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Navratri 2022: बिहार के इस मंदिर में 9 दिन तक नहीं जा सकती हैं महिलाएं, 350 साल पुराना इतिहास, जानिए कहानी
Maa Ashapuri Mandir Nalanda: नवरात्रि में इस मंदिर में महिलाएं प्रवेश न करें इसलिए पुजारी और गांव के लोग सतर्क रहते हैं. यहां दस दिनों तक तांत्रिक पूजा होती है.
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नालंदा: बिहार के नालंदा में एक ऐसा मंदिर है जहां नवरात्रि के समय 9 दिनों तक महिलाओं के प्रवेश पर रोक होती है. इस मंदिर का इतिहास करीब 350 वर्ष पुराना बताया जाता है. घोसरावां गांव में मां आशापुरी मंदिर (Maa Ashapuri Mandir) में नवरात्र के दौरान तांत्रिक आकर यहां सिद्धि पूजा करते हैं. महिलाओं के प्रवेश होने पर तांत्रिक का ध्यान भंग हो सकता है. इस मंदिर में नवरात्र के समय दस दिनों तक तांत्रिक पूजा होती है. यह परंपरा आदि काल से चला आ रहा है. नवरात्र के समय कोई महिला मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती है. इसके लिए यहां के पुजारी और गांव वाले पूरी तरह से सतर्क रहते हैं.
क्या है मंदिर का इतिहास?
स्थानीय लोगों का कहना है कि तकरीबन साढ़े तीन सौ वर्ष पहले यहां पर माता की प्रतिमा अचानक प्रकट हुई थी. जब इस बात की जानकारी यहां के राजा घोष को मिली तो उन्होंने इसी स्थान पर माता का मंदिर का निर्माण कराया. राजा के द्वारा कराया गया मंदिर निर्माण के कारण इसका नाम घोसरावां गांव रख दिया गया. मंदिर के निर्माण के बाद लोगों ने पूजा पाठ करना शुरू कर दिया. राजा घोष तीन भाई थे जिसके नाम पर घोसरावां, दूसरा बड़गांव व तीसरा तेतरावां नाम पड़ा था.
क्या है मंदिर का महत्व?
आए दिन यहां पर पूजा के लिए किसी पर पाबंदी नहीं है पर नवरात्र में यहां पर महिलाओं के लिए नौ दिन तक प्रवेश वर्जित रहता है. ग्रामीणों की मानें तो दस दिन तक होने वाली पूजा का विशेष महत्व माना गया है. नवरात्र के दौरान दूर दूर से तांत्रिक आकर यहां पर सिद्धि करते हैं. उनका ध्यान भंग ना हो इसलिए यह किया गया है.
कहते हैं मंदिर के पुजारी?
मंदिर के पुजारी का कहना है कि मां आशापुरी के आर्शीवाद से घोसरावां, पावापुरी व आस-पास के सभी गांवों के लोगों के बीच कोई भी संकट आने से पहले ही टल जाता है. माता की महिमा की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. जब भी गांव व आसपास के इलाके में किसी तरह का संकट आता है तो माता के नाम मात्र से ही उसका संकट टल जाता है. नवरात्र के समय घोसरावां मंदिर में बिहार के अलावा कोलकाता, ओडिशा, मध्यप्रदेश, आसाम, दिल्ली, झारखंड समेत अन्य जगहों से श्रद्धालु पहुंचकर दस दिनों तक पूजा-पाठ करते हैं.
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