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यूपी: सियासी लॉलीपाप साबित हो सकता है 17 जातियों को SC कैटेगरी में शामिल करने का योगी सरकार का फैसला

बता दें कि नियम के मुताबिक़ कोई भी सरकार किन्ही जातियों को एससी कैटेगरी में न तो शामिल कर सकती है और न ही उसे बाहर कर सकती है. जातियों को एससी में शामिल करने या बाहर निकालने का अधिकार सिर्फ संसद में क़ानून बनाकर ही किया जा सकता है.

प्रयागराज: यूपी की योगी सरकार ने पिछड़े वर्ग की सत्रह जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने का जो फैसला लिया है, उसमे तमाम कानूनी पेंच हैं. इन पेचीदगियों के चलते उनका हकीकत में अमली जामा पहन पाना तकरीबन नामुमकिन है. ऐसे में इन जातियों को फायदे के बजाय कुछ समय तक नुकसान ही उठाना पड़ेगा. दरअसल योगी सरकार या किसी भी राज्य अथवा केंद्र की सरकार को एससी की कैटेगरी में किसी जाति को जोड़ने या निकालने का अधिकार ही नहीं है. इस तरह का बदलाव सिर्फ संसद के दोनों सदनों से प्रस्ताव पास होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही हो सकता है.

वैसे यूपी में सियासी फायदे के लिए जातियों को एससी कैटेगरी में ट्रांसफर करने का यह पहला पॉलिटिकल लालीपाप नहीं है, बल्कि इससे पहले भी कई बार कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार का नोटिफिकेशन हाईकोर्ट में स्टे कर दिया जाता है. क़ानून के जानकारों के मुताबिक़ योगी सरकार का फैसला भी हाईकोर्ट से रुक जाएगा और वह अमल में नहीं आ पाएगा. यूपी में इससे पहले साल 2005 में तत्कालीन मुलायम सरकार ने ओबीसी की कई जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने का फैसला लिया था, जिसे हाईकोर्ट ने रोक दिया था. इसके बाद साल 2013 में शिल्पकार और धंगड़ जातियों में कुछ उपजातियों को जोड़कर उन्हें एससी कैटेगरी में शामिल करने की कोशिश की गई, लेकिन ये फैसले भी हाईकोर्ट में टिक नहीं सके.

अखिलेश सरकार ने पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दिसम्बर 2016 में सत्रह जातियों को ओबीसी से एससी में ट्रांसफर करने का फैसला किया, लेकिन वह भी हाईकोर्ट से स्टे हो गया. योगी सरकार ने भी इस जीओ को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी तकनीकी आधार पर रुक गया. योगी सरकार ने धनगर को धंगड़ बताकर इस साल फिर से एससी कैटेगरी में ट्रांसफर करने का नोटिफिकेशन जारी किया. उसी आधार पर पूर्व कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल ने आगरा की रिजर्व सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा. वह फैसला भी उन्नीस अप्रैल को हाईकोर्ट से स्टे हो गया.

सभी फैसलों में यही आधार था कि जिस जीओ के जरिये ओबीसी जातियों को एससी में शामिल किया गया, यूपी सरकार को उस तरह का फैसला लेने का कोई अधिकार ही नहीं है. नियम के मुताबिक़ कोई भी सरकार किन्ही जातियों को एससी कैटेगरी में न तो शामिल कर सकती है और न ही उसे बाहर कर सकती है. जातियों को एससी में शामिल करने या बाहर निकालने का अधिकार सिर्फ संसद में क़ानून बनाकर ही किया जा सकता है.

इस तरह के मामलों के जानकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट भी स्थिति साफ कर चुका है. कोर्ट ने तो इसी तरह के एक मामले में टिप्पणी करते हुए यह भी कहा है कि ज़्यादा वोट या सीटें पाकर सरकारें जनप्रिय तो हो सकती हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें काम नियम-क़ानून व संविधान के मुताबिक़ ही करने का अधिकार है.

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