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भूमि अधिग्रहण पर SC का बड़ा आदेश, पुराने कानून के तहत प्रक्रिया तभी निरस्त जब गलती सरकार की हो

सुप्रीम कोर्ट ने नई व्याख्या देते हुए कहा है कि सरकार अगर भूमि पर कब्जा न ले और किसान को मुआवजा भी न दे तभी अधिग्रहण रद्द होगा.सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि उसकी मंशा यही है कि असली जमीन मालिक को लाभ मिल सके.

नई दिल्ली: भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया है. देश भर में इसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ेगा, जिनकी जमीन की अधिग्रहण प्रक्रिया 2013 का नया एक्ट लागू होने से पहले शुरू हुई थी. कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ उन्हीं मामलों में पुराने कानून के तहत शुरू हुई भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द होगी, जिनमें सरकार ने न तो मुआवजा दिया, न ही जमीन पर कब्जा लिया.

दरअसल, 2013 में पास किए गए भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 24 (2) में इस बात का प्रावधान है कि अगर अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करने के 5 साल के भीतर सरकार या तो जमीन पर कब्जा नहीं लेती या मुआवजा नहीं देती तो भूमि अधिग्रहण रद्द मान लिया जाएगा. अब सुप्रीम कोर्ट ने नई व्याख्या देते हुए कहा है कि सरकार अगर भूमि पर कब्जा न ले और किसान को मुआवजा भी न दे तभी अधिग्रहण रद्द होगा. मतलब अगर दोनों में से कोई भी एक चीज की गई है तो अधिग्रहण प्रक्रिया जारी रहेगी.

जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों के संविधान पीठ ने भूमि अधिग्रहण कानून की व्याख्या को लेकर इससे पहले आए पुणे म्युनिसिपैलिटी और इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी मामलों के फैसलों को निरस्त कर दिया है. कोर्ट ने फैसले में लिखा है कि अगर जमीन पर कब्जा रखने वाला व्यक्ति जानबूझ कर मुआवजा नहीं ले रहा तो इसे सरकार की गलती नहीं कहा जा सकता. अगर सरकार मुआवजा दे चुकी है, लेकिन किसी मुकदमे के चलते कब्जा नहीं ले पा रही, तो इसको भी सरकार की गलती नहीं माना जा सकता. सरकार की गलती तभी मानी जाएगी जब उसने लापरवाही की हो. अधिग्रहण की प्रक्रिया तो शुरू की, लेकिन न मुआवजा दिया, न ही जमीन पर कब्जा लिया.

सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि पुराने कानून के तहत शुरू की गई की गई अधिग्रहण की हर उस प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाए जो 1 जनवरी 2014 को नया कानून लागू होने के 5 साल या उससे पहले शुरू हुई थी. जिनमें प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है. या तो जमीन का मुआवजा दिया जाना बाकी है या सरकार ने कब्जा नहीं लिया है. याचिका में मांग की गई थी कि इस तरह की तमाम अधिग्रहण प्रक्रिया को रद्द करार दिया जाए और सरकार से कहा जाए कि वह नए कानून के तहत, नई कीमत के मुताबिक अधिग्रहण शुरू करें.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि अगर अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद सरकार ने अपनी तरफ से मुआवजे का ऐलान कर दिया है और उसे सरकारी कोष में जमा करा दिया गया है, तो यह जरूरी नहीं होगा की उसे कोर्ट में जमा कराया जाए. एक पुराने फैसले के तहत इस बात का प्रावधान किया गया था कि अगर किसान मुआवजा नहीं ले रहा है तो सरकार को उसे कोर्ट में जमा करवाना चाहिए, नहीं तो अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं मानी जाएगी. अब संविधान पीठ ने कहा है कि अगर सरकार ने मुआवजे के लिए स्वीकृत राशि अपने कोष में जमा करा रखी है तो फिर भूमि मालिक की तरफ से वहां से पैसा नहीं उठाना सरकार की गलती नहीं मानी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि उसकी मंशा यही है कि असली जमीन मालिक को लाभ मिल सके. अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीच में बहुत सारे मध्यस्थ आ जाते हैं, जो जमीन की कीमत ज्यादा कीमत सरकार से वसूलने के लिए प्रक्रिया में अड़ंगेबाजी शुरू कर देते हैं. कोर्ट ने कहा है कि इस आदेश का सीधा असर यह होगा कि 1 जनवरी 2009 से पहले जिन असली जमीन मालिकों की भूमि के अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू हुई थी, उनको लाभ मिलेगा. मुनाफा कमाने के चक्कर में प्रक्रिया में दखलअंदाजी करने वाले लोगों का ही इससे नुकसान होगा.

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