जम्मू-कश्मीर में आरक्षण पर अंतिम फैसला नहीं, उपराज्यपाल की मंजूरी का इंतजार: उमर अब्दुल्ला
Jammu and Kashmir News: मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति का अंतिम फैसला अभी उपराज्यपाल की मंजूरी का इंतजार कर रहा है.

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में आरक्षण श्रेणियों के युक्तिकरण पर अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और यह मामला अभी भी आधिकारिक तौर पर विचाराधीन है और उपराज्यपाल की मंज़ूरी का इंतज़ार कर रहा है.श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, उमर ने कहा कि बदलाव पहले ही लागू किए जाने की खबरें अटकलें हैं.
उन्होंने कहा, "कैबिनेट उप-समिति की रिपोर्ट को कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है और संबंधित विभाग को एक विस्तृत ज्ञापन तैयार करने का निर्देश दिया गया है. यह दस्तावेज़ अंतिम मंज़ूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजा जाएगा. जब तक ऐसा नहीं होता, आरक्षण नीति का अंतिम स्वरूप क्या होगा, इस पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी."
गलत सूचना फैलाना गलत, प्रक्रिया प्रशासनिक है
उन्होंने कहा, "विभिन्न श्रेणियों के बीच गलत सूचना फैलाना या अनावश्यक चिंता पैदा करना गलत है. यह प्रक्रिया प्रशासनिक है और इसमें उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. उपराज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद, विवरण सार्वजनिक कर दिए जाएँगे."
यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार आरक्षण ढांचे के भीतर श्रेणियों को मिलाने या बदलने की योजना बना रही है, उमर ने कोई विशेष जानकारी देने से परहेज किया. उन्होंने कहा, "हम आधिकारिक अधिसूचना का इंतज़ार करेंगे. हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरक्षण प्रणाली निष्पक्ष, संतुलित और ज़मीनी हक़ीक़तों को प्रतिबिंबित करती रहे."
समान अवसरों पर सरकार का ध्यान केंद्रित
उन्होंने आगे कहा, "किसी भी सुधार में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि कोई भी समूह खुद को बहिष्कृत या वंचित महसूस न करे. हमारा ध्यान शिक्षा और रोज़गार में समान अवसरों पर केंद्रित है."
उमर ने कहा कि तब तक, किसी के लिए भी यह दावा करना अनुचित होगा कि सरकार ने कोई निश्चित रुख़ अपनाया है. उन्होंने कहा, "आधिकारिक प्रक्रिया पूरी होने दीजिए. उपराज्यपाल के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के बाद, हम पारदर्शी तरीके से विवरण साझा करेंगे."
नई आरक्षण नीति पर विरोध और अदालत में चुनौती
2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में लागू की गई नई आरक्षण नीति के ख़िलाफ़ छात्र और नौकरी के इच्छुक लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस विषम आरक्षण नीति से जम्मू-कश्मीर में आरक्षित वर्गों को अनुचित लाभ मिलता है, जबकि सामान्य कोटे के छात्रों का कोटा कम हो गया है.
2024 में जम्मू और कश्मीर आरक्षण नीति में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए 20% आरक्षण, अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए 8%, पिछड़े क्षेत्रों (आरबीए) के निवासियों के लिए 10%, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 8%, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी)/अंतर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) के साथ निवासियों के लिए 4%, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% और पूर्व सैनिकों के लिए 6% आरक्षण शामिल है.
इसके अतिरिक्त, 10% आरक्षण जोड़ा गया पहाड़ी जातीय समूह और विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) के लिए 4% आरक्षण भी लागू है.
इसलिए कुल आरक्षण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर गया है जिसके बाद कुछ छात्रों ने नई आरक्षण नीति के खिलाफ अदालत का रुख किया. उन्होंने तर्क दिया है कि नए आरक्षण नियम ओपन मेरिट के उम्मीदवारों के लिए नुकसानदेह हैं, जो आबादी का 69 प्रतिशत हिस्सा हैं और नए नियमों से सामाजिक अशांति पैदा हो सकती है.
Source: IOCL























