ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड में NPCC के टेंडर में 1 करोड़ रुपये का घोटाला, लगाया सरिया और दिखाया पुल
साल 2012 में जो पुल बनना था उसका काम पूरा होना तो दूर शुरू तक नहीं हुआ, काम शुरू हुए बिना 1 करोड़ रुपए निकाल लिए गए.

लातेहार/रांची: झारखंड वैसे तो आदिवासियों के राज्य के तौर पर जाना जाता है, नक्सल की घटनाओं के लिए भी जाना जाता है, लेकिन भ्रष्टाचार के लिए पहचान अभी नई-नई बननी शुरू हुई है. झारखंड से आज हम आपको ऐसे ही भ्रष्टाचार से जुड़ी एक कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप सोचेंगे कि क्या भ्रष्टाचार के नशे में अधिकारी इतने चूर हो जाएंगे कि सरिया और पुल में फर्क न कर पाएं?
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद लातेहार जिला, वो जिला जहां छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के बाद शायद पूरे देश में सबसे ज्यादा नक्सल घटनाएं हुई हैं, वो जिला जहां आदिवासी समुदाय के लोग बहुतायत संख्या में रहते हैं, वो जिला जहां सरकार विकास के दम पर नक्सल को खत्म करने का दावा कर करती है.
साल 2012 में NPCC(नेशनल प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन्स कॉर्पोरेशन) ने लातेहार के अलग-अलग हिस्सों में 4 पुल निर्माण के लिए टेंडर निकाला और रांची की कंपनी फ्लेक्सीकॉन इंजिनियर्स एंड प्लानर कंपनी को 10.52 करोड़ में टेंडर दिया. टेंडर तो दे दिया गया, लेकिन काम नहीं शुरू हुआ, फ्लेक्सीकॉन कंपनी ने फर्जी निर्माण की शुरुआत की. फोटो दिखाकर चारों पुलों के मद से करीब 1 करोड़ रुपए निकाल लिए, ये पुल बालूमाथ में गुरवे गांव के पास 27.24 लाख, बारेसाढ़ में जंगलों के बीच में हेनार नदी पर 27.63 लाख और महुआडांड़ में 2 पुल कुल 44.68 लाख की लागत से बनने थे.
एबीपी न्यूज ने स्थानीय निवासी गुलिया देवी से बात की तो उन्होंने बताया कि वो टमाटर की खेती करती हैं, लेकिन अपनी फसल बेचने के लिए सर पर टमाटर लाद कर किश्तों में बाजार में बेचती हैं, कहती हैं अगर पुल बन गया होता, गाड़ियां गांव तक आती, फसल के अच्छे दाम मिलते, लेकिन मजबूरी में अब यही करना बचा है.
महुआडांड़, दमगढ़वा नाला की रहने वाली अनिली की उम्र 10 साल है और वो 7वीं कक्षा में पढ़ती हैं. एबीपी न्यूज़ से बातचीत में उन्होंने बताया कि हर रोज इसी नदी को पार कर स्कूल जाती है, जब नदी में पानी बढ़ जाता है, तो स्कूल जाना बंद कर देती हैं, क्योंकि कोई विकल्प नहीं बचता है, गांव में कैद होने के अलावा. चारों पुलों में सिर्फ यही ऐसी जगह है जहां पुल के नामपर कुछ सींके देखी जा सकती हैं, बाकी जगह पर ये भी नहीं है.
महुआडांड़ की ही बूढ़ा नदी पर एबीपी न्यूज़ ने बिटिलिया बेक, कमलबसी बेक, अमृता बेक से बात की. बगल के गांव ओरंबी में 100 घर के करीब हैं और परेवा में 70 के करीब परिवार रहते हैं, उनके आने जाने का एकमात्र साधन यही रास्ता है. कहते हैं पुल बनेगा ऐसा सुना था, लेकिन कहां है पुल हमें तो नहीं दिखा आज तक बनते हुए, जब भी बारिश तेज होती है, तो रास्ता बंद हो जाता है, जिसकी वजह से हम कई कई दिनों तक गांव में फंसे रहते हैं.
