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अब तालिबान ने ईरान के खिलाफ क्यों तैयार किए आत्मघाती दस्ते, दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात!

ईरानी और तालिबानी फौजों के बीच ताजा झड़प से तनाव गहरा गया है. पानी की किल्लत और दूसरी आर्थिक और सामाजिक समस्याओं की वजह से पूर्वी ईरानी क्षेत्र में जनता का गुस्सा लगातार बढ़ रहा है.

अमेरिका से लंबे समय तक लड़ने के बाद अब तालिबान अपने पड़ोसी देश ईरान के साथ उलझ रहा है. ईरान और अफगानिस्तान के बीच जारी पानी को लेकर विवाद अब किसी भी वक्त जंग में बदल सकते हैं. ईरान और तालिबान के बीच सीमा पर पिछले हफ्ते भारी गोलीबारी हुई . दोनों देश हेलमंद नदी के पानी के बंटवारे को लेकर लंबे समय से विवादों में उलझे हैं. 

मई में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने तालिबान को लेकर एक चेतावनी जारी की. उन्होंने कहा कि तालिबान अफगानिस्तान के जल-आपूर्ति समझौते का सम्मान करे वरना उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. तालिबान ने इसके जवाब में ईरान का मजाक उड़ाया और कहा कि इस तरह का अल्टीमेटम देना बंद करे. इसके लगभग एक हफ्ते बाद सीमा पर एक झड़प शुरू हो गई, जिसमें दो ईरानी गार्ड और एक तालिबान मारा गया. जानकारी के मुताबिक तालिबान ने हजारों सैनिकों और सैकड़ों आत्मघाती हमलावरों को क्षेत्र में भेजा है.  

हेलमंद अफगानिस्तान की सबसे लंबी नदी है. इस नदी का पानी दोनों देशों को जाता है जो खेती, आजीविका और ईकोसिस्टम की बहाली में काम आता है. अफगानिस्तान और ईरान सदियों से इस नदी के पानी के बंटवारे को लेकर टकराते रहे हैं.

हेलमंद नदी का उद्गम पश्चिमी हिंदुकुश पर्वत शृंखला में काबुल के पास से होता है और रेगिस्तानी इलाकों से होते हुए वह दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है. 1,150 किलोमीटर लंबी हेलमंद नदी, हामन झील में गिरती है जो अफगानिस्तान-ईरान सीमा पर फैली हुई है.

हामन झील ईरान में ताजे पानी की सबसे विशाल स्त्रोत है. हेलमंद के पानी से भरी यह झील 4,000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है. लेकिन अब ये सिकुड़ रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए सूखा जिम्मेदार है.  बांधों और पानी पर नियंत्रण की वजह से भी नदी का पानी सूखे की मार झेल रहा है. देश में तापमान 1950 के बाद से 1.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है जो गंभीर समस्या है.

दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर 1973 में हेलमंद नदी समझौता हुआ था. लेकिन इस संधि की न तो पुष्टि की गई और न ही पूरी तरह से अमल में आ पाई, जिसकी वजह से असहमतियां और तनाव पैदा हुआ.

ईरान का आरोप है कि अफगानिस्तान उसके पानी के अधिकारों का वर्षों से हनन करता आ रहा है. उसकी दलील है कि 1973 के समझौते में पानी की जो मात्रा बांटने पर सहमति बनी थी, उससे बहुत कम पानी ईरान को मिलता है. अफगानिस्तान में ईरानी राजदूत हसन कजेमी कूमी ने सरकारी समाचार एजेंसी तस्नीम को पिछले हफ्ते दिए एक इंटरव्यू में कहा, "पिछले साल ईरान को अपने हिस्से का सिर्फ चार फीसदी पानी मिला था."

खेती के लिए जरूरी है इस नदी का पानी

अफगानिस्तान की सबसे लंबी नदी का पानी कृषि के लिए बेहद जरूरी है. सीमा के दोनों ओर लाखों लोग इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं.  ईरान का तर्क है कि तालिबान ने सत्ता में लौटने के बाद से पानी की आपूर्ति कम कर दी है और समझौते के अफगानिस्तान के पक्ष को नहीं रख रहा है. 

ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने पिछले हफ्ते एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि हेलमंद से पानी पर ईरान के अधिकारों को लेकर तालिबान सरकार के साथ "प्रारंभिक समझौते" हो रहे हैं.

