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Lok Sabha Elections: ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ अरुण यादव को क्यों नहीं मिला टिकट? समझें

Lok Sabha Elections 2024: अरुण यादव के नाम को लेकर खूब चर्चा हुई कि गुना से पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे अरुण यादव को कांग्रेस चुनाव लड़वा सकती है. लेकिन राव यदुवेंद्र सिंह को चुनाव उम्मीदवार बनाया गया.

Lok Sabha Elections 2024: राव यादवेन्द्र सिंह को टिकट देने की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी. कहा जा रहा है कि पार्टी ने केवल चर्चा में रहने के लिए अरुण यादव का नाम आगे बढ़ाया था. दअसल में राव यादुवेन्द्र सिंह को ही टिकट मिलना था. अब आईए जानते हैं क्या है पूरी कहानी? दिग्विजय सिंह को लेकर जो बात चल रही है कि उन्होंने अरुण यादव का टिकट कटवाया है, इसकी सच्चाई क्या है?

दरअसल अरुण यादव के नाम को लेकर पिछले दिनों खूब चर्चा हुई कि गुना लोकसभा सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे अरुण यादव को कांग्रेस चुनाव लड़वा सकती है. गुना से लेकर दिल्ली तक इस बात की जोर-शोर से चर्चा हुई लेकिन अंतत राव यदुवेन्द्र सिंह को कांग्रेस ने चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा उम्मीदवार बनाया.

अरुण यादव को क्यों नहीं दिया गया टिकट ?

अब मुद्दा उठ रहा है कि आखिरकार ऐसी कौन सी बात थी कि अरुण यादव को टिकट दिया ही नहीं गया. क्या दिग्विजय सिंह इसके पीछे रहे या कोई और वजह है जिसके कारण अरुण यादव को यह टिकट नहीं मिल पाया?

कांग्रेस की राजनीति को नजदीक से देखने वाले ग्वालियर के वरिष्ठ पत्रकार देवश्री माली कहते हैं कि दरअसल अरुण यादव को टिकट मिलना ही नहीं था और यह स्क्रिप्ट पहले से लिखी जा चुकी थी. लेकिन सिर्फ चर्चा में नाम बनाए रखने के लिए यह नाम सबके बीच उछाला गया.

वहीं जब अरुण यादव से इस विषय में उन्होंने बात की तो अरुण यादव ने कहा कि गुना से मेरे चुनाव लड़ने या ना लड़ने का फैसला पार्टी का है हालांकि यह बात और है कि वह खुलकर यह नहीं कह पाए की स्क्रिप्ट में उनका नाम कहीं था ही नहीं. यह केवल नाम चर्चा में लाने के लिए बाजार में उछाला गया था.

दअसल इसके पीछे हमें जातिगत समीकरणों को देखना जरूरी है. गुना संसदीय क्षेत्र में करीब 2 लाख यादव वोटर हैं और इन्हें साधने के लिए कांग्रेस को यादव समाज को टिकट देना था. ऐसे में यदि पहले ही राव यादुवेन्द्र सिंह का नाम सार्वजनिक कर दिया जाता तो पार्टी के लिए आंतरिक तौर पर परेशानी खड़ी हो सकती थी. ऐसे में मालवा निमाड़ के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव का नाम ही इस लिस्ट में शामिल किया गया.

लेकिन असल में उन्हें यहां से लड़वाने की कांग्रेस की कोई मंशा नहीं थी. दरअसल ऐसा इसलिए किया गया ताकि नाम सार्वजनिक करने के बाद किसी तरह की कोई आपत्ति पार्टी फोरम पर ना आए.

देव श्री माली बताते हैं कि गुना संसदीय क्षेत्र में अरुण यादव यदि चुनाव लड़ते तो कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती, क्योंकि अरुण यादव यादव समाज से भले ही हो लेकिन गुना में उनकी ना तो कोई रिश्तेदारी है और ना ही कोई बड़ा प्रभाव उन्होंने गुना क्षेत्र में छोड़ा है. ऐसे में अरुण यादव को टिकट देने की रिस्क कांग्रेस नहीं ले सकती थी.

इधर राव यादुवेन्द्र सिंह यादव की बात करें तो वह स्थानीय प्रत्याशी तो है ही साथ ही यादव समाज में काफी लंबे समय से जुड़े हैं और जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ अरुण यादव से ज्यादा मजबूत गुना क्षेत्र में कहीं जा सकती है. यही वजह रही कि अरुण यादव की जगह राव यादुवेन्द्र सिंह को टिकट दिया गया.

अब बात करते हैं अब बात करते हैं दिग्विजय सिंह द्वारा अरुण यादव को रोकने की तो जब अरुण यादव का नाम सामने आया तो सियासी गलियारों में यह चर्चा हुई कि अब दिग्विजय सिंह और उनके पुत्र जयवर्धन सिंह के भविष्य का क्या होगा? क्योंकि अगर अरुण यादव यहां से चुनाव लड़े और जीते तो दिग्गी राजा का प्रभाव इस क्षेत्र में काम हो जाएगा, ऐसा कई राजनीतिक पंडित कह रहे थे.

मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात को जमकर लिखा गया कि दिग्विजय सिंह ने अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए अरुण यादव को टिकट नहीं देने दिया लेकिन अगर आप जातिगत समीकरणों को देखें तो इस बात में दम नजर नहीं आता कि दिग्विजय सिंह के कहने पर यह टिकट काटा गया है. क्योंकि इस समय कांग्रेस मध्य प्रदेश में केवल छिंदवाड़ा सीट पर लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर रही है.

ऐसे में अगर उसे आसपास की लोकसभा सीटों को जितना है तो तमाम समीकरण देखते हुए फैसला करना होगा और शायद कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में यही सब देखकर राव यादुवेन्द्र सिंह को टिकट दिया है.

ये भी पढ़ें: Lok Sabha Election 2024: 'हमने 3 दिवाली मनाई और 2 होली भी मनाएंगे...', गजेंद्र सिंह शेखावत के बयान का क्या है मतलब?

उमेश भारद्वाज एबीपी न्यूज़ में बतौर इंदौर संवाददाता कार्यरत हैं. एबीपी न्यूज़ से पहले उमेश भारद्वाज कई मीडिया संस्थानों में कार्यरत रहे हैं. अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन और पत्रकारिता में मास्टर्स डिग्री के बाद उमेश भारद्वाज लगातार पत्रकारिता में सक्रीय हैं. युवाओं और बेरोजगारी के मुद्दे पर वो लगातार लिखते रहे हैं राजनीतिक खबरों पर उमेश भारद्वाज की पकड़ मजबूत है.
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