Motivational Story: जिमनास्टिक में 66 गोल्ड समेत 177 मेडल जीते, एक चोट ने बदल दी जिंदगी, अब ओलंपिक मेडल जीतना चाहते हैं पैरा एथलीट मयंक
Motivational Story: जिमनास्टिक में बेहतर प्रदर्शन के चलते मयंक को 10वीं कक्षा में ही सीआरपीएफ में सब इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गई थी. खेल में मिली सफलता ने उन्हें असिस्टेंट कमानडेंट बना दिया था.
इंदौर: किसी ने सच ही कहा है, "हौंसलों की आंधिया इतनी तेज होनी चाहिए कि हाथों में किस्मत की लकीरें भी बदलने को मजबूर हो जाएं.'' इन पंक्तियों को अपनी असली जिंदगी में चरितार्थ कर CRPF के असिस्टेंड कमानडेंट मयंक ने किया है. उन्होंने जिम्नास्टिक में 66 गोल्ड समेत 177 मेडल जीते. प्रैक्टिस के दौरान रीड की हड्डी में चोट लग गई. इस वजह से उन्हें 13 महीने अस्पताल में बिताने पड़े. इसके बाद उनके शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया. लेकिन आज भी हौंसला इतना बुलंद है कि अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों को टेबल टेनिस कोट में प्रतिद्वंदी के रूप में चुनोती दे रहे हैं.
किस तरह से खेलते हैं मयंक श्रीवास्तव
दरअसल अभय प्रशाल में आयोजित पैरा राष्ट्रीय टेबल टेनिस टूर्नामेंट में सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमानडेंट मयंक श्रीवास्तव टूर्नामेंट में हिस्सा लेने आए हैं. व्हील चेयर और एक सहयोगी के बिना वे कुछ भी नहीं कर पाते हैं. यहां तक कि वे अपने हाथ से रैकेट भी नहीं पकड़ पाते हैं, सहयोगी ही उनके हाथ मे रैकेट बांधते हैं. इसके बाद वो मैदान में डट कर अन्य खिलाड़ियों को चुनौती देते आ रहे हैं.
जिमनास्टिक में बेहतर प्रदर्शन के चलते मयंक को 10वीं कक्षा में ही सीआरपीएफ में नौकरी मिल गई थी. मूलत: प्रयागराज के रहने वाले मयंक को सब इंस्पेक्टर के रूप में नौकरी मिली थी. खेल की सफलता ने चोट लगने के पहले तक उन्हें असिस्टेंट कमानडेंट बना दिया था. डिसेबल होने के बाद भी मयंक एबल खिलाड़ियों को व्हील चेयर पर बैठे-बैठे ही जिमनास्टिक की ट्रेनिंग भी देते हैं.
क्या हुआ था इस खिलाड़ी के साथ
सीआरपीएफ के असिस्टेंट कंपनी कमांडर मयंक श्रीवास्तव ने 1994 से 2010 के बीच जिमनास्टिक की तीन विश्व चैंपियनिशप, तीन कॉमनवेल्थ गेम्स, दो एशियन चैंपियनिशप, दो विश्वकप सहित कई टूनार्मेंट में सफलता का परचम फहरा दिया था. इस बीच उन्हें चोट लग गई. उन्होंने 2020 से नेशनल पैरा एथलेटिक्स में भी हिस्सा लिया.
मयंक की पत्नी और दो बेटे हैं. उनके हर टूनार्मेंट में पत्नी उनके साथ होती हैं. हाथों की उंगलियों में जान नहीं है, इसलिए हाथों में रैकेट बांधकर खेलते हैं. मयंक का अब सपना है की देश के लिए ओलंपिक में मेडल जीत सकें और देश का नाम रोशन करें.
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