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लिस्ट जेडीयू की, लोग लालू के; आरजेडी से आए 8 दलबदलुओं को नीतीश ने क्यों सौंपी भारी-भरकम जिम्मेदारी?

कमर आलम, दसई चौधरी, अली अशरफ फातमी और मंगनी लाल मंडल एक वक्त में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के सिपहसलार माने जाते थे, लेकिन अब इन नेताओं को नीतीश कुमार ने जेडीयू के लिए रणनीति बनाने का जिम्मा सौंपा है.

दिल्ली फतह की तैयारी में जुटी नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने मंगलवार (21 मार्च) को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा की है. 32 सदस्यों की भारी-भरकम सूची में यूपी के बाहुबली नेता धनंजय सिंह समेत कई नाम चौंकाने वाले हैं. नई लिस्ट से कद्दावर नेता केसी त्यागी को बाहर कर दिया गया है.

अफाक आलम के हस्ताक्षर से जारी इस सूची में आरजेडी से आए 8 नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है. इनमें कमर आलम, मोहम्मद अली अशरफ फातमी, भगवान सिंह कुशवाहा, दसई चौधरी, मंगनी लाल मंडल, गिरिधारी यादव, हर्षवर्धन सिंह, और विजय मांझी का नाम है. बीजेपी से आए राजीव रंजन सिंह को भी महासचिव बनाया गया है.

कमर आलम, दसई चौधरी, अली अशरफ फातमी और मंगनी लाल मंडल एक वक्त में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के सिपहसलार माने जाते थे, लेकिन अब इन नेताओं को नीतीश कुमार ने जेडीयू के लिए रणनीति बनाने का जिम्मा सौंपा है. मंगनी लाल मंडल को तो जेडीयू में नंबर दो का पद दिया गया है. वे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए हैं. 

पहले नीतीश कुमार के महागठबंधन में शामिल होने और अब लालू यादव के करीबी रहे नेताओं को जेडीयू में जगह देने के फैसले पर बिहार में सियासी गपशप शुरू हो गई है. ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं कि जेडीयू की नई कार्यकारिणी में राजद से आए दलबदलुओं को क्यों बड़ी जिम्मेदारी दी गई है?

पहले राजद से आए 8 नेताओं की कहानी
1. मंगनी लाल मंडल- धानुक समुदाय के मंगनी लाल मंडल को जेडीयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है. जेडीयू के इतिहास में दूसरी बार उपाध्यक्ष का पद बनाया गया है. इससे पहले प्रशांत किशोर को जेडीयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था. 

मंडल लोकसभा और राज्यसभा में सांसद रह चुके हैं. 2009 में राजद को छोड़कर मंडल जेडीयू में शामिल हुए थे, लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ टिप्पणी करने के बाद पार्टी ने उन पर शिकंजा कस दिया था. 

2014 में मंडल फिर से झंझारपुर सीट से चुनावी मैदान में राजद के टिकट पर उतरे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2019 में मंडल चुनाव से पहले फिर जेडीयू में शामिल हो गए थे. मंगनी लाल मंडल बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.

2. दसई चौधरी- चंद्रशेखर सरकार में राज्य मंत्री रहे दसई चौधरी कभी लालू यादव के करीबी माने जाते थे. दसई चौधरी रोसड़ा सीट से 1989-91 तक सांसद रहे. 2013 में कांग्रेस में रहते हुए दसई चौधरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी, जिसके बाद बिहार के सियासत में भूचाल आ गया था.

चौधरी बाद में उपेंद्र कुशवाहा के साथ जुड़े और रालोसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे. बिहार चुनाव से पहले चौधरी जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए थे. अब ललन सिंह ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी है. दसई चौधरी वैशाली के महुआ सीट से विधायक भी रहे हैं.

दसई चौधरी अति पिछड़ा समुदाय से आते हैं. वैशाली, हाजीपुर और उजियारपुर सीट पर उनकी पकड़ मानी जाती है. तीनों सीट बीजेपी गठबंधन के पास है.

