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Explained: क्यों बेंगलुरु में आफत बन कर आती है बारिश और सैलाब बन जाता है शहर ?

Bengaluru's Troublesome Rain: बेंगलुरु में रविवार रात से शुरू हुई बारिश के जलजमाव ने लोगों का जीना मुहाल कर डाला है. ये टेक शहर अब पानी का सैलाब नजर आ रहा है और ये यहां ये हर बार की कहानी है.

Why Rain Always Brings Trouble In Bengaluru: कर्नाटक (Karnataka)सूबे के राजधानी बेंगलुरु में बारिश ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है और ये कोई पहली बार नहीं है कि यहां बारिश इस तरह की आफत लेकर आती है. अभी भी बेंगलुरू भारी बारिश से जूझ रहा है आखिर यहां बारिश का ये पानी लोगों के लिए मुसीबत बनता है इसके बारे में हम यहां एक नज़र डालने की कोशिश करेंगे. रविवार रात भर हुई भारी बारिश ने बेंगलुरु (Bengaluru) को एक ठहराव पर ला खड़ा कर दिया है. सड़कों पर पानी भर गया, घरों के बेसमेंट जलमग्न हो गए और ये एक सप्ताह में दूसरी बार है. यहां के कार्यकर्ताओं (Activists) और लोगों की शिकायत है कि खराब जल निकासी की व्यवस्था (Poor Drainage System) और उचित योजना की कमी और बुनियादी ढांचे की कमी ने बड़े पैमाने पर जलभराव (Waterlogging) की परेशानी  पैदा की है, अगर ये कहा जाए कि लोग यहां बारिश की वजह से क्राई मी ए रिवर (Cry Me A River) वाली स्थिति में है. यहां किसी शख्स की कमी ने नहीं बल्कि बुनियादी ढांचे की कमी ने लोगों को  रोने पर मजबूर कर दिया है.

रविवार रात से अब तक टेक सिटी का मंजर

बेंगलुरू में राफ्ट (Rafts) बाहर हैं क्योंकि भारत की तकनीकी राजधानी (Tech Capital) के कुछ हिस्सों में रात भर हुई भारी बारिश की वजह से सोमवार को जलभराव हो गया है. इसके बाद से ही  ट्विटर पर पानी में डूबे वाहनों और वहां से गुजरने वाले लोगों की  इसे पार करने की कोशिशों वाली तस्वीरों की जैसे बाढ़ आ गई  हो. मारतहल्ली (Marathahalli) के स्पाइस गार्डन (Spice Garden) इलाके में दोपहिया वाहन तैरते नजर आए तो भारी जलभराव की वजह से स्पाइस गार्डन से व्हाइटफील्ड (Whitefield) तक का रास्ता बंद  हो गया है. यहां की पुलिस के मुताबिक  महादेवपुरा (Mahadevapura) की कई  सड़कों पर आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ जैसे हालातों की वजह से  यातायात पर बेहद प्रभावित हुआ है. . इनमें सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में  व्हाइटफील्ड मेन रोड, ओएआर(OAR), बालगेरे ( Balagere) मेन रोड, इकोस्पेस के पास ओआरआर बेलंदूर (Bellandur), रेनबो ड्राइव के पास सरजापुर रोड, येमलुर मेन रोड और बोरवेल रोड शामिल हैं.

भारी बारिश (Heavy Rain) के कारण ट्रैफिक पुलिस (Traffic Police) ने यहां के लोगों की  सलाह दी कि जब तक बेहद जरूरी (Emergency) न हो तब -तक वो अपने घरों से बाहर न निकलें, इसके अलावा पुलिस ने पैरेंट्स से बच्चों को स्कूल न भेजने को कहा है. रिपोर्ट्स में पता चला है कि लगभग 30 अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स अभी भी पानी से भरे हुए हैं और यहां  बेसमेंट में एक फीट से अधिक बारिश का पानी है. भारत मौसम विज्ञान विभाग  (Meteorological Department) के मुताबिक, बेंगलुरु शहर में रात भर में 131 मिमी बारिश दर्ज की गई और शहर में और भी अधिक बारिश की होने की भविष्यवाणी की गई है. यहां अगले दो दिनों के लिए 7 सितंबर तक पीले रंग (Yellow Warning) की चेतावनी दी गई है.

