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जानिए, उस जज के बारे में जिसने अतीक अहमद को सुनाई है उम्रकैद की सजा

अतीक अहमद पर 17 साल से अपहरण का केस चल रहा था, लेकिन उसे सजा सुनाने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी. जज दिनेश चंद्र शुक्ला ने अतीक को सजा सुना कर एक मिसाल कायम कर दी है.

गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा और दो गुनहगारों को एक-एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाने वाले जज दिनेश चंद्र शुक्ला को अब वाई कैटेगरी की सुरक्षा दी गई है. फैसला सुनाने से पहले तक दिनेश चंद्र शुक्ला को पुलिस की सुरक्षा मिली हुई थी. 

अतीक पर पिछले 44 साल से अलग-अलग केस के अलावा 17 साल से अपहरण का केस चल रहा था. लेकिन उसे सजा सुनाने की हिम्मत किसी में नहीं थी. साल 2012 में दस जजों ने अतीक अहमद मामले पर सुनवाई करने से मना कर दिया था. 

कौन हैं जज दिनेश चंद्र शुक्ला 

स्पेशल कोर्ट (एमपी-एमएलए) के प्रीसीडिंग ऑफिसर जज दिनेश चंद्र शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली से आते हैं. दिनेश चंद्र शुक्ला ने अपने करियर की शुरुआत 21 अप्रैल 2009 को भदोही के ज्ञानपुर में बतौर ज्यूडिशल मैजिस्ट्रेट के तौर पर की थी. इससे पहले वो एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज के पद पर तैनात थे. 

उन्होंने एडीजे झांसी, अडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज इलाहाबाद और मेरठ में डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी के सचिव के पद पर भी सेवाएं दी हैं.  2022 से दिनेश चंद्र शुक्ला स्पेशल कोर्ट (एमपी-एमएलए) के प्रीसीडिंग ऑफिसर का पद संभाल रहे हैं. शुक्ला 29 फरवरी 2028 को रिटायर हो जाएंगे. 

जज दिनेश चंद्र शुक्ला के एजुकेशनल बैकग्राउंड पर एक नजर

दिनेश शुक्ला ने 1982 में हाईस्कूल, 1984 में इंटरमीडिएट, 1986 में बी कॉम, 1988 में एम कॉम, 1991 में एलएलबी और 2014 में पीएचडी की डिग्री ली. 

वकालत के पेशे में सच का साथ देने में विश्वास रखते हैं दिनेश चंद्र शुक्ला 

दिनेश चंद्र शुक्ल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि वकालत के पेशे में सही का साथ देने की सीख दी जाती है. आज मैंने इसी बात को आधार मानते हुए अतीक अहमद के खिलाफ उम्र कैद का फैसला सुनाया. 

जेल में कुछ ऐसी जिंदगी गुजारेगा अतीक  

उम्र कैद की सजा मिलने के बाद माफिया अतीक अहमद को साबरमती जेल में बिल्ला नंबर एलाट हुआ है. अतीक अहमद साबरमती जेल का कैदी नंबर 17052 बना है. माफिया अतीक अहमद को अब उसके नाम के बजाय बिल्ला नंबर से पुकारा जाएगा. अतीक अहमद को सजायाफ्ता कैदियों वाली दो जोड़ी वर्दी भी दी गई. पूर्व सांसद को दो जोड़ी सफेद कुर्ता, पायजामा, टोपी और गमछा दिया गया है. अब उसे जेल में यही कपड़े पहनने होंगे. 

जेल मैनुअल के मुताबिक अतीक को हर दिन जेल के काम करने पड़ेंगे. काम के बदले अतीक अहमद को रोजाना 25 रूपये मिलेंगे. जेल में अतीक अहमद का अकाउंट भी खोला गया है. काम के बदले अतीक अहमद को जो पैसे मिलेंगे वह इसी अकाउंट में जमा होते जाएंगे. अतीक को कुशल कारीगर की कैटेगरी में रखा गया है, इसलिए उसे रोजाना सिर्फ 25 रुपये मिलेंगे. 

