन पास था, इसलिए वह ‘बोना फाइड पैसेंजर’ था. कोर्ट ने कहा कि घटना ‘अनटुवार्ड इंसीडेंट’ की श्रेणी में आती है, इसलिए परिजनों को मुआवज़ा मिलना उनका अधिकार है. अंत में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि जमा की गई पूरी राशि और उस पर लगा ब्याज जल्द से जल्द मृतक के परिजनों को दिया जाए.
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