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क्या है भारत-नेपाल बिजली व्यापार समझौता, कैसे घुसा चीन और अब क्यों है चिंता की बात

बीते कुछ सालों में पड़ोसी देश नेपाल ने करोड़ों रुपयों की जलविद्युत परियोजनाओं को चीनी डेवलपर्स से भारतीय कंपनियों को देना शुरू कर दिया है.

भारत के साथ बिजली व्यापार समझौता नेपाल की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में बड़ा गेम-चेंजर साबित हो सकता है. इस समझौते के अनुसार भारत नेपाल से बिजली खरीदने वाला था, लेकिन बिजली पैदा करने के काम का कॉन्ट्रैक्ट चीनी ठेकेदारों को दिए जाने के बाद अब भारत इसका विरोध कर रहा है.

चीन की विस्तारवादी नीति और चालबाजी कोई नई नहीं है. नेपाल हो या बांग्लादेश, चीन अपने पड़ोसी देशों पर मकड़ जाल फैलाने का कोई मौका नहीं छोड़ता. ऐसे में भारत का कहना है कि वह चीनी ठेकेदारों की दखलअंदाजी के बाद 456 मेगावाट अपर तमाकोशी जलविद्युत परियोजना से बिजली नहीं खरीदेगा.

हालांकि नेपाल का कहना है कि इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए बोली लगाई थी, जिसमें चीन जीता हैं और प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. ऐसे में विरोध का कोई मतलब नहीं बनता. उन्होंने कहा इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए बहुत कम भारतीय या यूरोपीय ठेकेदार हैं और जो मौजूद हैं वह चीनी कॉन्ट्रैक्टर जितने लागत पर काम करने के लिए तैयार नहीं थे.   

नेपाल विद्युत प्राधिकरण के मैनेजिंग डायरेक्टर कुल मन घिसिंग ने भारत को नेपाल की सबसे बड़ी 456 मेगावाट अपर तमाकोशी जलविद्युत परियोजना (UTKHEP) से बिजली खरीदने पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है.

भारत के लिए क्यों है चिंता की बात

भारत ने नेपाल से चीन द्वारा बनाए गए प्लांट से उत्पादित बिजली को खरीदने से पहले ही इनकार कर दिया था. इसके अलावा भारत और चीन के रिश्ते सबसे बुरे दौर में पहुंच चुका है. कुछ दिनों पहले ही अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीन की सैनिकों ने उकसावे वाली कार्रवाई की है. यही कारण है कि भारत लगातार चीन की गतिविधियों पर नजर रख रहा है. वहीं दूसरी तरफ नेपाल के लिए भारत का बिजली खरीदने से मना कर देना चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि भारत ही नेपाल से बिजली का प्रमुख खरीदार है और भारत के बिजली खरीदने से नेपाल को व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलेगी.

क्या है भारत-नेपाल बिजली व्यापार समझौता

इस साल मई के महीने में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल के लुंबिनी गए थे. उस दौरान भारत और नेपाल के बीच 6 समझौते हुए जिनमें पनबिजली परियोजनाएं प्रमुख रहीं. उस वक्त भारत और नेपाल के बीच जो बिजली व्यापार सौदा किया गया. उसके तहत दोनों देश को मिलकर 695 मेगावाट हाइड्रो पावर प्लांट का निर्माण करना था. यह प्लांट नेपाल के पूर्व में अरुण नदी पर बनाया जाएगा, जिससे नेपाल को 152 मेगावाट की मुफ्त बिजली मिलेगी.

बीते कुछ सालों में पड़ोसी देश नेपाल ने करोड़ों रुपयों की जलविद्युत परियोजनाओं को चीनी डेवलपर्स से भारतीय कंपनियों को देना शुरू कर दिया है. चीन की बढ़ती सक्रियता के बीच नेपाल के ऐसे कदम से माना जा रहा है कि भारत का प्रभाव नेपाल में बढ़ रहा है. इसका एक कारण यह ये भी है कि भारत ने नेपाल से चीन द्वारा बनाए गए प्लांट से उत्पादित बिजली को खरीदने से इनकार कर दिया था और भारत ही नेपाल से बिजली का प्रमुख खरीदार है. 

