बिहार: सुपौल के इस अस्पताल में नहीं है बेड, मरीजों को ऑपेरशन के बाद फर्श पर करना पड़ता है गुजारा
अस्पताल में साधन-संसाधन की काफी कमी है, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है. यहां मरीजों का इलाज तो होता है पर मर्ज घटने की बजाय और बढ़ जाता है.

सुपौल: सूबे की सरकार राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था के अच्छा होने का भले ही दावा करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है. कहीं डॉक्टर नहीं आते, कहीं दवाई उपलब्ध नहीं होती है तो कहीं मरीजों के सोने के लिए बेड ही नहीं है. ताजा मामला त्रिवेणीगंज अनुमंडलीय अस्पताल का है, जहां एक सौ बेड की जगह मात्र पन्द्रह बेड ही मौजूद हैं. लेकिन वह पन्द्रह बेड भी साल भर से टूटे पड़े हुए हैं.
ऐसे में मरीजों को इलाज के बाद बेड नहीं फर्श पर लेटा दिया जाता है. अस्पताल में साधन-संसाधन की काफी कमी है, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है. यहां मरीजों का इलाज तो होता है पर मर्ज घटने की बजाय और बढ़ जाता है. सप्ताह में दो दिन मंगलवार और गुरुवार को लगाये जाने वाले परिवार नियोजन शिविर में ऑपरेशन के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं अस्पताल पहुंचती हैं. लेकिन महिलाओं को शिविर में स्वास्थ्य विभाग की ओर से किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं दी जा रही है.
बेड के अभाव में दर्जनों महिलाएं फर्श और रास्ते को अपना शयन स्थल बनाने को मजबूर हैं. ठंड रहने के बावजूद शिविर में महिला मरीजों के लिए कंबल तक की व्यवस्था नहीं की जाती है. महिलाओं के साथ आने वाले स्वजन के समय गुजारने के लिए एक अलाव तक की व्यवस्था भी नहीं रहती. कई मरीजों के स्वजन ने बताया कि सरकार भले ही आमलोगों को बेहतर चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराने का दावा करती है. लेकिन सरकारी व्यवस्था के नाम पर उनलोगों को छला जा रहा है.
उन्होंने कहा कि अस्पताल प्रबंधन इस दिशा में बिल्कुल ही संवेदनहीन है. शिविर में मरीजों और उनके स्वजनों को मूलभूत सुविधा के लिए विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ता. ऐसे में स्वजनों ने प्रशासन और विभाग के वरीय अधिकारी को मामले को गंभीरता से लेते समस्याओं के निदान का अनुरोध किया. साथ ही शिविर आयोजन में संवेदनहीनता बरतने वाले प्रबंधन के विरूद्ध कार्रवाई करने की मांग की है.
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