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Jhunjhunu News: झुंझुनू में मिला सैकड़ों साल पुराना घी से भरा कलश, सैंपल के लिए भेजा जाएगा लैब, देखें तस्वीरें

(झुंझुनू में मिला सैकड़ों साल पुराना घी से भरा कलश)

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झुंझुनू के बिसाऊ के समीप गांव टांई के नाथ आश्रम के शिखरबंद में लगाए कलश में रखा 200 साल बाद भी उसी ताजगी और महक के साथ मिला है. गांव के भवानी सिंह ने बताया कि इन दिनों आश्रम के नवनिर्माण का कार्य चल रहा है. जब शिखरबंद को हटाया गया तो उसमें घी से भरे कलश को सुरक्षित तरीके से वहां से उतारा गया. घी देखने में एकदम ताजा है और सुगंध भी अच्छी है.
झुंझुनू के बिसाऊ के समीप गांव टांई के नाथ आश्रम के शिखरबंद में लगाए कलश में रखा 200 साल बाद भी उसी ताजगी और महक के साथ मिला है. गांव के भवानी सिंह ने बताया कि इन दिनों आश्रम के नवनिर्माण का कार्य चल रहा है. जब शिखरबंद को हटाया गया तो उसमें घी से भरे कलश को सुरक्षित तरीके से वहां से उतारा गया. घी देखने में एकदम ताजा है और सुगंध भी अच्छी है.
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इसके मिलते ही उस कलश और घी को देखने की होड़ मच गई. आश्रम के सोमनाथ महाराज ने बताया कि नवनिर्माण के दौरान शिखरबंद बनते समय पुन: इसी घी से भरे कलश को यहां स्थापित किया जाएगा. आश्रम के महंत सोमनाथ महाराज कहते हैं कि आश्रम को बने करीब सैकड़ों साल से ज्यादा हो गए हैं. निर्माण के वक्त ही शिखर में घी का कलश रखा गया था.
इसके मिलते ही उस कलश और घी को देखने की होड़ मच गई. आश्रम के सोमनाथ महाराज ने बताया कि नवनिर्माण के दौरान शिखरबंद बनते समय पुन: इसी घी से भरे कलश को यहां स्थापित किया जाएगा. आश्रम के महंत सोमनाथ महाराज कहते हैं कि आश्रम को बने करीब सैकड़ों साल से ज्यादा हो गए हैं. निर्माण के वक्त ही शिखर में घी का कलश रखा गया था.
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ऐसे में घी 200 साल से अधिक पुराना है. महंत ने बताया कि अकसर वे सुनते थे कि गाय का घी लंबे समय तक ताजा रहता है. आपको बता दें कि झुंझुनू मुख्यालय से चूरू रोड पर करीब 35 किलोमीटर दूर मन्नानाथ पंथियों का आश्रम बना हुआ है. इस आश्रम का इतिहास काफी पुराना है. ग्रामीणों के मुताबिक इस आश्रम का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है.
ऐसे में घी 200 साल से अधिक पुराना है. महंत ने बताया कि अकसर वे सुनते थे कि गाय का घी लंबे समय तक ताजा रहता है. आपको बता दें कि झुंझुनू मुख्यालय से चूरू रोड पर करीब 35 किलोमीटर दूर मन्नानाथ पंथियों का आश्रम बना हुआ है. इस आश्रम का इतिहास काफी पुराना है. ग्रामीणों के मुताबिक इस आश्रम का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है.
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राजा अपना राजपाट छोड़कर तपस्या के लिए आए थे. बाबा गोरखनाथ ने उन्हें कहा था कि जहां पर यह घोड़ा रूक जाए वहीं पर अपनी तपस्या स्थल बना लेना. राज रशालु का घोड़ा इसी भूमि पर आकर रूका था. रशालु ने यहां पर तपस्या की थी. गोरखनाथ अपने शिष्य को संभालने के लिए टांई की इस तपस्या भूमि पर आए थे. रशालु तपस्या में लीन थे. बाबा गोरखनाथ ने उन्हें मन्ना नाथा नाम दिया था. तब ही मन्ना नाथी पंथ शुरू हुआ था.
राजा अपना राजपाट छोड़कर तपस्या के लिए आए थे. बाबा गोरखनाथ ने उन्हें कहा था कि जहां पर यह घोड़ा रूक जाए वहीं पर अपनी तपस्या स्थल बना लेना. राज रशालु का घोड़ा इसी भूमि पर आकर रूका था. रशालु ने यहां पर तपस्या की थी. गोरखनाथ अपने शिष्य को संभालने के लिए टांई की इस तपस्या भूमि पर आए थे. रशालु तपस्या में लीन थे. बाबा गोरखनाथ ने उन्हें मन्ना नाथा नाम दिया था. तब ही मन्ना नाथी पंथ शुरू हुआ था.
