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Bombay High Court: बॉम्बे HC ने कहा- 'गोद दिए जाने के बाद दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे की DNA जांच उचित नहीं', जानें मामला
Mumbai News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा गोद दिए जाने के पश्चात दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे की डीएनए जांच कराना बच्चे के हित में नहीं होगा.
![Bombay High Court: बॉम्बे HC ने कहा- 'गोद दिए जाने के बाद दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे की DNA जांच उचित नहीं', जानें मामला Bombay HC decision 2023 DNA testing of rape victim child after adoption is not appropriate Bombay High Court: बॉम्बे HC ने कहा- 'गोद दिए जाने के बाद दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे की DNA जांच उचित नहीं', जानें मामला](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/11/16/23e57b03eb2ec8f914eaeb5268313a081700131564418359_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Bombay High Court Decision: बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि गोद दिए जाने के पश्चात दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे की डीएनए जांच कराना बच्चे के हित में नहीं होगा. न्यायमूर्ति जी ए सनाप की एकल पीठ ने 17 वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म के आरोपी को दस नवंबर को जमानत दे दी थी. लड़की दुष्कर्म के बाद गर्भवती हो गई थी. लड़की ने बच्चे को जन्म दिया और उसे गोद देने की इच्छा जताई. पीठ ने प्रारंभ में पुलिस से जानना चाहा कि क्या उसने पीड़िता से जन्मे बच्चे की डीएनए जांच कराई है. इस पर पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि लड़की ने बच्चे को जन्म देने के बाद उसे गोद देने की इच्छा जताई.
पुलिस ने क्या कहा?
पुलिस ने बताया कि बच्चे को गोद लिया जा चुका है और संबंधित संस्थान गोद लेने वाले माता-पिता की पहचान उजागर नहीं कर रहा है. उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह तर्कसंगत है. उच्च न्यायालय ने कहा,‘‘ यह कहना उचित है कि चूंकि बच्चे को गोद दिया जा चुका है ऐसी तथ्यात्मक स्थिति में बच्चे की डीएनए जांच उसके (बच्चे के) हित में और बच्चे के भविष्य के लिए ठीक नहीं होगी.’’ आरोपी ने अपनी जमानत याचिका में दावा किया था कि वैसे तो पीड़िता की उम्र 17 वर्ष है और उनके बीच संबंध सहमति से बने थे.
क्या है मामला?
पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार आरोपी ने लड़की के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए थे, जिससे वह गर्भवती हो गई थी. आरोपी को 2020 में ओशीवारा पुलिस ने दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के आरोप में भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण (पोस्को) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि वह इस स्तर पर आरोपी की इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकता कि पीड़िता ने संबंध के लिए सहमति दी थी, लेकिन चूंकि आरोपी 2020 में गिरफ्तारी के बाद से जेल में है इसलिए जमानत दी जानी चाहिए. उच्च न्यायालय ने कहा कि यद्यपि आरोपपत्र दाखिल किया गया लेकिन विशेष अदालत ने आरोप तय नहीं किए हैं.
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