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सावधान, गहरी नींद बन रही है बच्चों के मौत का कारण, बच्चों को हो रही है ये नई बीमारी

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डॉ. पांडे बताते हैं 1970 में सबसे पहले ये सिंड्रोम उजागर हुआ था कि कॉन्‍जेनाइटल सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम भी है जो कि बच्चे में होता है. जब डॉक्टर से   पूछा गया कि गर्भावस्था में ही इस बीमारी के बारे में पता लग सकता है तो उनका कहना था कि ये बीमारी अभी उजागर होने लगी है. आमतौर पर गर्भावस्था में   इसकी जांच नहीं होती. लेकिन यदि किसी की फैमिली हिस्ट्री है कि किसी बच्चे की नींद में ही उनके घर में मौत हुई हो या किसी को ये बीमारी रही है तो उस   केस में इसे ट्रेस किया जा सकता है. हालांकि गर्भावस्था में बच्चा मां द्वारा सांस लेता है और मां को भी कोई दिक्‍कत नहीं आती तो इस तरह के टेस्ट प्रेगनेंसी में   नहीं किए जाते.  फोटोः गूगल फ्री इमेज
डॉ. पांडे बताते हैं 1970 में सबसे पहले ये सिंड्रोम उजागर हुआ था कि कॉन्‍जेनाइटल सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम भी है जो कि बच्चे में होता है. जब डॉक्टर से पूछा गया कि गर्भावस्था में ही इस बीमारी के बारे में पता लग सकता है तो उनका कहना था कि ये बीमारी अभी उजागर होने लगी है. आमतौर पर गर्भावस्था में इसकी जांच नहीं होती. लेकिन यदि किसी की फैमिली हिस्ट्री है कि किसी बच्चे की नींद में ही उनके घर में मौत हुई हो या किसी को ये बीमारी रही है तो उस केस में इसे ट्रेस किया जा सकता है. हालांकि गर्भावस्था में बच्चा मां द्वारा सांस लेता है और मां को भी कोई दिक्‍कत नहीं आती तो इस तरह के टेस्ट प्रेगनेंसी में नहीं किए जाते. फोटोः गूगल फ्री इमेज
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इस बीमारी के इलाज के बारे में डॉ. पांडे बताते हैं कि मेडिकली इस बीमारी का अभी ट्रीटमेंट नहीं है. इसके लिए सिर्फ सपोर्टिव ट्रीटमेंट है. जो नर्व्स डैमेज हैं वो   स्लीप कंडीशन में सांस नहीं पहुंचा रही हैं ऐसे में सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ती है. शुरूआती अवस्था में मरीज को वेंटिलेशन पर रखा जाता है. बाद में गले में   छेद करके एक ऐसी मशीन लगाई जाती है ताकि बच्चा नींद में सांस ले सके. ये बहुत ही चुनौतिपूर्ण काम है. इस सिंड्रोम में बच्चे को लाइफटाइम सपोर्ट सिस्टम   पर रहना पड़ता है. डॉ. का कहना है कि यदि बच्चे को बेस्ट केयर मिले और वेंटिलेशन प्रॉपर मिले तो बच्चा सर्वाइव कर सकता है. फोटोः गूगल फ्री इमेज
इस बीमारी के इलाज के बारे में डॉ. पांडे बताते हैं कि मेडिकली इस बीमारी का अभी ट्रीटमेंट नहीं है. इसके लिए सिर्फ सपोर्टिव ट्रीटमेंट है. जो नर्व्स डैमेज हैं वो स्लीप कंडीशन में सांस नहीं पहुंचा रही हैं ऐसे में सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ती है. शुरूआती अवस्था में मरीज को वेंटिलेशन पर रखा जाता है. बाद में गले में छेद करके एक ऐसी मशीन लगाई जाती है ताकि बच्चा नींद में सांस ले सके. ये बहुत ही चुनौतिपूर्ण काम है. इस सिंड्रोम में बच्चे को लाइफटाइम सपोर्ट सिस्टम पर रहना पड़ता है. डॉ. का कहना है कि यदि बच्चे को बेस्ट केयर मिले और वेंटिलेशन प्रॉपर मिले तो बच्चा सर्वाइव कर सकता है. फोटोः गूगल फ्री इमेज
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डॉ. पांडे का कहना है कि ऐसा नहीं है कि इस बीमारी के अब तक तीन ही मामले आए होंगे. लेकिन हाईलाइट तीन हुए हैं. दरअसल, जब बच्चों की नींद में ही   मौत हो जाती है तो कुछ डॉक्टर्स अधिक छानबीन किए बिना इसे नैचुरल डेथ करार दे देते हैं जिससे बीमारी हाईलाइट नहीं हो पाती. फोटोः गूगल फ्री इमेज
डॉ. पांडे का कहना है कि ऐसा नहीं है कि इस बीमारी के अब तक तीन ही मामले आए होंगे. लेकिन हाईलाइट तीन हुए हैं. दरअसल, जब बच्चों की नींद में ही मौत हो जाती है तो कुछ डॉक्टर्स अधिक छानबीन किए बिना इसे नैचुरल डेथ करार दे देते हैं जिससे बीमारी हाईलाइट नहीं हो पाती. फोटोः गूगल फ्री इमेज
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हालांकि डॉ. पांडे ये भी कहते हैं कि ये बहुत ही रेयर कंडीशन है और पिछले कुछ समय में ही इस बीमारी के मामले हाईलाइट हो रहे हैं. वहीं सर गंगाराम   हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट,आपातकालीन बाल चिकित्सा, क्रिटिकल केयर और पल्मोनोलॉजी और एलर्जी विकार के डॉ. धीरेन गुप्ता का कहना है कि पिछले दो   दशकों में मैंने ये तीसरा मामला देखा है. ये बहुत ही रेयर सिंड्रोम है जिसमें मरीज खुद से सांस लेने में असमर्थ होता है. इतना ही नहीं, इस सिंड्रोम के तहत   मरीज नींद के दौरान ये भूल ही जाता है कि सोना कैसे है.
