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बहुत पेचीदा है वैक्सीन बनाने का काम, स्पीड बढ़ाने के नाम पर सावधानी से समझौता संभव नहीं

आखिर कब तक और कैसे होगा भारत में वैक्सीन आपूर्ति की परेशानियों का समाधान? वैक्सीन से जुड़े ऐसे तमाम सवालों के जवाब यहां जानिए.

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के 17 महीने बाद भी जहां कोरोना वायरस पूरी रफ्तार से फैल रहा है वहीं इसकी रोकथाम में बना टीका जरूरत के मुकाबले आपूर्ति की मांग पूरी नहीं कर पा रहा है. कहां हैं मुश्किलें, क्या हैं वैक्सीन उत्पादकों की दिक्कतें, कैसे मुश्किल है केवल आत्मनिर्भर तरीके से वैक्सीन बनाना. आखिर कब तक और कैसे होगा भारत में वैक्सीन आपूर्ति की परेशानियों का समाधान? ऐसे तमाम मुद्दों पर एबीपी न्यूज के एसोसिएट एडिटर प्रणय उपाध्याय ने बात की भारत की एक प्रमुख वैक्सीन निर्माता कंपनी बायोलॉजिक-ई के वाइस प्रेसिडेंट डॉ विक्रम पराडकर से. यहां पढ़िए पूरी बातचीत. 

सवाल- कोरोना महामारी को अब करीब 17 महीने हो चुके हैं. लेकिन इतने समय बाद भी वैक्सीन का उत्पादन जरूरतें पूरी क्यों नहीं कर पा रहा है?

जवाब- यह बात सही है कि बीमारी 17 महीने पुरानी है. लेकिन यह भी समझना होगा कि बीमारी नोवल है यानि नई है. नोवल कोरोना वायरस को इससे पहले किसी ने देखा नहीं था. जाहिर है पहले न तो कोई इससे संक्रमित हुआ था और न ही उसके पास इसके खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता थी. दूसरे शब्दों में कहें तो हम सभी इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं. चूंकि वायरस नया है इसलिए उसके खिलाफ कोई वैक्सीन भी नहीं थी. क्योंकि वैक्सीन बीमारियों के हिसाब से बनाई जाती है. वैज्ञानिक और डॉक्टर इस बात को अच्छे से समझ चुके थे कि इस बीमारी के खिलाफ कोई उपचार नहीं है और न ही कोई रोग प्रतिरोधक क्षमता. इसलिए वैक्सीन ही एकमात्र उपाय है. इसलिए, सभी वैक्सीन निर्माता इस काम में जुट गए थे. 

वैक्सीन के उत्पादन से बड़ी चुनौती टीकों का डेवलपमेंट होता है. हर बीमारी अलग होती है. हर वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ अलग किस्म का वैक्सीन बनाना होता है. ऐसे में कुछ कंपनियां जो या तो पहले से इस तरह के वायरस पर काम कर रही थीं. या कुछ तेज रफ्तार तकनीक रखती थीं, उनके वैक्सीन पहले आ गए. कोविड19 वायरस के खिलाफ टीका दिसंबर 2020 में आ गया. उसके बाद और भी टीके आने लगे और अब उनका विस्तार हो रहा है. 

इस लड़ाई में करीब 12 महीने ते हमारे पास हथियार ही नहीं था. अब वैक्सीन का अस्त्र है. लेकिन यह भी समझना होगा कि यह किसी सीमित इलाके या देश में फैला बीमारी नहीं महामारी है. जैसे इबोला कुछ दो-चार देशों में ही सीमित कर दिया गया था. मगर कोविड ऐसी बीमारी है जो बीते सौ सालों में पूरी दुनिया को प्रभावित कर रही है.  

सवाल- वैक्सीन अब तो आ गयी है, फिर वैक्सीन उत्पादन और आपूर्ति की ऐसी कौन सी चुनौतियां हैं जिनके कारण लोगों को आप जैसे उत्पादक वैक्सीन नहीं दे पा रहे हैं?