2021 से ईरान के राष्ट्रपति रहे रईसी ने पानी की कमी से बुरी तरह प्रभावित देश के सबसे गरीब प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान की यात्रा के दौरान कहा, " तालिबान मेरे शब्दों को गंभीरता से ले. उन्होंने कहा, 'मैं अफगानिस्तान के अधिकारियों और शासकों को चेतावनी देता हूं कि उन्हें सिस्तान के लोगों के जल अधिकारों का सम्मान करना चाहिए.

जंग के लिए तैयार तालिबान

वहीं तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद और बिलाल करीमी ने उस समय इसका कोई जवाब नहीं दिया. मुजाहिद ने मई में कहा था कि रईसी की टिप्पणी अनुचित है और इससे दोनों देशों के संबंधों को नुकसान पहुंच सकता है. वहीं अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी का कहना है कि यह मुद्दा केवल सूखे की वजह से हुआ है और अफगानिस्तान समझौते का सम्मान करता है. 

लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक कूटनीति के आह्वान के बावजूद तालिबान ने युद्ध के लिए तैयार है. टाइम की वेबसाइट में छपी खबर के मुताबिक एक तालिबानी का कहना है कि हम सैनिकों और आत्मघाती हमलावरों के साथ ईरान के खिलाफ जंग छेड़ने को तैयार हैं. तालिबान का कहना है कि  उनके पास अमेरिकी सेना के छोड़ सकड़ों सैन्य वाहन और हथियार भी हैं.

खबर के मुताबिक वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक द अटलांटिक काउंसिल के वरिष्ठ फेलो और कनाडा और फ्रांस में अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत उमर समद ने कहा, "दोनों पक्ष अपने रुख को सही ठहराने पर अड़े हैं, जो खतरनाक नतीजे ला सकता है. 

विवाद की वजह क्या

यह समझौता दशकों से तनाव का कारण रहा है.  ईरान लंबे समय से तर्क देता रहा है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिलता है. तालिबान के सत्ता में आने के बाद स्थिति और खराब हो गई. 

हालांकि दोनों पक्षों के दावों का विश्लेषण करना मुश्किल है क्योंकि पानी की आपूर्ति का कोई डेटा नहीं है. ईरान में कम से कम 300 कस्बों और शहरों को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है. बढ़ती गर्मी की वजह से बांध का पानी भाप बनकर उड़ जा रहा है और देश का 97% से ज्यादा हिस्सा सूखे से प्रभावित है. लगभग 20 मिलियन लोग शहरों में चले गए हैं  क्योंकि उनके गांवों की जमीन खेती के लिए बहुत सूखी है.

दोनों के बीच मौजूदा स्थिति क्या है 
ईरानी और तालिबानी फौजों के बीच ताजा झड़प से तनाव गहरा गया है. पानी की किल्लत और दूसरी आर्थिक और सामाजिक समस्याओं की वजह से पूर्वी ईरानी क्षेत्र में जनता का गुस्सा लगातार बढ़ रहा है.

सीमा पर कई बार गोलीबारी हो चुकी है. 28 मई को ईरानी सेना के कमांडर और ईरानी पुलिस के डिप्टी चीफ ने सिस्तान-बलूचिस्तान सूबे का दौरा करने के बाद कहा कि हालात काबू में हैं. 

हालांकि खबर है कि ईरान के कुल तीन सैनिकों की जान चली गई है. इससे लोगों में गुस्सा बढ़ा है.  ब्रिगेडियर जनरल अमीर अली हाजिजादेह, ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड एयर एंड स्पेस फोर्सेस के कमांडर हैं. 29 मई को तेहरान में ईरान की साइंस और टेक्नोलजी यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "कुछ लोगों का इरादा है कि तालिबान से लड़ाई छिड़ जाए. युद्ध भड़काने का ये काम हमारे दुश्मनों का है. वे सीमा पर इन झड़पों के नाम पर लड़ाई छेड़ देना चाहते हैं. लेकिन ऐसा हरगिज नहीं होगा."

रिपोर्ट्स की मानें तो तालिबान ने  अपने दूसरे पड़ोसी देशों के साथ भी संबध खराब किए हैं. तालिबान अफगानिस्तान उत्तरी क्षेत्र में एक विशाल सिंचाई नहर का निर्माण कर रहा है ताकि अमू दरिया बेसिन से पानी को मोड़ा जा सके. ये पानी उज्बेकिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों में बहता है. उजबेकिस्तान ने इसे लेकर चिंता भी व्यक्त की है. 

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