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ईरान के बैलेस्टिक मिसाइल हमलों के बाद भी कोई अमेरिकी सैनिक क्यों नहीं हुआ हताहत? जानिए

तस्वीरों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि ईरान ने अमेरिकी या दूसरे नाटो देश के सैनिकों के बैरकों को निशाना नहीं बनाया. सुरक्षा जानकारों की मानें तो बैलेस्टिक मिसाइल के अमेरिकी बेस को लॉक करते ही वहां तैनात अर्ली-वार्निंग सिस्टम एक्टिवेट हो गया होगा.

नई दिल्ली: ईराक में अमेरिका के मिलिट्री बेस, पर हुए ईरान के हमले की सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं. इन तस्वीरों से लगभग साफ हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने क्यों दावा किया है कि ईरान के हमलों में सभी अमेरिकी सैनिक सुरक्षित हैं और बेहद कम नुकसान हुआ है. अमेरिकी प्राईवेट एजेंसी, 'प्लेनेट लैब' द्वारा ईराक के अल-असद मिलिट्री बेस की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की गई हैं. ये तस्वीरें ईरान के हमले के बाद जारी की गई हैं. इन तस्वीरों से पता चलता है कि ईरान ने अल-असद बेस पर पिनपाउंट पांच जगहों पर मिसाइल से हमला किया था. लेकिन गौर से देखने पर पता चलता है कि ये पांचों जगह या तो हेलीकॉप्टर और फाइटर जेट्स के हैंगर हैं या फिर लॉजिस्टिक या सैन्य साजो सामान रखने की जगह हैं.

तस्वीरों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि ईरान ने अमेरिकी या दूसरे नाटो देश के सैनिकों के बैरकों को निशाना नहीं बनाया. यही वजह है कि अमेरिका का दावा है कि ईरान के हमले में उसका कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ है. हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर 'ऑल इज वेल' भी कहा था.

दरअसल, ईरानी सैन्य कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत का बदला लेने के लिए ईरान ने मंगलवार की देर रात ईराक में अमेरिका के दो सैन्य ठिकानों पर बैलेस्टिक मिसाइल से हमला किया था. ईरान का दावा था कि कुल 22 मिसाइल अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर लॉक की गई थीं. अल-असद और इरबिल स्थित अमेरिकी मिलिट्री बेस को निशाना बनाया गया था. अपुष्ट खबरों में ईरान की तरफ से दावा भी किया गया था कि इन मिसाइल हमलों में अमेरिका के 30-80 सैनिक मारे गए थे. लेकिन अमेरिका ने सैनिकों के हताहत होने की खबरों को पूरी तरह से बेबुनियाद बताया है. प्लेनेट लैब की तस्वीर से साफ हो गया है कि इस हमले में आखिर कोई सैनिक क्यों नहीं हताहत हुआ.

फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर के हैंगर बेहद मजबूत बनाए जाते हैं

जानकारों की मानें तो फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर के हैंगर (बेस में खड़े करने की जगह) बेहद मजबूत बनाए जाते हैं. इन हैंगर्स का मकसद ही ये होता है कि दुश्मन की गोलाबारी लड़ाकू विमान या हेलीकॉप्टर को नुकसान ना पहुंचा सकें. बेहद मुमकिन है कि हमले के वक्त अमेरिकी फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर्स वहां खड़े ही ना हों. सुलेमानी की मौत के बाद ही ईरान ने बदले का ऐलान कर दिया था. ऐसे में सभी सामरिक और सैन्य उपकरणों को ऐसी जगह भेज दिया गया होगा जहां तक ईरान की पहुंच ना हो. क्योंकि फारस की खाड़ी में ही अमेरिका की फिफ्थ-फ्लीट यानि जंगी जहाजों का बेड़ा तैनात रहता है जिसका बेस हेडक्वार्टर खाड़ी देश बहरीन में है. यही वजह है कि अमेरिका को इन हमलों में मिलिट्री-इंफ्रास्ट्रकचर से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ.

सुरक्षा जानकारों की मानें तो बैलेस्टिक मिसाइल के अमेरिकी बेस को लॉक करते ही वहां तैनात अर्ली-वार्निंग सिस्टम एक्टिवेट हो गया होगा जिसने पूरे बेस को हमले से पहले ही अलर्ट कर दिया होगा और सभी सैनिकों ने सुरक्षित बंकर्स में शरण ले ली होगी. यही वजह है कि कोई भी अमेरिकी या फिर किसी दूसरे देश का सैनिक हताहत नहीं हुआ. हमले के दौरान अमेरिका के साथ-साथ दूसरे नाटो देश के सैनिक भी अल-असद बेस पर मौजूद थे.

अल-असद, ईराक में अमेरिका का एक बड़ा सैन्य-ठिकाना है जहां अमेरिकी वायुसेना के साथ-साथ मरीन फोर्स और इंटीग्रेटेड कॉम्बेट ब्रिगेड भी तैनात रहती है. इस बेस को ईराकी सैनिकों के ट्रेनिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जाता रहा है. ये बेस अमेरिका की सेंट्रल कमांड के अंतर्गत का करता है. ये बेस कितना खास है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दो सालों में खुद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उप-राष्ट्रपति, माइक पेंस यहां की यात्रा कर चुके हैं. अमेरिका के जिस दूसरे सैन्य ठिकाने, एरबिल पर ईरान ने हमला किया था वो पिछले साल अक्टबूर के महीने में आईएसआईएस के मुखिया अल-बगदादी को मारने में अहम भूमिका निभा चुका है.

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