जेल मैनुअल के मुताबिक अतीक को खेती - किसानी, माली, बढ़ई, साफ-सफाई, जानवर पालन समेत अन्य काम में से किसी एक को चुनना होगा. दूसरे सजायाफ्ता कैदियों के बीच अतीक लाइन में खड़े होकर खाना लेना होगा. नियम के मुताबिक अतीक को हर दिन भोर में ही उठना पड़ेगा. 

जेल में बंद अतीक अहमद को पहले 380 ग्राम रोटी के साथ दाल चावल दिया जाता था. लेकिन अब 500 ग्राम रोटी व दूसरी खाने की चीजें दी जाएगी. सजायाफ्ता होने के बाद अतीक की बैरक भी बदल दी गई है. अतीक अब सजायाफ्ता कैदियों की पक्का बैरक में रहेगा. 

अतीक के अलावा ये भी दोषी करार

17 साल पुराने केस में कोर्ट ने अतीक अहमद के अलावा दिनेश पासी और खान शौकत हनीफ को दोषी करार दिया. इसके अलावा बाकी सात अभियुक्तों को बरी किया गया है. माफिया अतीक और दिनेश पासी के खिलाफ 364 अ/34, 120 इ, 147, 323/149, 341, 342, 504, 506 (2) धाराएं लगाई गई हैं, वहीं खान शौकत के खिलाफ 364 और 120 इ धाराएं लगाई हैं.

अतीक पर क्या आरोप लगे थे जानिए

अतीक अहमद के ऊपर हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण, सरकारी काम में बाधा डालना, शांति व्यवस्था भंग करना, लाइसेंसी शस्त्र का दुरूपयोग, गुंडा एक्ट, रंगदारी जैसे मामलों में सौ से भी ज्यादा केस दर्ज हैं . ये सभी केस अलग-अलग राज्यों इलाहाबाद, लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, देवरिया में दर्ज किए गए हैं ,लेकिन अतीक को अब तक किसी भी केस में सजा नहीं हुई थी. यह पहला मामला है जिसमें अतीक को सजा हुई है.

अपराध की दुनिया से करियर की शुरुआत करने वाला अतीक अहमद 1989 में राजनीति के क्षेत्र में आया और पांच बार विधायक और एक बार लोकसभा के लिए चुना गया. राजनीतिक सफर की शुरुआत निर्दलीय विधायक के तौर पर करने के बाद वो बहुजन समाज पार्टी, अपना दल और समाजवादी पार्टी में भी रह चुका है.

2004 में अतीक अहमद ने उस फूलपुर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीता जहां से कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चुनाव जीतते थे.

अतीक अहमद प्रयागराज का ही रहने वाले हैं और लंबे समय से उसकी छवि एक दबंग राजनीतिक की बनी हुई है. राजनीति में आने के बाद भी वो एक नेता या जनप्रतिनिधि के तौर पर कम, एक माफिया और बाहुबली के तौर पर ज्यादा जाना जाता रहा.

16 -17 साल की उम्र में पहला केस

अतीक का परिवार बहुत गरीब था, गरीबी की वजह से अतीक ज्यादा -पढ़ लिख भी नहीं पाया. अतीक सिर्फ दसवीं तक ही पढ़ा है. बेहद कम उम्र में अपराध की दुनिया में आ गया. कई रिपोर्टस ये बताती हैं कि वो नाबालिग था तब से अपराध की दुनिया में सक्रिय है. 

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अतीक के पिता फिरोज अहमद इलाहाबाद में तांगा चलाया करते थे. 1979 पहली बार अतीक के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और तब उसकी उम्र 16-17 साल की रही होगी.

अतीक को 10 साल तक उसके इलाके में लोग एक माफिया और बाहुबली के तौर पर जानते रहे. इसी दौरान उसने इलाहाबाद में शहर पश्चिमी से निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत गया.  फिर वो लगातार जीतता रहा. इस तरह अतीक की छवि माफिया के साथ-साथ नेता के तौर पर भी बनने लगी. 