3. अली अशरफ फातमी- एक वक्त बिहार के सियासी गलियारों में लालू यादव के दाहिने हाथ माने जाने वाले अली अशरफ फातमी को जेडीयू ने राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया है. दरभंगा लोकसभा सीट से 4 बार सांसद जीत चुके फातमी को मनमोहन मंत्रिमंडल में राजद कोटे से मंत्री बनाया गया था. 

2019 में मधुबनी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद फातमी को राजद ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इसके बाद फातमी जेडीयू में शामिल हो गए थे. बिहार और खासकर मिथिला क्षेत्र में फातमी बड़ा मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं. हाल ही में जब लालू यादव सिंगापुर में इलाज कराने गए थे तो फातमी उनसे मिलने पहुंचे थे.

4. कमर आलम- राजद के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव रह चुके कमर आलम को भी जेडीयू ने राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी है. कमर आलम 2020 से पहले लालू यादव का साथ छोड़ नीतीश कुमार का दामन थामा था. कमर आलम को जेडीयू में लाने में ललन सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई थी. 

संगठन के माहिर नेता माने जाने वाले कमर आलम ने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की थी. एक वक्त में आलम को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी का करीबी माना जाता था. लालू यादव ने जब राजद का गठन किया था तो आलम उनके साथ आ गए.

राजद में तेजस्वी यादव का विरोध करते हुए आलम ने राजद छोड़ दी थी. उस वक्त वे विधान परिषद के सदस्य भी थे.

5. भगवान सिंह कुशवाहा- 2014 में राजद के टिकट से चुनाव लड़ चुके भगवान सिंह कुशवाहा 2021 में जेडीयू में शामिल हो गए थे. कुशवाहा बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. आरा के जगदीशपुर से भगवान सिंह कुशवाहा चार बार विधायक रह चुके हैं.

जदयू ने भगवान सिंह कुशवाहा को राष्ट्रीय महासचिव बनाया है. कुशवाहा की नियुक्ति उपेंद्र कुशवाहा के काट के तौर पर देखा जा रहा है. शाहाबाद जोन में कुशवाहा वोटर्स का दबदबा माना जाता है और इन इलाकों में भगवान सिंह कुशवाहा की पकड़ मान जाती है.

6. गिरिधारी यादव- बांका से जेडीयू के सांसद गिरिधारी यादव की गिनती एक वक्त में लालू यादव के करीबियों में होती थी. 2009 में नीतीश कुमार गिरिधारी को अपने पाले में लाए थे. उस वक्त गिरिधारी यादव ने जनता दल के बागी दिग्विजय सिंह को कड़ी टक्कर दी थी. 2019 के चुनाव में भी गिरिधारी ने राजद के कद्दावर नेता जयप्रकाश यादव को हराया था.

जनता दल के टिकट पर गिरिधारी पहली बार 1995 में कटोरिया से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. जनता दल में टूट हुई तो गिरिधारी लालू के साथ आ गए. 2004 से लेकर 2009 तक वे लोकसभा के सांसद भी रहे. 2009 में राजद ने उन्हें टिकट नहीं दिया था. 

7. विजय मांझी- समाजवादी नेता भागवती देवी के बेटे विजय मांझी 2019 में तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने गया सीट से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को चुनाव हरा दिया. विजय मांझी ने राजनीतिक करियर की शुरुआत राजद से की थी. 2005 तक के वे लालू यादव के साथ थे, लेकिन फिर नीतीश कुमार का दामन थाम लिया.

फरवरी 2005 में हुए चुनाव में राजद ने विजय मांझी को बाराचट्टी से मैदान में उतारा. मांझी जीतकर सदन पहुंचने में भी कामयाब रहे, लेकिन 6 महीने में ही विधानसभा भंग हो गई. इसके बाद राजद ने विजय के बदले उनकी बहन समता देवी को टिकट दे दिया. विजय मांझी चुनाव के बाद राजद से बगावत कर बैठे. 

