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Bihar Assembly Elections: बिहार चुनाव में टेंशन की डोज देंगे असदुद्दीन ओवैसी! क्या RJD के लिए पैदा होंगी मुश्किलें

Asaduddin Owaisi Party: एआइएमआइएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने साफ कर दिया कि वह तीसरा मोर्चा बनाएंगे. उससे अब सवाल उठने लगा है कि क्या 2020 वाली कहानी फिर ओवैसी दोहरा सकते हैं.

Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में सभी पार्टियों जोर-शोर से लगी हुई हैं. महागठबंधन में आरजेडी हमेशा की तरह इस बार भी लिड पार्टी की भूमिका में रहेगी और उसकी बड़ी वजह है कि लालू प्रसाद यादव का कोर वोटर एम-वाय समीकरण अभी तक उनके पाले में है, लेकिन सवाल उठने लगा है कि क्या असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन इस बार भी तेजस्वी यादव का खेल को बिगाड़ देगी. क्या लालू यादव के मुस्लिम वोटर में इस बार बिखराव हो जाएगा.

महागठबंधन को सपोर्ट करेंगे मुस्लिम संगठन

ऐसे कई सवाल उठने लगे हैं. बीते रविवार को पटना के गांधी मैदान में वफ्फ बोर्ड संशोधन बिल के मामले पर कई धार्मिक मुस्लिम संगठनों का एक बड़ा जुटान हुआ, जिसमें तेजस्वी यादव भी पहुंचे. उसे दिन तेजस्वी यादव का सीना चौड़ा हो गया, क्योंकि सभी मुस्लिम संगठन ने महागठबंधन को सपोर्ट करने की बात की.

हालांकि सोमवार को जिस तरीके से एआइएमआइएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने साफ कर दिया कि वह तीसरा मोर्चा बनाएंगे. उससे अब सवाल उठने लगा है कि क्या 2020 वाली कहानी फिर ओवैसी दोहरा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो एक बार फिर एनडीए की बल्ले-बल्ले होना निश्चित है और तेजस्वी यादव को एक बार फिर झटका लग सकता है . 

दरअसल एआईएमआईएम के बिहार अध्यक्ष एवं विधायक अखतरुल ईमान ने कहा कि ब हम चाहते हैं कि सेकुलर वोटों में बिखराव न हो. हम महागठबंधन में शामिल होना चाहते थे. गठबंधन के लिए प्रस्ताव भेजा था, लेकिन महागठबंधन से स्पष्ट जवाब नहीं आया. कोई पॉजिटिव रेस्पॉन्स नहीं मिला.

उन्होंने कहा कि महागठबंधन वाले ना हां बोलते न ना बोलते हैं. चुप्पी साधे हुए हैं. उनके इंतजार में हम नहीं बैठे रहेंगे. तीसरा विकल्प मतलब तीसरा मोर्चा बनाने पर भी हम काम कर रहे हैं. चुनाव को लेकर हम लोग अपनी तैयारी में लगे हुए हैं.

बतादें कि बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर अहम भूमिका अदा करते हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 ऐसी सीटें हैं, जहां 40 % से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं.

इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. 10 फ़ीसदी से कुछ ज्यादा या कम कई विधानसभा सीटों में मुस्लिम वोटर हैं, भले निर्णायक नहीं होते हैं लेकिन आरजेडी के बड़ा फायदा होता है. अब ऐसे में अगर ओवैसी की पार्टी तीसरा मोर्चा बनाकर अलग चुनाव लड़ती है तो क्या बिहार के करीब 17% से ज्यादा मुस्लिम वोटर में बिखराव हो जाएगा.

अगर 2020 के समीकरण की बात करें तो बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ मिलकर  20 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतरी थी, जिसमें 16 उम्मीदवार मुस्लिम थे और मुस्लिम विधायकों के जीतने में आंकड़े में दूसरे नंबर पर रही थी .

एआईएमआईएम को बिहार की पांच सीटों पर जीत मिली थी, जिनमें अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट है. ये सीटें सीमांचल के इलाके की थी, जहां मुस्लिम कैंडिडेट एआईएमआईएम से ही जीत दर्ज किए हैं. यह अलग बात है कि बाद में आरजेडी ने ओवैसी के चार विधायकों को तोड़कर अपने पार्टी में शामिल कर लिया था.

आंकड़े देखें तो एआईएमआईएम ने आरजेडी और कांग्रेस दोनों को 2020 में बड़ा झटका दिया था. उस वक्त आरजेडी ने सबसे ज्यादा 17 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 8 जीतने में सफल रहे थे. दूसरे नंबर पर पांच विधायक लेकर ओवैसी की पार्टी रही थी. 2020 में ओवैसी ने आरजेडी को तीन विधायकों का हानि पहुंचाया था, क्योंकि 2015 के चुनाव में आरजेडी से 11 मुस्लिम विधायक जीतने में कामयाब रहे थे.

इसी तरह कांग्रेस को भी ओवैसी की पार्टी ने 2020 में बड़ा झटका दिया था. कांग्रेस पार्टी का सीमांचल में गढ़ माना जाता रहा है. पिछले 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों में से 10 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन चार प्रत्याशी ही जीत दर्ज किये थे. वही 2015 के चुनाव में कांग्रेस से 6 मुस्लिम विधायक जीतने में कामयाब रहे थे, लेकिन 2020 ने दो संख्या घट गई थी.

सबसे बड़ी बात ये रही कि कांग्रेस के दो मुस्लिम विधायक हारे थे, जहां पिछले 2 दशक से जीतते आ रहे थे. ये दोनों सीटें एआईएमआईएम के खाते में गई थी. बता दें कि असदुद्दीन ओवैसी पिछली बार सीमांचल में कैंप किए हुई थी और उन्होंने दस दिन में ताबड़तोड़ रैलियां करके सियासी माहौल अपने पक्ष में करने का काम किया था.

सीमांचल में मजबूत हुए थे असदुद्दीन ओवैसी 

असदुद्दीन ओवैसी ने पहली बार ईद-मिलादुन नबी का त्योहार हैदराबाद के बजाए बिहार में मनाया था. सीमांचल के इलाके में उन्होंने सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दे को हवा देकर मुस्लिमों की नब्ज को पकड़ा था, क्योंकि बीजेपी नेता लगातार घुसपैठ का मुद्दा उठा रहे थे. महागठबंधन के नेताओं ने इस पर चुप्पी साध रखी थी.

यही वजह रही थी कि सीमांचल के मुसलमानों की पहली पसंद एआईएमआईएम बन गई थी. लेकिन इस बार मुद्दा कुछ अलग है. इस बार वफ्फ संशोधन बिल का मुद्दा है जिस पर आरजेडी और कांग्रेस दोनों खुलकर बीजेपी के खिलाफ मैदान में है और इसी मुद्दे पर ओवैसी की पार्टी भी बड़ा मुद्दा बनाए हुए हैं. ऐसे में इस मुद्दे का किसको लाभ मिलेगा यह देखने वाली बात होगी.

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