क्या है व्यभिचार यानी एडल्ट्री का कानून? क्यों सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि इसमें बदलाव हो?
नई दिल्ली: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से व्यभिचार यानी एडल्ट्री को लेकर बने काकून को सवालों के कठघड़े में रखा गया है. एडल्ड्री पर बने कानून को पुरुष विरोधी बताते हुए कोर्ट ने इसे पांच जजों की संविधान पीठ के पास समीक्षा के लिए भेजा है. क्या है एडल्ट्री कानून और क्यों सुप्रीम कोर्ट अब इस कानून को संशय की नज़र से देख रहा है? आइए जानते हैं इस मामले के बारे में पूरी बात.
भारत में कानून व्यस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए साल 1860 में लॉर्ड मैकाले की अगुवाई में भारतीय कानून संहिता यानी इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) के आपराधिक मामलों के तहत सजा निधारित की गई. नागरिकों की तरफ से किए अपराधों के खिलाफ आईपीसी में निर्धारित धाराओं के मुताबिक सज़ाओं का प्रावधान है.
क्या है व्यभिचार यानी एडल्ट्री कानून? एडल्ट्री कानून के तहत किसी विवाहित महिला से उसके पति की मर्ज़ी के बिना संबंध बनाने वाले पुरुष को पांच साल की सज़ा हो सकती है. दरअसल, एडल्ट्री यानी व्यभिचार की परिभाषा तय करने वाली आईपीसी की धारा 497 में सिर्फ पुरुषों के लिए सज़ा का प्रावधान है. महिलाओं पर कोई कार्रवाई नहीं होती है.
एडल्ट्री कानून के खिलाफ दायर हुई थी याचिका केरल के जोसफ शाइन की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि 150 साल पुराना यह कानून मौजूदा दौर में बेमतलब है. ये उस समय का कानून है जब महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी. इसलिए, व्यभिचार यानी एडल्ट्री के मामलों में उन्हें पीड़ित का दर्जा दे दिया गया.
याचिकाकर्ता की दलील थी कि आज औरतें पहले से मज़बूत हैं. अगर वो अपनी इच्छा से दूसरे पुरुष से संबंध बनाती हैं, तो मुकदमा सिर्फ उन पुरुषों पर ही नहीं चलना चाहिए. औरत को किसी भी कार्रवाई से छूट दे देना समानता के अधिकार के खिलाफ है.
याचिका के आधार शीर्ष अदालत ने की कार्रवाई इस दलील से सहमति जताते हुए कोर्ट ने कहा, "आपराधिक कानून लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता. लेकिन यह धारा एक अपवाद है. इस पर विचार की ज़रूरत है." कोर्ट ने ये भी कहा कि पति की मंजूरी से किसी और से संबंध बनाने पर इस धारा का लागू न होना भी दिखाता है कि औरत को एक संपत्ति की तरह लिया गया है.
इससे पहले 1954, 2004 और 2008 में आए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 497 में बदलाव की मांग को ठुकरा चुका है. यह फैसले 3 और 4 जजों की बेंच के थे. इसलिए नई याचिका को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया है.
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