उसके बाद पुल बनना था बारेसाढ़ की हेनार नदी पर. हमें सनी और अनु ने बताया कि पास के गांवों में स्कूल में पढ़ते हैं, जब हम पुल की पड़ताल करने गए तो बच्चे वहीं बैठे सब देख रहे थे, पूछा तो बताने लगे कि पास के स्कूल में पढ़ने जाते हैं, लेकिन जब नदी में पानी बढ़ जाता है, तो गांव में ही रह जाते हैं, कहते हैं पानी देखकर डर लगता है बाहर निकलने से, हफ्ते में एक दिन सिर्फ बुधवार को बाहर से गाड़ी आती है तो उसी दिन सिर्फ सामान लेना हो पाता है.
ये पुल बारेसाढ़ के घने जंगलों के बीच में करीब 12 किलोमीटर चलने के बाद आता है, ये जंगल हाथियों के उत्पात और नक्सलियों की पनाहगाह के तौर पर भी देखा जाता है. जंगल के बाहर सुरक्षा बलों की टुकड़ियां लगी हैं, बेहद ही खतरनाक रास्ता है यहां तक पहुंचने के लिए. दरअसल बिना पुल के निर्माण की शुरुआत के ही पैसे निकालने का मामला जब सामने आया तो साल 2017 में NPCC के तत्कालीन मैनेजर हरि राम, सीनियर मैनेजर राजेन्द्र पांडेय, जोनल मैनेजर मुकुल कुमार, अकाउंटेंट एनआर टेटरीवाल, अकाउंटेंट मैनेजर सूरज नाथ और इसके साथ टेंडर लेने वाली कम्पनी फ्लेक्सीकॉन इंजीनियर एंड प्लानर्स के प्रोपराइटर राहुल पांडेय और पार्टनर किशोर कुणाल पर एफआईआर दर्ज किया गया.
ये FIR 3 दिसम्बर 2017 को लातेहार के अलग अलग थानों में हुई. मामला महुआडांड़ थाने में 38/17, बालूमाथ थाने में 171/17 और बारेसाढ़ थाने में 6/17 में कांड संख्या के साथ दर्ज हुआ. हैरानी की बात ये है कि साल 2012 में जो पुल बनना था उसका काम पूरा होना तो दूर शुरू तक नहीं हुआ, काम शुरू हुए बिना 1 करोड़ रुपए निकाल लिए गए, पैसे निकलने के बाद मामला खुलता है और केस दर्ज होता है, लेकिन अभी तक न तो नए पुल के निर्माण को लेकर कोई काम शुरू हुआ है और न ही उन लोगों पर कोई ठोस कार्रवाई हुई है, जिनपर FIR दर्ज हुई है.
लातेहार झारखंड के आदिवासी बाहुल्य और अति नक्सल प्रभावित जिलों में से एक है. यहां विकास करना सरकार के लिए कठिन होता है. साथ ही बेहद जरूरी और मजबूरी भी होता है. क्योंकि नक्सल से लड़ने के लिए विकास ही सबसे बड़ा हथियार है, ऐसे में इस जगह इतना बड़ा घोटाला होता है, लेकिन उसपर कार्रवाई तक नहीं होती और न ही पुल बनाने के लिये दोबारा किसी प्रक्रिया की शुरुआत होती है.
इस मामले में एबीपी न्यूज़ ने NPCC से बात करनी चाही, लेकिन NPCC ने बात नहीं की, कई बार संपर्क करने के बाद भी NPCC की तरफ से इस मसले पर बात न करने की बात कही जाती रही. जनता की तकलीफों को ध्यान में रखते हुए जिम्मेदार लोगों को चाहिए था कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई कर नए पुल के लिए काम करते, लेकिन ये सब करना तो दूर बल्कि विभाग और कंपनी अभी भी इसपर लीपापोती में लगे हुए हैं.
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