Bihar Election: हो जाओ चोकस, जनता पर हो फोकस! बिहार चुनाव से ये 5 सबक लें राजनीतिक पार्टियां
Bihar Election Result: बिहार चुनाव के नतीजों से स्पष्ट है कि अब चुनाव जीतना है तो ठोस प्रदर्शन, विश्वसनीयता, सकारात्मक राजनीति और सामाजिक समीकरणों को साधना होगा.

Bihar Election Result 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे अब लगभग स्पष्ट हो चुके हैं. एनडीए ने एक बार फिर शानदार प्रदर्शन करते हुए सत्ता में वापसी की है, जबकि महागठबंधन को बड़ा झटका लगा है. रुझानों में एनडीए बड़ी जीत की ओर है. जबकि इस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनने की दहलीज पर है. विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों और खासकर क्षेत्रीय दलों के लिए कई महत्वपूर्ण सबक दिए हैं, जिन्हें भविष्य में नजरअंदाज करना किसी भी पार्टी के लिए अब भारी पड़ सकता है. यानी महागठबंधन की तरह दुर्गति का सामना करना पड़ सकता है.
1. ऐसे वादें करें, जो लागू हो सकें: विश्वसनीयता सबसे अहम
राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि मतदाता अब केवल बड़े और लुभावने नारों पर वोट नहीं देते. उन्हें ठोस और ऐसे वादे चाहिए, जो धरातल पर उतर सके. महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव का 'हर घर को सरकारी नौकरी' और 'महिलाओं को साल में एक साथ 30 हजार रुपए' देने का वादा इस कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया. ये वादे इतने बड़े और वित्तीय रूप से कमजोर थे कि जनता ने इन पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया. यानी जनता यह जान चुकी है कि इन वादों पर जितना खर्च होगा, उतना तो बिहार का बजट भी नहीं है.
2. संस्थाओं पर हमले नहीं, जनता के मुद्दों पर फोकस
राजनीतिक दलों को संवैधानिक और चुनाव कराने वाली संस्थाा चुनाव आयोग पर बार-बार सवाल खड़े करने से बचना चाहिए. चुनाव प्रक्रिया पर आरोप लगाना कहीं न कहीं जनता के बीच नकारात्मकता फैलाता है. महागठबंधन के नेताओं ने चुनाव के दौरान जनता के मुद्दों पर फोकस न करके, आयोग पर आरोप लगाए. अब नतीजों के बाद जनता ने साफ कर दिया है कि वे उन दलों को प्राथमिकता देंगे जो आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से ऊपर उठकर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और बुनियादी ढांचे जैसे वास्तविक जनहित के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
3. वोटिंग से ऐन पहले चुनावी रेवड़ियां बांटने से मिलता है फायदा!
बिहार चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित किया है कि चुनाव से ठीक पहले जनता को लुभाने वाले बड़े ऐलान या चुनावी रेवड़ियां (मुफ्त सुविधाओं) की घोषणाएं वोट बटोरने में मदद कर सकती हैं. ये घोषणाएं अक्सर मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास, साथ ही गरीबी रेखा से नीचे वाले वर्ग को तुरंत राहत देती हैं, जिससे मतदाताओं का झुकाव उस पार्टी की ओर हो जाता है. हालांकि यह नीति दीर्घकालिक विकास के लिए सही नहीं हो सकती, लेकिन चुनावी लाभ के लिए इसकी अहमीयत को कम नहीं आंका जा सकता.
4. महिलाओं के मुद्दों पर फोकस: 'साइलेंट वोटर' की अहमियत
बिहार चुनाव और इससे पहले के चुनावों में एक महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव देखने को मिल रहा है. महिलाएं अब न केवल बड़ी संख्या में मतदान कर रही हैं, बल्कि वे एक निर्णायक 'साइलेंट वोटर' के रूप में भी उभरी हैं. इस चुनाव में करीब 71 फीसदी महिलाओं ने अपने वोट अधिकार का इस्तेमाल किया है, जो एक रिकॉर्ड है. इससे साफ है कि राजनीतिक दलों को महिलाओं के सुरक्षा, सशक्तिकरण और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान देना होगा. जो पार्टी महिलाओं के हितों को साधने में सफल होगी, उसे भविष्य के चुनावों में बड़ी सफलता मिलेगी.
5. केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार की चाहत
बिहार के मतदाताओं ने यह संकेत दिया है कि वह अब राज्य और केंद्र में एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन की सरकार चाहते हैं. जनता यह नहीं चाहती कि राज्य और केंद्र में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हों, जिससे विवादास्पद स्थितियां बनें और विकास के कार्यों में अनावश्यक बाधाएं आएं. यानी डबल इंजन वाली सरकार की थ्योरी को जनता अब स्थिरता और विकास के रूप में देख रही है.
Source: IOCL