जवाब- वैक्सीन का निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है. इसमें कई चरण होते हैं और हर कदम के लिए अलग अलग चुनौतियां होती हैं. यह चैलेंज समय का भी है और स्केल यानी व्यापकता का भी है. वैक्सीन उत्पादन के विशेष किस्म का निर्माण है. आपने शायद ही कभी देखा हो कि किसी गली मोहल्ले में छोटी सी जगह पर वैक्सीन बन रहा हो. क्योंकि टीकों को बनाने के लिए खास किस्म की मशीनें, विशेष प्रकार के साजो सामान और उसके लिए प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होती है. 

अब तक मौजूद वैक्सीन निर्माण प्रतिष्ठानों को देखें तो पाएंगे कि यह मौजूदा बीमारियों के खिलाफ टीकों की जरूरतें पूरी करने के लिए बनाई गईं थी. मगर इस बीमारी के लिए अचानक दुनिया की 6 अरब आबादी के लिए 12 अरब डोज की जरूरत आ गई है. आज तक कोई टीका इस मात्रा में बनाया ही नहीं गया.  

दुनिया में बहुत कम देश और कंपनियां है जो वैक्सीन बनाती हैं. क्योंकि वैक्सीन हर रोज नहीं ली जाती. जीवन में एक या दो बार इसकी जरूरत पड़ती है. इसलिए, सारे इंतजाम इस समीकरण के हिसाब से थे और पुरानी बीमारियों की जरूरतें पूरी करने के लिए थे. इस जटिलता को समझते हुए ही वैक्सीन निर्माता जहां अपना उत्पादन बढ़ा रहे हैं. वहीं अनेक नई कंपनियां भी वैक्सीन निर्माण के लिए आगे आ रही हैं. 

सवाल- वैक्सीन का एक डोज बनाने में कितना वक्त लगता है?  

जवाब- दुनिया में इस समय तीन-चार किस्म की वैक्सीन प्रचलन में है. जिसमें कोई एडिनो वैक्टर आधारित है, किसी में एमआरएनए, प्रोटीन सबयूनिट या निष्क्रीय वायरस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. हर वैक्सीन का अपना समय होता है. लेकिन आप जो वायल या छोटी शीशी देखते हैं किसी टीके की, तो उसमें डाले जाने वाले वैक्सीन के कई भाग होते हैं जिन्हें अलग-अलग तैयार किया जाता है. 

वैक्सीन का सबसे महत्वपूर्ण पार्ट यानि एंटीजन जिससे हमें प्रतिरोधक क्षमता हासिल होती है उसमें एक से तीन महीने का वक्त लगता है. आपके मन में सवाल आ सकता है कि इतना समय क्यों लगता है? तो इसको समझिए कि यदि टीका वायरस आधारित है तो हमें वायरस को विकसित करने के लिए पहले सेल विकसित करने पड़ते हैं. फिर उससे रिकवरी कर हम एंटीजन हासिल करते हैं. इन सभी चरणों के लिए समय लगता है. 

प्रक्रिया यहां खत्म नहीं होती. क्योंकि उसके बाद टेस्टिंग करनी होती है. यह विशेष किस्म का परीक्षण होता है जिसमें देखना होता है कि एंटीजन ठीक से बना है या नहीं, उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाने वाले अंश ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं. उसके बाद ही आप वैक्सीन के दूसरे हिस्सों के साथ मिलाकर उसे वायल में भर सकते हैं. टेस्टिंग कंपनी के स्तर पर होती है, फिर सरकारी लैब में परीक्षण होता है.  क्योंकि वैक्सीन कुछ थोड़े लोगों को या एक-दो अस्पताल में नहीं दी जानी है बल्कि समाज की व्यापक आबादी को देना होती है. इसलिए परीक्षण की सावधानी सबसे महत्वपूर्ण है. 