सोशल मीडिया पर लगातार आ रही तस्वीरों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि टेक शहर बेंगलरु में हालात कितने बदतर हैं, सोशल मीडिया पर शेयर किए मारतहल्ली-सिल्क बोर्ड जंक्शन रोड का विजुएल ये बयां करने के लिए काफी है, इसमें मारतहल्ली-सिल्क बोर्ड जंक्शन रोड (Silk Board Junction Road) के पास एक जलजमाव वाली सड़क पर फंसने के बाद लोकल सुरक्षा गार्डों को एक शख्स को  बचाते हुए दिखाया जा रहा है.भारी बारिश ने सड़कों पर ही नहीं बल्कि यहां आसमानी यातायात पर भी असर डाला है. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरू के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (Bengaluru Kempegowda International Airport)पर भारी बारिश ने उड़ान सेवाओं को भी बाधित कर दिया है. दो अंतरराष्ट्रीय उड़ानों सहित छह विमानों को चेन्नई हवाईअड्डे (Chennai Airport) की ओर मोड़ दिया गया. बारिश के कारण छह अंतरराष्ट्रीय उड़ानों सहित नौ उड़ानों में देरी हुई. यात्रियों को टर्मिनल के बाहर वाहन पार्किंग क्षेत्रों में रुके पानी से भी गुजरना पड़ा. यहां के विजुएल्स से पता चलता है कि  हवाई अड्डे के बाहर के इलाकों में पानी भर गया है.

भारी बारिश

जब मौसम में बारिश (Heavy Rainfall) में  मील के पत्थर साबित होने की बात आती है तो यहां का  गार्डन सिटी बेंगलुरु (Garden City Bengaluru) रिकॉर्ड के बाद रिकॉर्ड तोड़ रहा है. शहर में अगस्त में जितनी बारिश हुई है, वह चार साल में सबसे अधिक दर्ज की गई है. आईएमडी ( IMD) का कहना है कि इस साल अगस्त में  बेंगलुरु में 370 मिमी बारिश हुई, जो अगस्त 1998 में हुई 387.1 मिमी बारिश के अब तक के रिकॉर्ड से थोड़ी ही कम है. मौसम विभाग (Weather Department) के मुताबिक, बेंगलुरु में 2021 में दर्ज की गई वार्षिक वर्षा 1,500 मिमी, 2020 में 1,200 मिमी और 2019 में 900 मिमी से अधिक दर्ज की गई थी. 

बुनियादी ढांचे की कमी

भारी बारिश के कारण बेंगलुरु के आउटर रिंग रोड (ओआरआर) पर बहुत अधिक  जलभराव हो गया. गौरतलब है कि ये शहर को उसके तकनीकी पार्कों (Tech parks) से जोड़ता है. इसका एक अहम  कारण बुनियादी ढांचे (Infrastructure) में कमी है. इस इलाके में हुआ विकास  बुनियादी ढांचे को बहुत पीछे छोड़ गया है. लेकिन इसके साथ बुनियादी ढांचे का बेहतर विकास नहीं किया गया. एक्टिविस्ट नागेश अरास (Nagesh Aras) के मुताबिक 2005 में, 110 गांवों को बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका-बीबीएमपी (Bruhat Bengaluru Mahanagara Palike-BBMP) में मिला दिया गया था, लेकिन नगर निगम ने गांवों को शहर के सूइज्‌ सिस्टम (Sewage System) से जोड़ने की जहमत नहीं उठाई.

यही कारण है कि तूफान के पानी की नालियां बेकार हो जाती हैं और बारिश के पानी के साथ मिलकर कच्चा सूइज्‌  आउटर रिंग रोड पर फैल जाता है. इसके अलावा पानी के लिए कोई पुलिया (Culverts) नहीं हैं. ऐसे में सड़क बहते पानी के लिए एक बांध की तरह काम करती है और पुलियों की कमी के कारण, बारिश के पानी और सीवेज के पानी के पास साथ बहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है, जिससे जलभराव हो जाता है.सरजापुर के रेनबो ड्राइव लेआउट (Rainbow Drive Layout) में भी खराब योजना के कारण बार-बार जलभराव होता है. एक नागरिक समूह  फ्रेंड्स ऑफ लेक्स (Friends of Lakes) के सह-संस्थापक, राम प्रसाद का कहना है कि समय के साथ,  लेआउट के करीब बनी इमारतों ने अपनी ऊंचाई बढ़ा दी, जिससे इलाका "सूप का कटोरा जैसा बन गया है. इससे यहां बारिश में भारी जलभराव को बढ़ावा मिलता है.

