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वो 6 फैक्टर, जो दो बार की सीएम रहीं वसुंधरा राजे की 'महारानी' वाली छवि पर पड़े भारी

Rajasthan New CM: सीवोटर के एक हालिया सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि राजस्थान में अगर BJP चुनाव जीतती है तो क्या वसुंधरा राजे सीएम पद का चेहरा होंगी. इसके जवाब में महज 32 फीसदी लोगों ने हां कहा था.

Vasundhara Raje Not In CM Face Race: राजस्थान में बीते 10 दिनों से नए मुख्यमंत्री को लेकर जारी अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी ने भजनलाल शर्मा को सीएम बनाने का ऐलान कर दिया है. इसके साथ ही दो बार राजस्थान की सीएम रहीं वसुंधरा राजे को बीजेपी ने साइडलाइन कर दिया है. माना जा रहा है कि राजस्थान में 'महारानी' के तौर पर जानी जाने वाली वसुंधरा राजे के बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ रिश्ते सही नहीं रहे हैं. तिस पर विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने खुलेआम अपना शक्ति प्रदर्शन भी किया.   

दरअसल, 3 दिसंबर को चुनावी नतीजे सामने आने के बाद से ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अगले मुख्यमंत्री के नाम को लेकर अटकलें लगने लगी थीं. बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय के बाद मध्य प्रदेश में भी मोहन यादव को सीएम बनाकर अपने फैसले से सबको चौंका दिया. इन दोनों राज्यों में नए सीएम बनने के साथ ही अंदाजा लगाया जाने लगा था कि राजस्थान में भी सीएम पद की कुर्सी पर कोई नया चेहरा नजर आएगा.

आसान शब्दों में कहें तो छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के फैसलों से ही बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को संकेत और संदेश दे दिया था कि राजस्थान में भी यही फॉर्मूला लागू होने वाला है. हालांकि, वसुंधरा राजे तमाम चीजों के बावजूद मजबूती से अपना दावा ठोकती रहीं, जो आखिरकार उनके लिए गलत साबित हुआ. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि वो कौन से फैक्टर रहे, जिनके चलते वसुंधरा सीएम रेस में पीछे छूट गईं.    

अशोक गहलोत के साथ करीबी रिश्ते!
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत के साथ वसुंधरा राजे के अच्छे संबंधों की चर्चा हमेशा राज्य के सियासी गलियारों में होती रही हैं. गहलोत सरकार में डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट ने भी अशोक गहलोत पर वसुंधरा राजे के साथ गठजोड़ होने के आरोप लगाए थे. 

कई मौकों पर गहलोत और राजे एक दूसरे के बचाव की मुद्रा में भी नजर आए. पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी साल अक्टूबर में दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अशोक गहलोत ने वसुंधरा राजे के प्रति हमदर्दी भरा बयान देते हुए कहा था कि मेरी वजह से वसुंधरा राजे को सजा नहीं मिलनी चाहिए. राजे ने हमारी सरकार को गिराने की कोशिश का समर्थन नहीं किया था. यह गलती उन्होंने एक बार कर दी. इस बात की उन्हें सजा नहीं मिलनी चाहिए.   

करीबियों को नहीं मिला टिकट
राजस्थान विधानसभा चुनाव में केंद्रीय चुनाव समिति ने बीजेपी ने अपनी ओर से कराए गए सर्वे के आधार पर टिकट बंटवारा किया. इसमें वसुंधरा राजे के कई करीबियों के टिकटों पर कैंची चल गई. वसुंधरा राजे के समर्थक अशोक परनामी, राजपाल सिंह शेखावत, यूनुस खान और राव राजेन्द्र का टिकट पार्टी ने काट दिया था. ऐसे कई नाम रहे, जो राजे समर्थक होने के चक्कर में अपना पार्टी टिकट गंवा बैठे. हालांकि, वो अपने कुछ करीबियों को टिकट दिलवाने में कामयाब रहीं, लेकिन उनकी टिकट बंटवारे में कुछ खास नहीं चली.

संगठन में पकड़ खत्म
राजस्थान बीजेपी के संगठन में लंबे समय तक सतीश पूनिया प्रदेश अध्यक्ष रहे. पूनिया और वसुंधरा राजे की अदावत चरम पर पहुंचने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इस दौरान संगठन पर वसुंधरा राजे की पकड़ लगभग शून्य हो गई थी.

बीजेपी के नेतृत्व पर दबाव की राजनीति ने पलटा पासा
राजस्थान में 'महारानी' के तौर पर प्रसिद्ध वसुंधरा राजे के लंबे समय से बीजेपी नेतृत्व के साथ रिश्ते सही नहीं माने जा रहे थे. अपने प्रशंसकों के संगठन के जरिये वसुंधरा राजे लगातार अपना नाम सीएम के तौर पर उठवाती रहीं. वहीं, विधानसभा चुनाव में जीत के बाद अपने करीबी विधायकों के साथ बैठक कर शक्ति प्रदर्शन भी किया. ये बात उनके खिलाफ गई.  

संघ ने भी बना ली थी दूरी
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत के बाद वसुंधरा राजे को संघ की पहली पसंद के तौर पर राज्य में सीएम की कुर्सी मिली. हालांकि, हाल के कुछ सालों में संघ से भी उनके संबंध सही नहीं चल रहे थे. टिकट बंटवारे में उनके करीबियों की टिकट कटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जा सकता है.

जनता से भी कटा नाता
पिछले राजस्थान चुनाव में तमाम सर्वे और मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात सामने आई थी कि पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर राजस्थान में कोई असर नहीं पड़ा है. हालांकि, वसुंधरा राजे की लोकप्रियता कम हुई है. सीवोटर के एक हालिया सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि राजस्थान में अगर BJP चुनाव जीतती है तो क्या वसुंधरा राजे सीएम पद का चेहरा होंगी. इसके जवाब में 32 फीसदी लोगों ने हां कहा तो 50 फीसदी लोगों ने नहीं के विकल्प को चुना. वहीं, 18 फीसदी ने कह नहीं सकते के विकल्प को चुना.

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देवेश त्रिपाठी एबीपी न्यूज की डिजिटल वेबसाइट में कार्यरत हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं. व्यंग्यात्मक लेखन में रुचि रखते हैं.
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