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Azadi Ka Amrit Mahotsav: कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन का जिक्र किए बिना अधूरी है आजादी की कहानी, तस्वीरों में जानें इतिहास

Azadi Ka Amrit Mahotsav: 75 साल पहले जबलपुर में भी 1939 में आजादी की कहानी लिखी गई थी, जिसने गांधी और सुभाषचंद्र के रास्तों को अलग-अलग कर दिया था. त्रिपुरी में कांग्रेस का 52वां अधिवेशन आयोजित था.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: 75 साल पहले जबलपुर में भी 1939 में आजादी की कहानी लिखी गई थी, जिसने गांधी और सुभाषचंद्र के रास्तों को अलग-अलग कर दिया था. त्रिपुरी में कांग्रेस का 52वां अधिवेशन आयोजित था.

(जबलपुर का त्रिपुरी इलाका आजादी के लिए भी है महत्वपूर्ण)

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जबलपुर का त्रिपुरी इलाका जिस तरह कलचुरी कालीन शिल्पकलाओं के लिए मशहूर है, ठीक उसी तरह आजादी के लिए संघर्ष में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है. नर्मदा नदी के तिलवारा घाट के पास स्थित त्रिपुरी में साल 1939 में कांग्रेस का 52वां अधिवेशन आयोजित हो रहा था.
जबलपुर का त्रिपुरी इलाका जिस तरह कलचुरी कालीन शिल्पकलाओं के लिए मशहूर है, ठीक उसी तरह आजादी के लिए संघर्ष में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है. नर्मदा नदी के तिलवारा घाट के पास स्थित त्रिपुरी में साल 1939 में कांग्रेस का 52वां अधिवेशन आयोजित हो रहा था.
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कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने महात्मा गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया को 203 वोटों से हरा कर दूसरी बार कांग्रेस का अध्यक्ष पद हासिल किया.
कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने महात्मा गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया को 203 वोटों से हरा कर दूसरी बार कांग्रेस का अध्यक्ष पद हासिल किया.
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जबलपुर के इतिहास और संस्कृति पर गहरी नजर रखने वाले लेखक पंकज स्वामी बताते हैं कि नेताजी की जीत के बाद महात्मा गांधी खिन्न हो गए थे और उनमें काफी मन मुटाव हो गया था. इसी के चलते आखिरकार नेताजी ने बाद में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
जबलपुर के इतिहास और संस्कृति पर गहरी नजर रखने वाले लेखक पंकज स्वामी बताते हैं कि नेताजी की जीत के बाद महात्मा गांधी खिन्न हो गए थे और उनमें काफी मन मुटाव हो गया था. इसी के चलते आखिरकार नेताजी ने बाद में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
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माना जाता है कि महात्मा गांधी और उनके समर्थकों के विरोध के चलते अध्यक्ष बनने के बाद भी नेताजी अपनी कार्यसमिति तक नहीं बना पाए थे. उन्होंने इसके बाद ही अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला किया.1939 में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन भी किया था, जिसका विचार उन्हें जबलपुर में ही आया था.
माना जाता है कि महात्मा गांधी और उनके समर्थकों के विरोध के चलते अध्यक्ष बनने के बाद भी नेताजी अपनी कार्यसमिति तक नहीं बना पाए थे. उन्होंने इसके बाद ही अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला किया.1939 में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन भी किया था, जिसका विचार उन्हें जबलपुर में ही आया था.
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त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी की जीत के बाद जबलपुर में 52 हाथियों का विशाल जुलूस निकाला गया था. कुछ इतिहासकार बताते है कि कमानिया गेट से शुरू हुए इस जुलूस में 52 हाथियों के रथ पर नेताजी को बिठाने की तैयारी थी, लेकिन 104 डिग्री सेल्सियस बुखार होने के चलते शामिल नहीं हो पाए.
त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी की जीत के बाद जबलपुर में 52 हाथियों का विशाल जुलूस निकाला गया था. कुछ इतिहासकार बताते है कि कमानिया गेट से शुरू हुए इस जुलूस में 52 हाथियों के रथ पर नेताजी को बिठाने की तैयारी थी, लेकिन 104 डिग्री सेल्सियस बुखार होने के चलते शामिल नहीं हो पाए.
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हजारों की भीड़ ने उनका आदमकद फोटो रथ पर रखकर कमानिया गेट से त्रिपुरी तक जुलूस निकाला था. ये भी कहा जाता है कि जुलूस त्रिपुरी से कमानिया गेट तक निकला था. बाद में त्रिपुरी कांग्रेस के याद में कमानिया गेट का निर्माण किया गया.
हजारों की भीड़ ने उनका आदमकद फोटो रथ पर रखकर कमानिया गेट से त्रिपुरी तक जुलूस निकाला था. ये भी कहा जाता है कि जुलूस त्रिपुरी से कमानिया गेट तक निकला था. बाद में त्रिपुरी कांग्रेस के याद में कमानिया गेट का निर्माण किया गया.
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स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और नेताजी सुभाषचंद्र बोस कई बार जबलपुर आये. संस्कारधानी जबलपुर सेंट्रल इंडिया में फ्रीडम मूवमेंट का केंद्र हुआ करता था.
स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और नेताजी सुभाषचंद्र बोस कई बार जबलपुर आये. संस्कारधानी जबलपुर सेंट्रल इंडिया में फ्रीडम मूवमेंट का केंद्र हुआ करता था.

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