जेडीयू में आने के बाद मांझी कई पदों पर रहे. 2024 के रण से पहले नीतीश कुमार ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी है. 

8. हर्षवर्धन सिंह- तेजतर्रार छवि के माने जाने वाले हर्षवर्धन सिंह 2020 में राजद छोड़ जेडीयू में शामिल हो गए थे. हर्षवर्धन उस वक्त राजद के राष्ट्रीय सचिव थे. हर्षवर्धन सिंह की कार्यकर्ताओं के बीच जबरदस्त पकड़ मानी जाती है. चुनावी मैनेजमेंट की राजनीति के भी वे माहिर माने जाते हैं. 

2021 में अध्यक्ष बनने के बाद ललन सिंह ने दिल्ली में पार्टी कार्यालय संभालने की जिम्मेदारी हर्षवर्धन सिंह को ही सौंपी थी. इसके बाद से पार्टी के सांसदों और नेताओं की सक्रियता भी यहां बढ़ गई.

18 के मुकाबले 32, रणनीति क्या?
जेडीयू की पिछली कार्यकारिणी में 18 पदाधिकारी बनाए गए थे, जिसमें से 9 को महासचिव नियुक्त किया गया था. उस वक्त संसदीय बोर्ड अध्यक्ष का पद भी पार्टी ने बनाया था. हालांकि, इस बार कार्यकारिणी में इसे खत्म कर दिया गया है. आलोक सुमन पहले की तरह जेडीयू का बहीखाता देखते रहेंगे.

पार्टी ने इस बार 32 नेताओं को पदाधिकारी नियुक्त किया है. इस बार 22 राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए हैं और एक उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया है. लिस्ट में अति पिछड़ा और मुसलमानों को विशेष तरजीह दी गई है. लिस्ट में एक महिला कहकंशा परवीन को भी जगह मिली है. 

लिस्ट में बिहार के क्षेत्रीय पॉलिटिक्स का भी ध्यान रखा गया है. बिहार के अलावा महाराष्ट्र, यूपी और झारखंड के नेताओं को भी जगह दी गई है.

जेडीयू की लिस्ट में लालू के नेता क्यों, 4 वजह...

1. महागठबंधन में नीतीश कुमार के शामिल होने के बाद रणनीति तैयार करने में आसानी होगी. कार्यकर्ताओं के संपर्क भी आसानी से बन सकेगा. दोनों के वोट एक-दूसरे में ट्रांसफर कराने में भी दिक्कत नहीं आएगी.

2. राजद से जदयू में आए नेता मूल रूप से बीजेपी के विरोधी रहे हैं. इन नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देने के पीछे चुनावी साल में टूट से बचने को भी वजह माना जा रहा है. जेडीयू को डर है कि चुनावी साल में बड़े नेताओं को अगर बीजेपी तोड़ देगी तो इसका मैसेज गलत जाएगा.

3. उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह के जाने के बाद नीतीश कुमार नए सिरे से रणनीति तैयार कर रहे हैं. लव-कुश समीकरण के साथ ही अति पिछड़ों को भी साधने की कोशिश हो रही है.

4. पिछले 15 सालों में जदयू बैकग्राउंड के कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. राजद से आए नेता ही जमीनी स्तर पर कमान संभाल रहे हैं. ऐसे में इन नेताओं को जिम्मेदारी देने की मजबूरी भी है.

तीन राज्यों में लड़ने की तैयारी, टारगेट मिशन दिल्ली
जदयू बिहार, यूपी और झारखंड में लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है. झारखंड के नेता खीरू महतो को पिछले साल पार्टी ने राज्यसभा भेजा था, जबकि यूपी में सपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ने की बात कही थी. जेडीयू की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़के दिल्ली की दावेदारी को मजबूत किया जाए.

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