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Baba Prithvinath Temple: यूपी के गोंडा में है एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग, राक्षस का वध कर महाबली भीम ने की थी स्थापना

Gonda Baba Prithvinath Temple: यूपी के गोंडा जिले में स्थित बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर में विश्व का सबसे ऊंचा शिवलिंग स्थापित है. कहा जाता है सावन में यहां दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है.

Gonda Baba Prithvinath Temple: यूपी के गोंडा जिले में स्थित बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर में विश्व का सबसे ऊंचा शिवलिंग स्थापित है. कहा जाता है सावन में यहां दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है.

बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित है विश्व का सबसे ऊंचा शिवलिंग

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Gonda Shiv Mandir: भगवान भोलेनाथ को सावन (Sawan 2022) का महीना बहुत प्रिय है. मान्यता है कि इस पवित्र महीने में भगवान शिव की आराधना से ना सिर्फ विशेष पुण्य मिलता है बल्कि शिव शंभू की विशेष कृपा भी भक्तों पर होती है. आज भोले की भक्ति में जिक्र एक ऐसी भक्ति का जिसमें भक्त ने अपने भगवान के लिए सबसे बड़े शिवलिंग की स्थापना कर दी थी. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गोंडा (Gonda) जिले में मौजूद ऐतिहासिक शिव के धाम बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर की स्थापाना खुद महाबलशाली भीम ने की थी.
Gonda Shiv Mandir: भगवान भोलेनाथ को सावन (Sawan 2022) का महीना बहुत प्रिय है. मान्यता है कि इस पवित्र महीने में भगवान शिव की आराधना से ना सिर्फ विशेष पुण्य मिलता है बल्कि शिव शंभू की विशेष कृपा भी भक्तों पर होती है. आज भोले की भक्ति में जिक्र एक ऐसी भक्ति का जिसमें भक्त ने अपने भगवान के लिए सबसे बड़े शिवलिंग की स्थापना कर दी थी. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गोंडा (Gonda) जिले में मौजूद ऐतिहासिक शिव के धाम बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर की स्थापाना खुद महाबलशाली भीम ने की थी.
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पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि अज्ञातवास के दौर में पांडुपुत्र भीम ने राक्षस बकासुर का वध किया था. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भीम ने भगवान शिव की आराधना कर विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है.
पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि अज्ञातवास के दौर में पांडुपुत्र भीम ने राक्षस बकासुर का वध किया था. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भीम ने भगवान शिव की आराधना कर विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है.
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इस मंदिर में हर रोज बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. लेकिन सावन के महीनों में यहां भक्तों की बड़ी संख्या भगवान शिव के दर्शन करने पहुंचती है. खरगूपुर में स्थित ऐतिहासिक पृथ्वीनाथ मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना माना जाता है. मान्यता है कि पांडवों ने चक्रनगरी में अज्ञातवास के दौरान शरण ली थी. यहां रहने वाला बकासुर नाम का राक्षस हर रोज एक व्यक्ति को भोजन के तौर पर खा जाता था.
इस मंदिर में हर रोज बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. लेकिन सावन के महीनों में यहां भक्तों की बड़ी संख्या भगवान शिव के दर्शन करने पहुंचती है. खरगूपुर में स्थित ऐतिहासिक पृथ्वीनाथ मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना माना जाता है. मान्यता है कि पांडवों ने चक्रनगरी में अज्ञातवास के दौरान शरण ली थी. यहां रहने वाला बकासुर नाम का राक्षस हर रोज एक व्यक्ति को भोजन के तौर पर खा जाता था.
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एक दिन पांडवों को शरण देने वाले परिवार की बारी आई तो परिवार के सदस्य के बताय भीम बकासुर का भोजन बनने के लिए चले गए. इस दौरान भीम और बकासुर में भीषण युद्ध हुआ तो भीम ने राक्षस का वध कर दिया. इस पाप से प्रायश्चित के लिए ही भीम ने यहां विशाल शिवलिंग की स्थापना कर आराधना की थी.
एक दिन पांडवों को शरण देने वाले परिवार की बारी आई तो परिवार के सदस्य के बताय भीम बकासुर का भोजन बनने के लिए चले गए. इस दौरान भीम और बकासुर में भीषण युद्ध हुआ तो भीम ने राक्षस का वध कर दिया. इस पाप से प्रायश्चित के लिए ही भीम ने यहां विशाल शिवलिंग की स्थापना कर आराधना की थी.
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वक्त के साथ-साथ भीम का बनाया मंदिर धीरे-धीरे जर्जर होता गया और शिवलिंग भी जमीन में समा गया. इसके लंबे वक्त के बाद यहां रहने वाले पृथ्वी सिंह ने अपने घर में निर्माण के लिए खुदाई का काम शुरू कराया था. रात के वक्त उन्हें सपने में शिवलिंग के होने की बात पता चली. इसके बाद खुदाई में विशाल शिवलिंग बाहर आया. जिसके बाद यहां पूजा-अर्चना कर यहां मंदिर की स्थापना की गई थी. जिसके बाद इस मंदिर का नाम पृथ्वीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाने लगा.
वक्त के साथ-साथ भीम का बनाया मंदिर धीरे-धीरे जर्जर होता गया और शिवलिंग भी जमीन में समा गया. इसके लंबे वक्त के बाद यहां रहने वाले पृथ्वी सिंह ने अपने घर में निर्माण के लिए खुदाई का काम शुरू कराया था. रात के वक्त उन्हें सपने में शिवलिंग के होने की बात पता चली. इसके बाद खुदाई में विशाल शिवलिंग बाहर आया. जिसके बाद यहां पूजा-अर्चना कर यहां मंदिर की स्थापना की गई थी. जिसके बाद इस मंदिर का नाम पृथ्वीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाने लगा.
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खास बात ये कि पुरातत्व विभाग ने इसे एशिया के सबसे बड़े शिवलिंग के तौर पर मान्यता दी है. करीब तीन दशक पहले तत्कालीन सांसद कुंवर आनंद सिंह ने पुरातत्व विभाग को इस मंदिर की पौराणिकता की जांच के लिए पत्र लिखा था. पुरातत्व विभाग की टीम ने यहां पड़ताल की तो पता चला कि ये शिवलिंग एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है जो 5 हजार वर्ष पूर्व महाभारत कालीन है.
खास बात ये कि पुरातत्व विभाग ने इसे एशिया के सबसे बड़े शिवलिंग के तौर पर मान्यता दी है. करीब तीन दशक पहले तत्कालीन सांसद कुंवर आनंद सिंह ने पुरातत्व विभाग को इस मंदिर की पौराणिकता की जांच के लिए पत्र लिखा था. पुरातत्व विभाग की टीम ने यहां पड़ताल की तो पता चला कि ये शिवलिंग एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है जो 5 हजार वर्ष पूर्व महाभारत कालीन है.

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