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धर्म परिवर्तन पर यूपी के नए कानून को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती, सुनवाई के लिए SC ने जताई सहमति

Advocate S. Murlidhar in Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट में सीनियर अधिवक्ता एस. मुरलीधर ने सीजेआई समेत 3 जजों की बेंच के समक्ष यूपी के संशोधित कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए अपनी दलीलें दी.

Supreme Court hearing on Conversion : उच्चतम न्यायालय गैर-कानूनी धर्मांतरण के मामले पर उत्तर प्रदेश के 2024 के संशोधित कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने के लिए शुक्रवार (2 मई) को सहमत हो गया.

सीजेआई संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर की दलीलों पर गौर किया. अधिवक्ता एस. मुरलीधर ने कहा, “साल 2024 में संशोधित ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम’ के कुछ प्रावधान अस्पष्ट और अत्यधिक व्यापक हैं और यह अस्पष्टता अभिव्यक्ति और धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता का हनन करती है.

हालांकि, प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने फिलहाल जनहित याचिका पर कोई नोटिस जारी नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि इस मामले पर मंगलवार (13 मई, 2025) को अन्य लंबित याचिकाओं के साथ सुनवाई की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट संशोधित कानून के खिलाफ लखनऊ निवासी रूपरेखा वर्मा और अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है.

अधिवक्ता ने दायर याचिका में संशोधित कानून पर खड़े किए सवाल

अधिवक्ता पूर्णिमा कृष्ण के मार्फत दायर याचिका में आरोप लगाया गया कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 19 (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का हनन करता है.

उन्होंने याचिका में दावा किया कि अधिनियम की धाराएं 2 और 3 अस्पष्ट, अत्यधिक व्यापक और बिना स्पष्ट मानकों वाली हैं, जिससे यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि वास्तविकता में अपराध क्या है?

दंडनीय कानून स्पष्ट और सटीक होने चाहिए- अधिवक्ता पूर्णिमा

याचिका में कहा गया, “यह अस्पष्टता वाक् स्वतंत्रता और धार्मिक प्रचार का हनन करती है, जिससे मनमाने और भेदभावपूर्ण तरीके से इसे लागू किया जाना संभव हो जाता है, जबकि दंडनीय कानून सटीक होने चाहिए. अस्पष्ट प्रावधान अधिकारियों को अत्यधिक विवेकाधिकार प्रदान करते हैं और निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ गलत तरीके से मुकदमा चलाने का जोखिम मोल लेकर संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं.”

याचिका में यह भी कहा गया, “इसमें मुख्य चिंता यह है कि 2024 का संशोधन प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को शामिल किए बिना शिकायत दर्ज करने के लिए अधिकृत व्यक्तियों की श्रेणी का विस्तार करता है.” उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण पर विभिन्न राज्यों के कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं.

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