सीधे तौर पर कहें तो आज आप जो वायल देख रहे हैं या इस्तेमाल कर रहे हैं. उसके कंपोनेंट का विकास तीन से चार महीने पहले शुरु हुआ होगा. ऐसे में जो प्रक्रियाओं का समय लगता है उसे अधिक रफ्तार में पूरा नहीं कर सकते. सो, आज जो सप्लाई आप देख रहे हैं वो दरअसल, जनवरी की क्षमताओं का उत्पादन है. फरवरी की क्षमता का उत्पादन अब मई के अंत या जून में मिलेगा. यानी यदि उत्पादन क्षमता बढ़ाई भी गई है तो उसके आपूर्ति के स्तर तक असर लाने में कम से कम तीन-चार महीने का वक्त लगता है. 

सवाल- भारत की वैक्सीन जरूरतें बड़ी हैं इसमें कोई शक नहीं. लेकिन हमारा वैक्सीन उत्पादन कितना देसी है और कितना विदेश से मिलने वाले साधन-संसाधन पर निर्भर? क्योंकि इससे ही तय होगा कि हमारा उत्पादन कितनी तेजी से आगे बढ़ेगा. 

जवाब- जैसा मैंने कहा कि वैक्सीन का जो वायल आप देखते हैं वो कई चीजों से मिलकर बना होता है. वायरस ग्रो करने के लिए सेल कल्चर करना होता है. उसके बायोरिएक्टर विदेशों से भी लाने पड़ते हैं. सो कल्चर मीडिया इसके लिए जरूरी होता है वो भी कई बार विदेशों से आयात करना होता है. क्योंकि विशेष जरूरतों को पूरा करने वाली खास कंपनियां हैं जो दुनिया के अलग अलग हिस्सों में हैं. कोई कंपनी फिल्टर बनाती है, कोई बैग बनाती है आदि. उसी तरह के सामान की जरूरत इसलिए होती है क्योंकि वैक्सीन की गुणवत्ता अच्छी हो. 

वैक्सीन निर्माण में इस्तेमाल होने वाले फिल्टर का ही उदाहरण लें. केवल पांच-छह कंपनियां अभी तक इस काम को करती थीं. यह बहुत खास किस्म की जरूरत और बड़ा सीमित उसका बाजार है. यही कंपनियां अलग अलग किस्म के फिल्टर बना रही थीं. यानी कोई वायरस के लिए, प्रोटीन के लिए या बैक्टीरिया के लिए. 

इस महामारी के पहले अभी तक कामकाज ठीक चल रहा था. यह कंपनियां दुनिया की जरूरतें पूरी कर पा रहीं थी. मगर अब उनकी मांग 10 गुना से अधिक बढ़ गई है.  अब जाहिर है इतनी अधिक मांग होगी तो सप्लाई चेन की दिक्कतें आ जाती हैं. इसीलिए हमें वैक्सीन आपूर्ति में परेशानी देखने को मिलती हैं. 

सवाल- यानी केवल अपने साधन- संसाधन के दम पर हम वैक्सीन उत्पादन नहीं बढ़ा सकते…?

जवाब- आज, पूरी दुनिया इस बात को मानती है कि भारत एक बहुत बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश है. सबको उसकी आपूर्ति करता है. लेकिन भारत में होने वाले उत्पादन में कई दूसरे देशों की भी मदद होती है. क्योंकि कोई उसके साजो-सामान सप्लाई करता कोई उसके लिए जरूरी अंश देता है. यही ग्लोबल सप्लाई चेन है. यह कोई एक देश की भी बात नहीं. दुनिया का कोई भी देश केवल अपने दम पर वैक्सीन बनाए यह मुश्किल है. भले ही हर मुल्क यह चाहता है कि वो स्वदेशी तरीके से वैक्सीन बनाए और अपने लोगों की जरूरत को पूरा करे.

एक अच्छी बात हुई है कि इस वैश्विक सप्लाई चेन के बहुत से हिस्से भारत में बनने लगे हैं. बीते एक साल के दौरान हमने देखा कि वैक्सीन के लिए इस्तेमाल होने वाले ग्लास वायल और रबर स्टॉपर भारत में बनने लगे हैं. फिल्टर बनाने के काम में भी अब भारतीय कंपनियां आ गई हैं. इतना ही नहीं विदेशों की कई कंपनियां भी भारत में निर्माण शुरु कर रही हैं. लिहाजा स्वदेशी करण एक सतत प्रक्रिया है. हम इस दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं. 

