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Baidyanath Dham: सावन में शिव के इस धाम में लगता हैं भक्तों का तांता, जानिए रावण से जुड़ा मंदिर का रोचक इतिहास

जानिए बैद्यनाथ धाम का इतिहास

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Baidyanath Dham : देश में बहुत जल्द सावन की शुरुआत होने वाली है. सावन में शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है. वहीं झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर में भी सावन के वक्त हजारों भक्त दर्शन के लिए पहुंचे हैं. बता दें कि ये देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. ऐसे में हम आपको मंदिर और बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल के बारे में कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं.....
Baidyanath Dham : देश में बहुत जल्द सावन की शुरुआत होने वाली है. सावन में शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है. वहीं झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर में भी सावन के वक्त हजारों भक्त दर्शन के लिए पहुंचे हैं. बता दें कि ये देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. ऐसे में हम आपको मंदिर और बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल के बारे में कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं.....
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झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम का शिव मंदिर अपने आप में बेहद अनोखा है. इसलिए यहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर की खासियत ये है कि त्रिशूल नहीं पंचशूल है जिसे सुरक्षा कवच कहा जाता है.
झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम का शिव मंदिर अपने आप में बेहद अनोखा है. इसलिए यहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर की खासियत ये है कि त्रिशूल नहीं पंचशूल है जिसे सुरक्षा कवच कहा जाता है.
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कहा जाता है कि पूरे देश में सिर्फ इसी मंदिर में पंचशूल है. वहीं धर्माचार्यों की मानें तो अगर कोई 6 महीने तक लगातार शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता.
कहा जाता है कि पूरे देश में सिर्फ इसी मंदिर में पंचशूल है. वहीं धर्माचार्यों की मानें तो अगर कोई 6 महीने तक लगातार शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता.
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वहीं मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल के इतिहास को लेकर धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है. इनमें से एक ये है कि इस त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने इस मंदिर को बनवाया था और उन्होंने लंका के चारों द्वार पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था.
वहीं मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल के इतिहास को लेकर धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है. इनमें से एक ये है कि इस त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने इस मंदिर को बनवाया था और उन्होंने लंका के चारों द्वार पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था.
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वहीं इसके अलावा अखिल भारतीय तीर्थपुरोहित महासभा के पूर्व महासचिव दुर्लभ मिश्रा बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था. जबकि भगवान राम के बस में ये नहीं था. विभीषण ने जब ये बात श्रीराम को बताई तभी वो लंका में प्रवेश कर पाएं. वहीं रावण के द्वारा स्थापित किए गए पंचशूल से ही कोई भी आपदा का असर इस मंदिर पर नहीं होता.
वहीं इसके अलावा अखिल भारतीय तीर्थपुरोहित महासभा के पूर्व महासचिव दुर्लभ मिश्रा बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था. जबकि भगवान राम के बस में ये नहीं था. विभीषण ने जब ये बात श्रीराम को बताई तभी वो लंका में प्रवेश कर पाएं. वहीं रावण के द्वारा स्थापित किए गए पंचशूल से ही कोई भी आपदा का असर इस मंदिर पर नहीं होता.
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मंदिर के पंडों का कहना है कि, यहां के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार महा शिवरात्रि के दिन नीचे उतार जाता है और फिर एक विशेष पूजा के बाद उन्हें फिर से स्थापित किया जाता है. बता दें कि पंचशूल को नीचे उतारने और वापिस स्थापित करने का अधिकार एक परिवार को दिया गया है.
मंदिर के पंडों का कहना है कि, यहां के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार महा शिवरात्रि के दिन नीचे उतार जाता है और फिर एक विशेष पूजा के बाद उन्हें फिर से स्थापित किया जाता है. बता दें कि पंचशूल को नीचे उतारने और वापिस स्थापित करने का अधिकार एक परिवार को दिया गया है.
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देवघर के पंडित दुर्लभ मिश्रा ने पंचशूल और त्रिशूल का अंतर बताते हुए कहा कि, पंचशूल पांच तत्व पृथ्वी, जल, पावक, गगन और समीर से बनता है. जबकि त्रिशूल में तीन तत्व वायु, जल और अग्नि से बनता है.
देवघर के पंडित दुर्लभ मिश्रा ने पंचशूल और त्रिशूल का अंतर बताते हुए कहा कि, पंचशूल पांच तत्व पृथ्वी, जल, पावक, गगन और समीर से बनता है. जबकि त्रिशूल में तीन तत्व वायु, जल और अग्नि से बनता है.

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