Birds Drone: मरी हुई चिड़िया को बना दिया ड्रोन! रिसर्चर्स का दावा- जासूसी करने में मिलेगी मदद
Bird Drone: फ़्लैपिंग-विंग ड्रोन या आर्निथॉप्टर, पक्षियों के उड़ने की प्रोसेस से प्रेरित हैं और मशीनरी पार्ट का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जिनमें प्रोपेलर भी शामिल हैं.

Bird Drone Technology: वैज्ञानिकों (Scientists) ने मरे हुई पक्षियों के शरीर का उपयोग करके ड्रोन विकसित किया है. उनका कहना है कि एक दिन इन्हें वाइल्ड लाइफ की जानकारी लेने या चुपके से जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
हाल ही में बर्ड ड्रोन को अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ एरोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स साइटेक 2023 (American Institute of Aeronautics and Astronautics CITEC) फोरम में दिखाया गया और मरे हुए पक्षियों को फ़्लैपिंग-विंग ड्रोन में शामिल किया गया और आर्मी ऑब्जेक्टिव के लिए भी दुश्मनों पर जासूसी करने में भी सक्षम हो सकता है.
पक्षियों की तरह दिखने वाले ड्रोन
फ़्लैपिंग-विंग ड्रोन या आर्निथॉप्टर, पक्षियों के उड़ने की प्रोसेस से प्रेरित हैं और मशीनरी पार्ट का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जिनमें प्रोपेलर भी शामिल हैं. अमेरिका में न्यू मैक्सिको टेक में मोस्तफा हसनालियन सहित रिसर्चर का कहना है कि ड्रोन को बनाने के लिए पूरी तरह से आर्टिफिशियल चीजों पर डिपेंड रहने की बजाय, नए टेक्नोलॉजी की मदद से मरे हुए पक्षियों को फिर से इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करके उपयोग किया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने स्टडी में पक्षियों के कुछ सामान्य रूप और गतियों को और अधिक बारीकी से बनाने के लिए टैक्साइडर्मी और नेचुरल तरह से फड़फड़ाने वाले ड्रोन सिस्टम के साथ जोड़ा. उन्होंने पक्षियों की तरह दिखने वाले ड्रोन का उपयोग करते हुए दो उड़ानो का टेस्ट किया, जिसमें एक असली तीतर जैसा दिखने वाला पक्षी भी शामिल था.
फ्लैपिंग विशेषताओं का टेस्ट किया
रिसर्चरों ने दोबारा से इंजीनियर मॉडल का इस्तेमाल करके हवा में उड़ने वाले फ्लैपिंग (पक्षियों की तरह पंख फैला के उड़ना) विशेषताओं का टेस्ट किया. इसके लिए रिसर्चरों ने 3डी फ्लैपिंग और हवा में उड़ने वाले सिम्युलेटर का भी उपयोग किया. रिसर्चरों ने स्टडी में लिखा है कि इसने फ्लैपिंग सिस्टम के काम करने के तरीके और फ्लैपिंग विंग ड्रोन के स्पीड बढ़ाने के टेस्ट की अनुमति दी. हालांकि वैज्ञानिकों ने पाया कि इस तरह से बनाए गए मॉडल सबसे कुशल उड़ने वाले नहीं थे. इस तरह का ड्रोन बनाना मुश्किल है. यह शोध के उद्देश्यों के लिए बहुत ही व्यावहारिक है और नेचर को सुरक्षित रखने में काम आ सकता है."
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Source: IOCL





















