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देश के सभी हाई कोर्ट में साल 2018 में जजों की संख्या 687 थी, जानिए साल 2020 में घटकर कितने रह गए

देश के सभी हाई कोर्ट में साल 2018 में जजों की संख्या 687 थी. लेकिन साल 2019 और 2020 में जजों की संख्या घट गई है. वहीं जजों कि नियुक्ति में देरी से संबंधित मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में 8 अप्रैल को होनी है.

न्याय विभाग के सूत्रों ने "26 मार्च को, न्यायाधीशों की 410 रिक्तियों में से, हाईकोर्ट के कॉलेजियम ने 214 पदों के लिए या 52% पदों के लिए सिफारिशें नहीं की हैं." टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 27 मार्च को CJI एसए बोबडे और जस्टिस एसके कौल और सूर्यकांत की पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेंगुपाल से ये 8 अप्रैल को यह बताने के लिए कहा है कि सरकार एचसी कोलेजियम द्वारा सिफारिश किए गए 45 नामों पर क्यों बैठी हुई है, जो कि एचसी जजों की छह से 14 महीने तक की अवधि के लिए हैं और उन्हें जांच के लिए एससी कॉलेजियम में नहीं भेजा गया है.

सरकार 10 नामों पर बैठी हुई है

न्यायमूर्ति कौल ने प्वाइंट उठाया था कि सरकार 10 नामों के ऊपर ही बैठी हुई थी. जो कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए क्लियर किए गए थे. इनकी नियुक्ति  सात से 19 महीने की अवधि के लिए करनी थी. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कलकत्ता HC के न्यायाधीशों के रूप में पांच अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए SC कोलेजियम द्वारा 25 जुलाई, 2019 को सिफारिश सरकार को भेजी गई थी, और इन्हें अभी तक मंजूरी नहीं दी गई है.

इसी तरह, जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए एक वकील का नाम 17 महीने से लंबित है और इनके नाम को कॉलेजियम द्वारा मंजूरी भी दे दी गई है. वहीं दिल्ली हाईकोर्ट के लिए चार नाम केंद्र के पास सात महीने से लंबित हैं.

SC 8 मार्च को करेगी मामले में सुनवाई

गौरतलब है कि कानून मंत्रालय ने हाल ही में विभिन्न HC कोलेजियम द्वारा सिफारिश किए गए 45 नामों को SC कोलेजियम को स्क्रूटिनि के लिए भेजा हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच 8 अप्रैल को जजों की नियुक्ति में देरी से संबंधित मामले की सुनवाई करने वाली है.

कानून मंत्रालय के सूत्र ने ये कहा

वहीं एक कानून मंत्रालय के सूत्र ने कहा, "सबसे पुरानी रिक्ति, एडवोकेट के कोटे के बीच से भरी जानी है, ये 14 अक्टूबर 2014 की हैं. वहीं उड़ीसा HC में में HC कोलेजियम को छह साल से अधिक समय बाद भी सिफारिश करनी है. वही कम से कम नौ अन्य HC हैं जहां बार कोटा से सबसे पुरानी रिक्ति के खिलाफ, पांच साल से अधिक वर्षों के लिए कोई सिफारिश नहीं की गई है. मंत्रालय के सूत्रों ने ये भी कहा कि वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों के बीच से एचसी न्यायाधीशों के पदों को भरने के बारे में स्थिति समान थी. सूत्र ने कहा, "तीन हाईकोर्ट हैं जहां पांच साल से अधिक समय से एचसी कॉलेजियम द्वारा सेवा कोटे के रिक्त पदों के खिलाफ नामों की सिफारिश नहीं की गई है."

महिला हाईकोर्ट न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिशें कम

वहीं मंत्रालय ने SC कोलेजियम पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसने अभी तक 17 नवंबर, 2019 को CJI रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति से उत्पन्न होने वाली रिक्ति के खिलाफ एक न्यायाधीश की नियुक्ति की सिफारिश नहीं की. तब से, रिक्तियां पांच तक बढ़ गई हैं और एससी कॉलेजियम द्वारा कोई सिफारिश नहीं की गई है, उन्होंने कहा, महिला हाईकोर्ट न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सिफारिशों में कमी है.  जस्टिस इंदिरा बनर्जी SC में अकेली महिला जज हैं.

हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति घटी

मंत्रालय ने कहा कि 2018 में रिकॉर्ड के मुताबिक हाईकोर्ट में 687 जज थे जो 2019 में घटकर 677 और 2020 में 668 हो गए,  यूपीए शासन के दौरान, 2013 में हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या 639 थी.  2016 में हाईकोर्ट न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे. UPA-1 के दौरान हाईकोर्ट में न्यायधिशों की नियुक्ति 75 प्रति वर्ष थी. वहीं यूपीए-2 के दौरान ये 74 प्रति वर्ष हो गई. मंत्रालय के मुताबिर एनडीए सरकार के दौरान हाईकोर्ट में हर साल 103 जजों की नियुक्ति की गई.

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