सवाल- मगर समस्या तो अभी की जरूरत की है. क्या आप जैसे वैक्सीन निर्माताओं ने भारत सरकार से इस बारे में कोई मदद मांगी है ताकि सप्लाई चेन बाधित न हो और उत्पादन बढ़ाया जा सके?

जवाब- करीब 6 माह पहले हमें यह नजर आने लगा था कि वैक्सीन उत्पादन और आपूर्ति में दिक्कतें आ सकती हैं. क्योंकि ऐसे कई साजो-सामान हैं जिनका इस्तेमाल एक से ज्यादा कंपनियां करती हैं. इतना ही नहीं उन सामानों को बनाने वाली कंपनियां भी अपनी प्राथमिकताएं तक सकती हैं कि हम पहले किसका ऑर्डर पूरा करेंगे. इसलिए हमने भारत सरकार से कहा, अन्य देशों की सरकारों को भी कहा, कि अगर वैक्सीन का उत्पादन करेंगे तो इसका लाभ पूरी दुनिया को ही मिलेगा. इसलिए सरकारें दखल दें और कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करें. इसके लिए या तो उत्पादन बढ़ाया जाए या प्राथमिकता दी जाए. 

इसके चलते जो आशंकाएं कुछ महीने पहले थीं कि वैक्सीन उत्पादन बाधित हो सकता है वो अब दूर हो रही हैं. सरकार भी यह कहने की स्थिति में है कि जून जुलाई के बाद वैक्सीन आपूर्ति में तेजी से बढ़ोतरी होगी. अप्रैल-मई में जो कमी महसूस की गई वो जनवरी या फरवरी के महीने में कच्चे माल की उपलब्धता और आपूर्ति से उपजी थी. 

सवाल- इस बात को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे में जब देश में आपूर्ति सुनिश्चित करना चाहिए तब वैक्सीन मैत्री हो या मुनाफे वाले कारोबारी सौदों की आपूर्ति पर ध्यान दिया गया जबकि देश की जरूरतें पूरी की जानी चाहिए थी? इसे कैसे समझाएंगे?

जवाब- वैक्सीन मैत्री हो या कारोबारी सौदे. जो वैक्सीन देश से बाहर गई उसकी मात्रा बहुत ज्यादा नहीं थी. साथ ही वो किसी न किसी जरूरत के मद्देनजर थी. इसे समझना होगा कि वैक्सीन उत्पादन वैश्विक सप्लाई चेन पर निर्भर है. कोई देश इसमें उत्पादन करता है, कोई इसमें अपना शोध योगदान देता है, कोई सामान बनाता है आदि. अब कोविशील्ड को वैक्सीन को ही देखें तो उसके लिए ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने शोध किया, उसे एस्ट्राजेंका को लायसेंस दिया, लेकिन उसका उत्पादन ब्रिटेन में बहुत कम हो रहा है. ज्यादातर ब्रिटेन से बाहर ही हो रहा है. जबकि उसका सबसे अधिक इस्तेमाल ब्रिटेन और फिर उसके बाद भारत में हो रहा है.   

सवाल- बहुत से लोगों को इंतजार जॉन्सन एंड जॉन्सन की उस वैक्सीन का है जो भारत में आपकी कंपनी बायोलॉजिकल-ई उत्पादन कर रही है. इन लोगों को कब तक वैक्सीन उपलब्ध होगी और आपकी तैयारियां क्या हैं?

जवाब- जॉन्सन एंड जॉन्सन कंपनी के हम मैन्यूफैक्चरिंग पार्टनर हैं. दक्षिण अफ्रीका, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया समेत दुनिया भर में उनके कई मैन्यूफैक्चरिंग पार्टनर हैं. बायोलॉजिकल ई की दो बड़ी फेसेलिटी तैयार हुई हैं जहां यह वैक्सीन बनेगी. इन फैसेलिटी में हम वैक्सीन का मुख्य कंपोनेंट भी बनाएंगे और उसकी वायलिंग समेत पूरा टीका तैयार करेंगे. आज हम इस स्थिति में हैं कि जून-जुलाई में पहले बैच का उत्पादन शुरु कर दें. उसके बाद उसके प्रमाणीकरण की प्रक्रिया होती है. सो करीब अगस्त-सितंबर में जॉन्सन एंड जॉन्सन की यह वैक्सीन बाहर मिलना शुरु हो जाएगी. ह