हालांकि डॉ. पांडे ये भी कहते हैं कि ये बहुत ही रेयर कंडीशन है और पिछले कुछ समय में ही इस बीमारी के मामले हाईलाइट हो रहे हैं. वहीं सर गंगाराम हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट,आपातकालीन बाल चिकित्सा, क्रिटिकल केयर और पल्मोनोलॉजी और एलर्जी विकार के डॉ. धीरेन गुप्ता का कहना है कि पिछले दो दशकों में मैंने ये तीसरा मामला देखा है. ये बहुत ही रेयर सिंड्रोम है जिसमें मरीज खुद से सांस लेने में असमर्थ होता है. इतना ही नहीं, इस सिंड्रोम के तहत मरीज नींद के दौरान ये भूल ही जाता है कि सोना कैसे है.
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डॉ. पांडे ने बताया कि ब्रेन का एक हिस्सा हमारी ब्रीदिंग को कंट्रोल करता है. इस बीमारी में जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह से ये पाथ डिस्टर्ब हो जाता है. सांस   को कंट्रोल करने वाला ट्रांसमिशन खराब हो जाता है. ऐसे में जब आप नींद में जाते हैं तो ब्रेन सांस लेने के लिए ट्रिगर नहीं करता. ऐसे में रेस्पिरेटरी फेल्योर हो जाता है. इस स्थिति में कार्बनडाईऑक्साइड बढ़ जाती है और ऑक्सीजन कम होने लगती है.
डॉ. पांडे ने बताया कि ब्रेन का एक हिस्सा हमारी ब्रीदिंग को कंट्रोल करता है. इस बीमारी में जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह से ये पाथ डिस्टर्ब हो जाता है. सांस को कंट्रोल करने वाला ट्रांसमिशन खराब हो जाता है. ऐसे में जब आप नींद में जाते हैं तो ब्रेन सांस लेने के लिए ट्रिगर नहीं करता. ऐसे में रेस्पिरेटरी फेल्योर हो जाता है. इस स्थिति में कार्बनडाईऑक्साइड बढ़ जाती है और ऑक्सीजन कम होने लगती है.
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इस बारे में कोशांबी यशोदा हॉस्पिटल के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट एमडी डॉ. के.के. पांडे का कहना है कि इस बीमारी को कॉन्‍जेनाइटल सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन   सिंड्रोम (Congenital central hypoventilation syndrome) के नाम से जाना जाता है. ये बीमारी बहुत ही रेयर है और जन्मजात होती है.   इसके होने का प्रमुख कारण जेनेटिक है. माता-पिता के जीन्स के कारण बच्चे को ये बीमारी होती है. ये एक खास किस्म का जीन होता है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी की सबसे खराब बात ये है कि बच्चे में इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते.
इस बारे में कोशांबी यशोदा हॉस्पिटल के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट एमडी डॉ. के.के. पांडे का कहना है कि इस बीमारी को कॉन्‍जेनाइटल सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम (Congenital central hypoventilation syndrome) के नाम से जाना जाता है. ये बीमारी बहुत ही रेयर है और जन्मजात होती है. इसके होने का प्रमुख कारण जेनेटिक है. माता-पिता के जीन्स के कारण बच्चे को ये बीमारी होती है. ये एक खास किस्म का जीन होता है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी की सबसे खराब बात ये है कि बच्चे में इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते.
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 ये मामला दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल का है जहां 6 महीने के बच्चे यथार्थ को उसके माता-पिता 1 मिनट भी सोने नहीं देते. उन्हें हरदम ये डर रहता है कि   बच्चा गहरी नींद में जाते ही कहीं सांस लेना ना भूल जाए.
ये मामला दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल का है जहां 6 महीने के बच्चे यथार्थ को उसके माता-पिता 1 मिनट भी सोने नहीं देते. उन्हें हरदम ये डर रहता है कि बच्चा गहरी नींद में जाते ही कहीं सांस लेना ना भूल जाए.
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हाल ही में दिल्ली का एक मामला सामने आया है जिसमें बच्चे को ऐसी बीमारी है जिसके तहत गहरी नींद उसके लिए जानलेवा हो सकती है. इस बीमारी में बच्चा   सांस लेना तक भूल सकता है. ऐसे में एबीपी न्यूज की संवाददाता ने डॉक्टर्स से बात करके जाना कि आखिर ये बीमारी क्या है और इसका बेहतरीन इलाज क्या है. सभी फोटोः गेटी इमेज
हाल ही में दिल्ली का एक मामला सामने आया है जिसमें बच्चे को ऐसी बीमारी है जिसके तहत गहरी नींद उसके लिए जानलेवा हो सकती है. इस बीमारी में बच्चा सांस लेना तक भूल सकता है. ऐसे में एबीपी न्यूज की संवाददाता ने डॉक्टर्स से बात करके जाना कि आखिर ये बीमारी क्या है और इसका बेहतरीन इलाज क्या है. सभी फोटोः गेटी इमेज

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