Durand Line History: कब और कैसे बनी थी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड लाइन, जिस पर PAK आर्मी से भिड़ा तालिबान?
डूरंड लाइन पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव फिर बढ़ गया है. तालिबान लड़ाकों ने पाकिस्तान की चौकियों पर ताबड़तोड़ हमले किए, जिनमें पाक आर्मी के 12 सैनिकों की मौत हो गई है.

डूरंड लाइन के पास एक बार फिर गोलियों की आवाज गूंज रही है. तालिबानी लड़ाके पाकिस्तान की सीमा में घुसकर फौजी चौकियों पर हमले कर रहे हैं. पाकिस्तान ने जवाबी फायरिंग शुरू कर दी है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच का यह विवाद कोई नया नहीं है. यह 2640 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा, जिसे डूरंड लाइन कहा जाता है दशकों से दोनों मुल्कों के बीच टकराव की वजह बनी हुई है.
अफगानिस्तान इस सीमा को मान्यता नहीं देता. उसके मुताबिक, यह “हाइपोथेटिकल लाइन” यानी काल्पनिक सीमा है, जिसे ब्रिटिश हुकूमत ने अपने हितों के लिए बनाया था. डूरंड लाइन, 1893 में खींची गई एक रेखा है जो आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की सीमा बनाती है. इसे ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी डूरंड ने उस समय के अफगान शासक अब्दुर रहमान खान के साथ समझौते के तहत बनाया था. ब्रिटिशों का उद्देश्य था कि भारत (तब ब्रिटिश इंडिया) और अफगानिस्तान के बीच एक बफर जोन बनाया जाए ताकि रूस की विस्तारवादी नीति को रोका जा सके. यह रेखा पश्तून और बलूच जनजातीय इलाकों से होकर गुजरती है, जिससे इन समुदायों के परिवार दो देशों में बंट गए. यही बात इस सीमा को सबसे विवादित बनाती है.
क्यों नहीं मानता अफगानिस्तान?
अफगानिस्तान इस रेखा को कभी भी आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दे सका. उसका कहना है कि यह औपनिवेशिक काल की जबरन थोपे गई सीमा है, जिसे स्थानीय जनजातियों की राय लिए बिना तय किया गया था. डूरंड लाइन ने पश्तून समुदाय को सबसे ज्यादा प्रभावित किया. वे सदियों से सीमावर्ती इलाकों में रहते आए थे, लेकिन अब उनके परिवार और कबीले दो देशों में बंट गए. अफगानिस्तान के अनुसार, ब्रिटिशों ने इस रेखा को अपनी राजनीतिक और सैन्य जरूरतों के हिसाब से खींचा, न कि लोगों के हितों को ध्यान में रखकर. यही वजह है कि आज भी यह सीमा अफगान लोगों की भावनाओं को आहत करती है.
तालिबान के आने के बाद क्यों बढ़ा तनाव?
साल 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि काबुल में एक “दोस्ताना सरकार” बनेगी जो डूरंड लाइन को मान्यता देगी, लेकिन हुआ इसका उल्टा. तालिबान ने इस रेखा को अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन बताया और पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि उसने इस क्षेत्र में बाड़ लगाकर सीमा को जबरन तय करने की कोशिश की है. तब से अब तक, तालिबान और पाकिस्तानी फौज के बीच कई बार सीमा झड़पें हो चुकी हैं. तालिबान समर्थित आतंकी संगठन टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) भी पाकिस्तान में हमले करता रहा है, जिससे तनाव और गहरा हो गया है.
तालिबान और अफगान फौज की ताकत
अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति के अनुसार, तालिबान के पास लगभग 80 हजार लड़ाके हैं, जबकि अफगानिस्तान की सेना में 5 से 6 लाख सैनिक हैं. इसके बावजूद तालिबान लगातार अफगान सेना पर भारी पड़ता दिख रहा है. तालिबान की ताकत उसकी कबीलाई जड़ों और धार्मिक नेटवर्क में छिपी है. मदरसे, कट्टर धार्मिक संगठन और कबाइली समर्थन ने तालिबान को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाया है. इसके अलावा पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की गुप्त मदद ने भी तालिबान को एक सैन्य ताकत के रूप में उभरने में बड़ी भूमिका निभाई है. यही कारण है कि अब वही तालिबान पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल रहा है.
पाकिस्तान के लिए चुनौती
पाकिस्तान अब अपने ही बनाए जाल में फंसता नजर आ रहा है. जिस तालिबान को उसने कभी रणनीतिक गहराई (Strategic Depth) के लिए पाला था, वही अब उसकी सीमाओं पर खतरा बन गया है.तालिबान न सिर्फ डूरंड लाइन को नकारता है, बल्कि पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में अपनी धार्मिक और राजनीतिक पकड़ बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा है.पाकिस्तानी सेना की चौकियों पर तालिबान के हमले दिखाते हैं कि यह सीमा अब सिर्फ भौगोलिक विवाद नहीं, बल्कि एक सुरक्षा संकट बन चुकी है.
डूरंड लाइन दुनिया की सबसे खतरनाक सीमा
2640 किलोमीटर लंबी यह रेखा कश्मीर, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील इलाकों से होकर गुजरती है. यही वजह है कि इसे दुनिया की सबसे खतरनाक सीमा कहा जाता है. यहां रोजाना सीमा पार हमले, अवैध व्यापार और आतंकवादी गतिविधियां होती रहती हैं. इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की जिंदगी हमेशा अस्थिरता और भय के बीच गुजरती है.
ये भी पढ़ें: इस मुस्लिम देश से फाइटर जेट खरीदना चाहता है भारत, अब तुर्किए ने भी गड़ाई नजर; क्या है एर्दोगन का प्लान?
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL























