राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामला: इकबाल अंसारी ने कहा- अदालत का फैसला ही मान्य होगा
अयोध्या मामले पर पीएम मोदी के बयान पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार इक़बाल अंसारी का कहना है की पीएम की इस बात का वो इस्तक़बाल करते हैं, मामला सुप्रीम कोर्ट में है लिहाज़ा इस पर अध्यादेश या क़ानून की कोई ज़रूरत नहीं है क़ानून पहले से ही बना है, जो भी फ़ैसला होगा दोनो पक्षों को मान्य होगा.

लखनऊ: राम मंदिर निर्माण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले हलचल तेज हो गई है. चुनावी माहौल के बीच सुप्रीम कोर्ट में आज अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले पर सुनवाई होनी है. कोर्ट आज इस मामले पर अंतिम सुनवाई की तारीख तय कर सकता है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हमारी सरकार मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश नहीं लाएगी. अयोध्या मामले पर पीएम मोदी के बयान पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार इक़बाल अंसारी का कहना है की पीएम की इस बात का वो इस्तक़बाल करते हैं, मामला सुप्रीम कोर्ट में है लिहाज़ा इस पर अध्यादेश या क़ानून की कोई ज़रूरत नहीं है क़ानून पहले से ही बना है, जो भी फ़ैसला होगा दोनो पक्षों को मान्य होगा.
इक़बाल अंसारी ने कहा कि नेता इस मामले पर राजनीति ना करें. ये पुराना मामला है और अदालत में है. अदालत का फ़ैसला ही मान्य होगा. उन्होंने कहा कि ये मसला टेढ़ा है लिहाज़ा आपसी सहमति नहीं बल्कि कोर्ट के फ़ैसले से ही फ़ैसला होगा.
बता दें कि राम मंदिर पर पीएम मोदी के बयान के बाद माहौल गर्म हो गया है. संत समाज की तरफ से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
क्या है राम मंदिर विवाद?
बता दें कि राम मंदिर का मुद्दा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है. साल 1989 में राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद ज़मीन विवाद का ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था. 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया. फैसला हुआ कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाए. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया, तब से यथास्थिति बरकरार है.
8 साल से लंबित है मामला 30 सितंबर 2010 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया था. हाईकोर्ट ने विवादित जगह पर मस्ज़िद से पहले हिन्दू मंदिर होने की बात मानी थी. लेकिन ज़मीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांटने का आदेश दे दिया था. इसके खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. तब से ये मामला लंबित है.
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