अतीक का इन राजनीति दलों से रह चुका है संबध

साल 1989 में अतीक ने पहला चुनाव जीता और वो समाजवादी पार्टी के करीब होता चला गया. अतीक 1993 में समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ. यह वही दौर था जब यूपी के अलावा पूरे देश में मंडल और कमंडल की राजनीति जोरों पर थी. तीन साल तक समाजवादी पार्टी में रहने के बाद अतीक अहमद ने 1996 में अपना दल में ज्वाइन कर लिया. 

अतीक के बारे में खास बात ये थी कि अतीक चाहे किसी भी पार्टी में रहा हो वो इलाहाबाद शहर पश्चिमी लगातार चुनाव जीतता रहा. 2002 में अतीक ने  इस सीट से पांचवीं बार जीत हासिल की और 2004 में दोबारा समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया. पार्टी ने अतीक को फूलपुर से लोकसभा का टिकट दे दिया और वो जीता भी. 

साल 2004 में राजनीतिक ग्राफ बढ़ा और वो विधानसभा से लोकसभा पहुंच गया. लेकिन यही वो समय भी था जब उसका राजनीतिक ग्राफ गिरना शुरू हुआ. अतीक के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर समाजवादी पार्टी अशरफ को टिकट दे दिया गया.

अशरफ अतीक का भाई था. इसी सीट से बहुजन समाज पार्टी ने राजू पाल को टिकट दिया. इस उपचुनाव में राजू पाल ने अशरफ को हरा दिया. राजू पाल और अतीक कभी करीबी थे लेकिन राजनीति ने दोनों को अलग कर दिया था.

राजू पाल हत्याकांड

जनवरी 2005 में राजू पाल का मर्डर कर दिया गया. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर अशरफ और अतीक का नाम आया. राजू पाल की जीत को अतीक अहमद ने अपनी प्रतिष्ठा पर ले लिया और उसका मर्डर करवा दिया. राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने इस मामले में अतीक अहमद और अशरफ के खिलाफ केस दर्ज कराया.

राजु पाल की हत्या के बाद इस सीट पर फिर उपचुनाव हुए जिसमें बीएसपी ने पूजा पाल को टिकट दिया. इस बार पूजा पाल अशरफ से चुनाव हार गईं.  2007 में हुए विधानसभा चुनाव में पूजा पाल ने अशरफ को चुनाव हरा दिया. यही नहीं, 2012 में इसी सीट पर पूजा पाल ने अतीक अहमद को भी चुनाव में शिकस्त दी.

यूपी में साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी और अतीक अहमद को मोस्ट वांटेड करार कर दिया गया. 2008 में अतीक अहमद ने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर 2012 में उसे जेल से रिहा किया गया.

2014 में समाजवादी पार्टी ने फिर से अतीक को लोकसभा का टिकट दिया लेकिन वो इस बार चुनाव हार गया. इस बीच अतीक की फिर से गिरफ्तारी हुई और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद साबरमती जेल भेज दिया गया. 

24 फरवरी 2023 को राजूपाल हत्या कांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या हुई. उमेश की हत्या के बाद उमेश की पत्नी जया पाल ने भी अतीक अहमद के लिए फांसी की सजा की मांग की थी. उन्होंने कहा कि मैं कोर्ट से उम्मीद कर रही हूं कि अतीक अहमद को फांसी दी जाए. उमेश की पत्नी का ये कहना था कि अगर अतीक बच गया तो मेरा पूरा परिवार खत्म कर देगा. 

उमेश पाल की पत्नी जया पाल ने ये कहा था कि अतीक का एनकाउंटर तो नहीं कर सके लेकिन चाहती हूं कि उसे फांसी की सजा मिले. जया पाल किसी भी तरह के खतरे के डर से सुनवाई के दौरान कोर्ट में भी मौजूद नहीं थी. 

सबूत के मद्देनजर अतीक पर आरोप लगा. इस मामले में अतीक और उसके सहयोगियों के अलावा उसकी पत्नी और बच्चों के खिलाफ भी केस दर्ज हुआ. 

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