भारत-नेपाल बिजली समझौते से नेपाल को कैसे हो रहा है फायदा

  1. एक अमेरिकी एजेंसी की माने तो नेपाल के पास 40,000 मेगावाट से ज्यादा पनबिजली बनाने की क्षमता है. अगर इस क्षमता का पूरा इस्तेमाल किया जाए तो इससे न सिर्फ नेपाल की बिजली की मांग पूरी होगी. बल्कि बचे हुए बिजली को दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों को निर्यात भी किया जा सकेगा.
  2. भारत-नेपाल बिजली व्यापार समझौता नेपाल की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में बड़ा गेम-चेंजर साबित हो सकता है. पीटीआई के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत और नेपाल के बीच पनबिजली क्षेत्र में सहयोग से हिमालयी देश को लाभ मिलेगा और उसे भारत के साथ व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलेगी.
  3. भारत के साथ मिलकर हाइड्रो पावर प्लांट बनाने के बाद नेपाल ना सिर्फ भारत बल्कि बांग्लादेश और यहां तक ​​कि श्रीलंका में उपभोक्ताओं को बिजली बेच सकेगा.

चीन बनाने वाली थी हाइड्रोपावर प्लांट 

अधिकारियों की माने तो भारत-नेपाल बिजली व्यापार समझौता से पहले इसी पावर प्लांट को चीन की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर कंपनी थ्री गॉर्जेस इंटरनेशनल कॉर्प बनाने वाली थी लेकिन दशकों की देरी के कारण नेपाल ने इस समझौते को रद्द कर दिया.

नेपाल में चीन की मौजूदगी

नेपाल भारत का पड़ोसी देश होने के साथ साथ चीन की सीमा से भी सटा हुआ है. इसलिए दोनों ही देश समय-समय पर यहां अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते हैं. भारत के बाद अगर कोई देश है जिससे नेपाल सबसे ज्यादा व्यापार करता है तो वो चीन ही है. साल 2019-20 में नेपाल ने चीन से करीब 149 करोड़ डॉलर का सामान खरीदा और करीब 1 करोड़ डॉलर का सामान बेचा.

पिछले कुछ सालों में नेपाल और चीन के बीच कई समझौते हुए. साल 2019 में नेपाल ने बीआरआई के तहत नौ अलग-अलग परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था. जिसमें 400 केवी की बिजली ट्रांसमिशन लाइन का विस्तार, नेपाल में तकनीकी विश्वविद्यालय की स्थापना, नई सड़कों, सुरंगों, और पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण शामिल था. हालांकि चीन के साथ किए गए ज्यादातर समझौते और परियोजनाएं अधर में हैं.

भारत का बढ़ता प्रभाव

पिछले कुछ सालों में चीन का नेपाल पर दबदबा बढ़ाने की रणनीति को भारत ने समझा और नेपाल को लेकर कुछ नीतियों को लचीला बनाया. भारत और नेपाल के नेता बीते कुछ सालों में लगातार एक दूसरे के यहां आ-जा रहे हैं. बतौर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच बार नेपाल जा चुके  हैं.

नेपाल की बिजली-निर्यात योजना

भारत ने नवंबर 2021 में ही नेपाल की बिजली के लिए अपना बाजार खोला है. इससे पहले इन दोनों देशों के बीच ज्यादातर व्यापार वाहन और स्पेयर पार्ट्स, सब्जियां, चावल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, मशीनरी, दवाएं, एमएस बिलेट, हॉट स्टील, इलेक्ट्रिक सामान और कोयला को लेकर हुआ करता था. 

नेपाल के ऊर्जा, जल संसाधन और सिंचाई मंत्रालय के अनुसार, भारत ने दो जल विद्युत परियोजनाओं को खरीदने की सहमति जताई थी. जिसमें पहला 24 मेगावाट वाली त्रिशूली और दूसरा 15 मेगावाट वाली देवी घाटी द्वारा उत्पन्न किए गए 39 मेगावाट बिजली है. ये दोनों ही पावर प्लांट भारत ने खुद विकसित किए हैं. जून 2022 में, इस मात्रा को बढ़ाकर 364 मेगावाट कर दिया गया.

नेपाल विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, इस देश ने साल 2021 में अपने राष्ट्रीय ग्रिड में 710 मेगावाट जलविद्युत को जोड़ा था. जिससे नेपाल के पहली बार खपत से ज्यादा बिदली बची.  वर्तमान में सरकार ने साल 2026 तक 10,000 मेगावाट की स्थापित क्षमता तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. नेपाल को उम्मीद है कि निजी कंपनियों के साथ 4,839 मेगावाट के बिजली खरीद समझौतों और 4,341 मेगावाट के खुद के उत्पादन से 2030 तक यह लक्ष्य हासिल कर सकती है.

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