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ग्रामीण बताते हैं कि टांई का नाम भी इसी मठ से जुड़ा हुआ है. कहते हैं कि गोरखनाथ के शिष्य रशालु ने अपना झोला एक सूखी टहनी पर टांग दिया था. इससे वह सूखी टहनी हरी हो गई थी. यहीं से इस गांव का नाम टांई पड़ गया था. गांवों में पेड़ की टहनी को भी टांई कहते हैं.
ग्रामीण बताते हैं कि टांई का नाम भी इसी मठ से जुड़ा हुआ है. कहते हैं कि गोरखनाथ के शिष्य रशालु ने अपना झोला एक सूखी टहनी पर टांग दिया था. इससे वह सूखी टहनी हरी हो गई थी. यहीं से इस गांव का नाम टांई पड़ गया था. गांवों में पेड़ की टहनी को भी टांई कहते हैं.
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टांई मठ के महंत सोमनाथ ने बताया कि 70 साल पहले समाधी को बड़ा और सुंदर बनाने के लिए  शिखरबन्द को ऊंचा उठाने के लिए ठंडा किया गया. मान्यता है कि शिखरबन्द को सुना नहीं छोड़ते. इसमें देवता का वास होता है. इतने समय पहले इस शिखरबन्द में रखे घी की खुशबू आज भी ऐसी है कि यदि कमरे में इस कलश का ढक्कन खोला जाए तो महक से कमरा खिल उठता है. इस घी के कलश को शिखरबन्द में 250 साल पहले शंकरनाथ के हाथों रखा गया था.
टांई मठ के महंत सोमनाथ ने बताया कि 70 साल पहले समाधी को बड़ा और सुंदर बनाने के लिए  शिखरबन्द को ऊंचा उठाने के लिए ठंडा किया गया. मान्यता है कि शिखरबन्द को सुना नहीं छोड़ते. इसमें देवता का वास होता है. इतने समय पहले इस शिखरबन्द में रखे घी की खुशबू आज भी ऐसी है कि यदि कमरे में इस कलश का ढक्कन खोला जाए तो महक से कमरा खिल उठता है. इस घी के कलश को शिखरबन्द में 250 साल पहले शंकरनाथ के हाथों रखा गया था.
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उसके बाद बूटीनाथ ने इस समाधि के शिखरबंद को बड़ा करके इस घी के कलश को शिखरबंद में रखा. उसके बाद रामनाथ और उसके बाद केसरनाथ उसके बाद ज्ञाननाथ ने इस शिखरबंद को इस घी के कलश को समाधि के शिखरबंद में रखा. अब इसे सोमनाथ के द्वारा समाधि को बड़ा करके इसके शिखरबंद में रखा जाएगा.
उसके बाद बूटीनाथ ने इस समाधि के शिखरबंद को बड़ा करके इस घी के कलश को शिखरबंद में रखा. उसके बाद रामनाथ और उसके बाद केसरनाथ उसके बाद ज्ञाननाथ ने इस शिखरबंद को इस घी के कलश को समाधि के शिखरबंद में रखा. अब इसे सोमनाथ के द्वारा समाधि को बड़ा करके इसके शिखरबंद में रखा जाएगा.
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श्रद्धालु प्यारेलाल ढूकिया ने बताया कि टांई मठ का बहुत पुराना इतिहास होने के साथ दूर-दूर तक क्षेत्रों में काफी मान्यता है. मठ में बनी समाधि के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.
श्रद्धालु प्यारेलाल ढूकिया ने बताया कि टांई मठ का बहुत पुराना इतिहास होने के साथ दूर-दूर तक क्षेत्रों में काफी मान्यता है. मठ में बनी समाधि के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.
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भवानी शेखावत ने बताया कि टांई मठ में समाधी को ठंडा करने पर जब मजदूरों के द्वारा इसका जीर्णोद्धार किया जाना है. उस समय समाधि के शिखरबन्द में घी का कलश निकलने की बात आई तो हम यहां दर्शन करने आये हैं.
भवानी शेखावत ने बताया कि टांई मठ में समाधी को ठंडा करने पर जब मजदूरों के द्वारा इसका जीर्णोद्धार किया जाना है. उस समय समाधि के शिखरबन्द में घी का कलश निकलने की बात आई तो हम यहां दर्शन करने आये हैं.

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