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Delhi Result 2025: यह 'आप' की हार ही नहीं, बल्कि पतन की शुरुआत, क्या अब बिखर जाएगी पूरी पार्टी? समझें समीकरण

Delhi Result 2025: आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के सियासी मैदान में 2013, 2015 और 2020 में कामयाबी हासिल की, लेकिन पार्टी की उम्र से ज्यादा नेता उससे अपना दामन छुड़ा चुके हैं.

Delhi Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है. यहां की 70 विधानसभा सीटों में से 48 सीटों पर बीजेपी जीतती नजर आ रही है तो लगातार तीन बार सत्ता में रही आम आदमी पार्टी की झोली में 22 सीटें जाती दिख रही हैं. हालांकि, अब अटकलें लगने लगी हैं कि यह सिर्फ हार नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी के पतन की शुरुआत है. इस हार के बाद पार्टी पूरी तरह बिखर सकती है. आइए समझते हैं पूरा समीकरण और एक्सपर्ट्स क्यों कह रहे हैं यह बात?

2012 में बनी थी आम आदमी पार्टी

अन्ना हजारे के नेतृत्व में साल 2011 में शुरू हुए एंटी करप्शन आंदोलन में आम आदमी पार्टी के बीज फूटने शुरू हुए थे. इस आंदोलन में जन लोकपाल बिल की मांग पर सरकार को घेरा गया, लेकिन जब तक डिमांड पूरी होती, तब तक आंदोलन कर रहे लोगों में मतभेद नजर आने लगे. दरअसल, अन्ना हजारे जन लोकपाल आंदोलन को राजनीति से दूर रखना चाहते थे. वहीं, अरविंद केजरीवाल का मानना था कि इस मकसद को हासिल करने का सही तरीका नई राजनीतिक पार्टी बनाकर सियासी मैदान में उतरना है. उस दौरान मनीष सिसोदिया, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने अरविंद केजरीवाल का साथ दिया. उधर, किरण बेदी और संतोष हेगड़े समेत कई लोगों ने अन्ना हजारे का समर्थन किया. 

दो साल में ही दूर हो गए कई साथी

इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 के दिन राजनीतिक दल बनाने का ऐलान किया और 26 नवंबर 2012 के दिन आम आदमी पार्टी का गठन किया गया. अहम बात यह है कि आम आदमी पार्टी बिना किसी खास विचारधारा को अपनाए सियासी मैदान में उतरी थी. पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने साफतौर पर कहा था कि हम आम आदमी हैं. अगर वामपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिलते हैं तो हम वहां से विचार उधार ले लेंगे. यही कदम हमारा दक्षिणपंथी विचारधारा को लेकर भी है. हालांकि, पार्टी बनने की शुरुआत ही साथियों के छूटने से हुई. आम आदमी पार्टी का गठन होते वक्त अन्ना हजारे, किरण बेदी आदि इससे पूरी तरह अलग हो गए. वहीं, पार्टी के फाउंडर मेंबर्स में शुमार योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास और प्रशांत भूषण सरीखे लोगों ने केजरीवाल का साथ छोड़ दिया.

लगातार नजर आई पार्टी में फूट

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के सियासी मैदान में 2013, 2015 और 2020 में कामयाबी हासिल की, लेकिन पार्टी की उम्र से ज्यादा नेता उससे अपना दामन छुड़ा चुके हैं. इनमें कुछ नेताओं को पार्टी से निकाल दिया गया, जबकि काफी नेताओं ने केजरीवाल के रवैये का हवाला देते हुए पार्टी छोड़ दी. अहम बात यह है कि आम आदमी पार्टी को छोड़ने वालों में सिर्फ छोटे-बड़े नेता ही नहीं, बल्कि कई पूर्व आईएएस और आईपीएस भी शामिल थे. 

केजरीवाल के खिलाफ जाना मतलब पार्टी से छुट्टी

गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी के गठन से अब तक प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, आनंद कुमार, अजीत झा, आशुतोष, आशीष खेतान, शाजिया इल्मी, कपिल मिश्रा, मुनीश रायजादा, राजमोहन गांधी, अलका लांबा, मयंक गांधी, अंजली दमानिया, जीआर गोपीनाथ, अशोक चौहान, गुरप्रीत सिंह और आदर्श शास्त्री आदि नेता पार्टी को छोड़ चुके हैं. इनमें प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर निष्कासित किया गया. वहीं, आनंद कुमार और अजीत झा को पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाने के बाद पार्टी से निकाला गया. इसके अलावा कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिसके बाद उन्हें भी पार्टी से निकाल दिया गया.

क्यों हो सकता है 'आप' का पतन?

अब सवाल उठता है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपनी पहली हार के बाद किस तरह पतन की ओर बढ़ सकती है? इसका सबसे पहला कारण पार्टी की विचारधारा है, जिसका कोई रुख नहीं है. इसमें केजरीवाल के खिलाफ आवाज उठाने वालों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया. पार्टी से जुड़े नेताओं में भी आपसी कनेक्शन सिर्फ सत्ता की वजह से रहा है. ऐसे में जीत के रथ पर सवार पार्टी को मिली करारी हार के बाद नेताओं का रुख क्या रहता है, यह देखने लायक होगा. जानकारों की मानें तो मतदान से एक दिन पहले जिस तरह पार्टी के आठ विधायकों ने इस्तीफा दिया था, वैसी ही फूट बीजेपी की सरकार बनने के बाद भी नजर आ सकती है. इससे आम आदमी पार्टी को तगड़ा नुकसान हो सकता है.

यह भी पढ़ें: अब दिल्ली विधानसभा में भी नहीं बैठ पाएंगे अरविंद केजरीवाल, जानें कैसे तय होता है विपक्ष का नेता 

प्रांजुल श्रीवास्तव एबीपी न्यूज में बतौर सीनियर कॉपी एडिटर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. फिलहाल फीचर डेस्क पर काम कर रहे प्रांजुल को पत्रकारिता में 9 साल तजुर्बा है. खबरों के साइड एंगल से लेकर पॉलिटिकल खबरें और एक्सप्लेनर पर उनकी पकड़ बेहतरीन है. लखनऊ के बाबा साहब भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का 'क, ख, ग़' सीखने के बाद उन्होंने कई शहरों में रहकर रिपोर्टिंग की बारीकियों को समझा और अब मीडिया के डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं. प्रांजुल का मानना है कि पाठक को बासी खबरों और बासी न्यूज एंगल से एलर्जी होती है, इसलिए जब तक उसे ताजातरीन खबरें और रोचक एंगल की खुराक न मिले, वह संतुष्ट नहीं होता. इसलिए हर खबर में नवाचार बेहद जरूरी है.

प्रांजुल श्रीवास्तव काम में परफेक्शन पर भरोसा रखते हैं. उनका मानना है कि पत्रकारिता सिर्फ सूचनाओं को पहुंचाने का काम नहीं है, यह भी जरूरी है कि पाठक तक सही और सटीक खबर पहुंचे. इसलिए वह अपने हर टास्क को जिम्मेदारी के साथ शुरू और खत्म करते हैं. 

अलग अलग संस्थानों में काम कर चुके प्रांजुल को खाली समय में किताबें पढ़ने, कविताएं लिखने, घूमने और कुकिंग का भी शौक है. जब वह दफ्तर में नहीं होते तो वह किसी खूबसूरत लोकेशन पर किताबों और चाय के प्याले के साथ आपसे टकरा सकते हैं.

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