यह सिंगल शॉट वैक्सीन है. यानि इसकी क्षमता दो गुना है क्योंकि अन्य टीकों के दो डोज़ लेना पड़ते हैं. हमारा प्रयास यही है कि हम जल्द से जल्द लोगों को यह वैक्सीन उपलब्ध कराएं. 

सवाल- कोई भी उत्पादन जब लॉन्च होने वाला होता है तो काफी दावे किए जाते हैं. लेकिन बाद में देखने को मिलता है कि आपूर्ति की दिक्कतें आने लगती हैं. ऐसे में आपने क्या इंतजाम किए हैं कि भारत में अधिक से अधिक लोगों के लिए यह टीका सुलभ रहे?

जवाब- बायोलॉजिकल-ई की महारत बड़े पैमाने पर वैक्सीन उत्पादन और आपूर्ति में है. यह काम बीते 50 साल से कर रहे हैं और केवल भारत ही नहीं दुनिया के 100 मुल्कों को वैक्सीन सप्लाई कर रहे हैं. इसलिए जब हमने जॉन्सन एंड जॉन्सन वैक्सीन की साझेदारी पर काम किया तो इस बात की भी प्लानिंग करी कि हमें किन चीजों की जरूरत होगी, इतने प्रशिक्षित मैन पावर की आवश्यकता है आदि. वैक्सीन बनाने के लिए जो कच्चे माल की जरूरत होती है उसे भी हम सुनिश्चित कर रहे हैं. इसके लिए हम उत्पादकों के साथ लगातार संपर्क में हैं ताकि हमें टीकों के निर्माण में जिस चरण पर जरूरत हो तब उसका जरूरी कच्चा माल हमें मिल सके. 

हमारी क्षमता साल में 40-50 करोड़ डोज बनाने की है. अब उसमें पहले और दूसरे महीने में कितना बनता है उसकी कुछ चुनौतियां होती हैं. क्योंकि प्रॉडक्शन लाइन को सक्रिय करने में थोड़ा वक्त लगता है. लेकिन हमारा प्रयास तो यही है कि हम जल्दी से जल्दी अपनी घोषित क्षमता यानी 40-50 करोड़ डोज प्रतिवर्ष की क्षमता पर पहुंचें और लोगों को वैक्सीन दें.  

सवाल- क्या बायोलॉजिकल-ई जॉन्सन एंड जॉन्सन के अलावा और किसी कोरोना टीके के उत्पादन की भी प्रक्रिया में शामिल है?

जवाब- बायोलॉजिकल-ई ने पिछले साल अमेरिका में ह्यूसटन की बेलर यूनिवर्सिटी के साथ एक साझेदारी की थी. इस सहयोग से एक और वैक्सीन हमने विकसित किया है. यह प्रोटीन सब यूनिट तकनीक पर आधारित टीका है. यह टीका विकसित हो गया है और उसके फेज 1 और 2 के ट्रायल भी पूरे हो गए हैं. जल्द ही जून से उसके फेज-3 ट्रायल की शुरु हो जाएंगे.

इसलिए, आशा है कि सितंबर-अक्टूबर तक उसका अप्रूवल हमें मिल जाएगा और उत्पादन शुरु कर देंगे. यह वैक्सीन भी हम बहुत बड़ी क्षमता में बनाएंगे. इसके लिए हमने अलग फैसेलिटी भी तैयार की हैं जो जॉन्सन एंड जॉन्सन वैक्सीन के उत्पादन में काम आने वाली फैसेलिटी से अलग होंगी. उसके लिए भी हमने 50-60 करोड़ डोज सालाना की क्षमता विकसित की है. यह भी दो शॉट वैक्सीन होगी. हमारा प्रयास होगा कि जल्द से जल्द हम उस वैक्सीन को भी वितरित कर पाएं. 

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