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Bihar News: बिहार के बक्सर में धुएं से भर गया आसमान, लिट्टी-चोखा बनाने में जुटे हैं शहर के लोग, भगवान राम से जुड़ी है कथा
विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक पंचकोसी मेले का आज आखिरी दिन है. शनिवार की रात से ही यहां श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया था. सुबह से ही लिट्टी-चोखा बनाने में लोग जुट गए थे.
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बक्सरः बिहार के बक्सर में लगने वाले विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक पंचकोसी मेले का आज आखिरी दिन है. पांच दिवसीय मेले के अंतिम दिन लिट्टी-चोखा बनाने और खाने की परंपरा है. रविवार की सुबह से ही लिट्टी-चोखा बनाने का सिलसिला शुरू हो गया था जो रात तक चलेगा. शनिवार की रात से ही यहां श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया था. यहां श्रद्धालुओं ने खुद उपला लाकर या खरीदकर लिट्टी बनाया और प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. वहीं दूसरों के बीच भी इसे बांटा.
किला मैदान से लेकर बक्सर के अन्य इलाकों में लोग लिट्टी-चोखा बनाते दिखे. रविवार को मेले के अंतिम दिन किला मैदान का ऐसा नजारा देखने को मिला जहां मानों आसमान धुएं से भर गया हो. खुले जगहों पर तो लिट्टी चोखा बनाए ही जा रहे हैं साथ ही शहर के हर घर में लिट्टी-चोखा की आज तैयारी है. चरित्रवन के श्री त्रिदंडी स्वामी आश्रम के समीप संस्कृत महाविद्यालय प्रांगण सहित विभिन्न जगहों पर लिट्टी-चोखा भोज का आयोजन किया गया है.
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कई जगहों पर लिट्टी-चोखा का आयोजन
रेडक्रॉस सोसाइटी से लेकर सर्किट हाउस में भी लिट्टी चोखा का स्पेशल आयोजन किया गया. वहीं, जिला परिषद सदस्य बंटी शाही के सौजन्य से लिट्टी-चोखा भोज का आयोजन किया गया जहां हर समुदाय हर वर्ग पुलिस पदाधिकारी से लेकर सभी पार्टियों के नेता और नवनिर्वाचित जिला परिषद सहित अन्य प्रतिनिधि मौजूद रहे. इस मौके पर लोग गीत गाकर मनोरंजन करते भी दिखे.
बक्सर पहुंचे जीयर स्वामी जी महाराज ने बताया कि बक्सर से ही सृष्टि की शुरुआत होती है. इसलिए बक्सर और बक्सर की पंचकोशी परिक्रमा की महत्ता काफी बढ़ जाती है. बक्सर वह धरती है, जहां तमाम जगहों से आने के बाद यहां हर किसी की मंगल कामना हुई है. उन्होंने बताया कि पंचकोसी परिक्रमा से अपने लक्ष्य से भटका हुआ व्यक्ति भी अपने गंतव्य को प्राप्त कर लेता है.
क्या है मान्यता?
पंचकोसी मेले की लोककथा भगवान राम से जुड़ी है. कहा जाता है कि ताड़का का वध करने के बाद भगवान राम ने बक्सर के पांच स्थलों पर यात्रा किया था. पहले दिन अहिरौली, दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव तथा पांचवें दिन चरित्रवन में रात्रि विश्राम किया और अलग-अलग भोजन ग्रहण किया. ऐसे में अंतिम दिन लिट्टी चोखा से यात्रा की समाप्ति की जाती है.
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