पानी के निकास की खराब व्यवस्था

बेंगलुरु में बाढ़ का जैसे हालातों के लिए  पानी के निकास की खराब व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अचानक और भारी वर्षा के होने के मामलों से  निपटने के लिए शहर की पानी निकासी की  व्यवस्था बेहद खराब है. नालियां अक्सर कचरे से भरी रहती हैं,  सूइज्‌ के बहाव में रुकावट डालती हैं  और इतनी संकरी होती हैं कि लगातार बढ़ती आबादी का बोझ नहीं उठा सकतीं. कई नालों को पत्थर के स्लैब से ढककर फुटपाथ में तब्दील किया जा रहा है. हालांकि यह पैदल चलने वालों के लिए बहुत जरूरी जगह देता है. इसका मतलब यह भी है कि इन नालों को नियमित नहीं खोला जाता है और गाद नहीं निकाला जाता है.

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वृषभावती (Vrishabhavathi) में 1990 के दशक की शुरुआत में 226 किमी की गंदे पानी की नालियां (Drains) थीं. 2017 तक 110 किमी से थोड़ा अधिक  नालियां ही रह गई थी.  कोरमंगला (Koramangala) घाटी की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी, यहां की गंदे पानी की नालियां भी आधी ही रह गई थीं.नालों के साथ एक और परेशानी उनके रखरखाव की है. सीएजी (CAG) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बीबीएमपी (BBMP) वर्ष 2019-20 से नाले के रखरखाव के लिए वार्षिक रखरखाव का ठेका देती रही है, लेकिन यह शहर के कुल नालों का केवल 45 फीसदी ही कवर करती है, जो कि 842 किलोमीटर में से 377 किलोमीटर है. बेंगलुरु ( Bengaluru) के आसपास के इलाकों में हालात बदतर हैं, जहां 50 फीसदी से कम नालों की सफाई का ठेका दिया जाता है.

बढ़ते शहर और आबादी

क्लाइमेट एक्सपर्ट भारी बारिश को शहरीकरण से भी जोड़ते हैं. गौरतलब है कि  इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के वर्किंग ग्रुप- 1 ने अपनी एक रिपोर्ट में इसका जिक्र किया है.इसमें बताया गया है कि  शहरी इलाकों अपने नजदीकी गैर शहरी इलाकों की तुलना में ज्यादा गर्म हैं, ये गर्मी भी शहरी इलाकों में ज्यादा बारिश होने की वजह बनती है. इसके साथ ही शहर में प्रदूषण का स्तर बढ़ा रहता है. उद्योगों, पावर प्लांट और परिवहन जैसी इंसानी  गतिविधियों से निकलने वाले एरोसोल बादलों बना सकते हैं और  इससे तेज बारिश की संभावना को बल मिलता है. बेंगलुरु की  शहरी बाढ़ एक चुनौती है.यहां पानी निकलने में अधिक वक्त लगने की वजह से इसके बेहद बुरा असर शहर पर पड़ता है.

इंडियन  इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के एक केस स्टडी के मुताबिक बगैर योजना के  शहरीकरण ने प्राकृतिक तरह से जल सोखने या उसकी निकासी क्षेत्रों की क्षमता पर बेहद बुरा असर डाला है. एक्सपर्ट कहते हैं कि जब मानव  प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों यानी  वेटलैंड्स पर जबरन अतिक्रमण करता है तो इससे बाढ़ के पानी को सोखने या स्टोर करने वाले प्राकृतिक साधन खत्म होते जाते हैं. भारी बारिश के दौरान ड्रेनेज सिस्टम में पानी की स्तर बढ़ जाता है. नतीजा ठोस कचरे को सही तरीके से ठिकाने लगाने की व्यवस्था न होने पर नालियां बंद हो जाती हैं.

गर्म होता अरब सागर भी भारी बारिश की वजह

इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम इन क्लाइमेट स्टडीज के संयोजक और सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर सुबिमल घोष के मुताबिक गर्म होता अरब सागर ( Arabian Sea) भी भारी बारिश की वजह हो सकती है, लेकिन इसके लिए अभी बड़े स्तर पर परीक्षणों की जरूरत है. पहले अरब सागर 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक ठंडा रहा करता था. इस मामले में  इंडियन इंस्टीट्यूटऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं कि 1950 के दशक से अरब सागर के कुछ भागों में तापमान 1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है जो बेहद ज्यादा है. एक स्टडी में पाया गया कि गर्म होते समंदर की वजह से पश्चिमी तट पर ओलावृष्टि, गरज और बिजली पैदा करने वाले क्यूम्यलोनिम्बस  बादल (Cumulonimbus) बन रहे हैं. 

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