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जानिए कहानी उस तुगलक लेन की जहां पर राहुल गांधी को दोबारा मिला हाउस नंबर-12

तुगलक लेन राजनीतिक शख्सियतों का घर रह चुका है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी को यहां का आवास मिलने के बाद एक बार फिर खबरों में है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल कर दी गई है. इसके एक दिन बाद उनको पुराना सरकारी बंगला फिर से आवंटित किया गया है. लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद राहुल गांधी ने अप्रैल में 12 तुगलक लेन स्थित अपने बंगले को खाली कर दिया था. वो अपनी मां सोनिया गांधी के साथ रहने चले गए थे.

सूरत की मेट्रोपोलिटन अदालत ने 'मोदी' सरनेम पर टिप्पणी से जुड़े आपराधिक मानहानि के एक मामले में राहुल गांधी को दो साल कैद की सजा सुनाई थी. इसके बाद उन्हें 24 मार्च को निचले सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया गया था. मानहानि मामले में उच्चतम न्यायालय की तरफ से उनकी सजा पर रोक लगाए जाने के कुछ दिन बाद सोमवार को लोकसभा सचिवालय ने उन्हें सांसद बहाल कर दिया था.

राहुल गांधी को सांसद के रूप में एक बंगले के आवंटन के लिए एस्टेट कार्यालय से आधिकारिक पुष्टि मिली और उन्हें 12 तुगलक लेन की पेशकश की गई है. एएनआई की खबर के मुताबिक राहुल गांधी ने बंगला लेने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं सुनाया है उनके पास इस पर जवाब देने के लिए आठ दिन का वक्त है. 

तुगलक लेन में राहुल के बंगले की खासियत 

टाइप 8 का यह बंगला सबसे हाई प्रोफाइल बंगला माना जाता है. राहुल गांधी को यह बंगला  संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के दौर में दिया गया था. एक एकदम शांत एकांत तुगलक गली में एक कोने में बनी इमारत है.  इस घर को इसकी जगह और खास बनाती है. हाउस नंबर 12 जहां पर राहुल गांधी रहते आए हैं, उसका उनकी बहन प्रियंका वाड्रा ख्याल रखती आई हैं. इसमें एक जिम और कुछ कार्यालय हैं.

कई बड़े नेताओं का ठिकाना रह चुका है तुगलक लेन

तुगलक लेन ने राहुल गांधी के अलावा चरण सिंह से लेकर लालू यादव और शरद यादव और कई ऐसे नेता देखे हैं, जो महलनुमा बंगलों में रह चुके हैं. यहां रहने वाले ज्यादातर नेता पद छोड़ने के बाद अपने आवास खाली कर देते हैं. राहुल गांधी 12, तुगलक लेन बंगला में 19 साल तक रहे थे. अब दोबारा से उन्हें यह बंगला मिला है.

कई सालों तक केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर 12, तुगलक रोड पर राहुल गांधी के पड़ोसी थे. ऐसा कहा जाता है कि इन दोनों नेताओं को लिखे पत्रों की अक्सर अदला-बदली हो जाती थी. पूर्व केंद्रीय उड्डयन मंत्री और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के प्रमुख अजित सिंह भी 12 तुगलक रोड पर रह चुके हैं.

चरण सिंह के बेटे अजित सिंह ने तुगलक आवास को स्मारक में बदलने की उठाई थी मांग

अजित सिंह को 2014 में घर खाली करने के लिए मजबूर किया गया था. वह मांग कर रहे थे कि घर को उनके पिता, पूर्व पीएम चरण सिंह के स्मारक में बदल दिया जाए. चरण सिंह ने 1977 में मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में मंत्री बनने पर 12 तुगलक रोड पर  आवास में रहना शुरू किया था.

संपदा निदेशालय द्वारा आवास खाली करने का नोटिस दिए जाने के बाद ही अजित सिंह ने अपने पिता के स्मारक की मांग की. लेकिन जब वह बंगला खाली करने पर राजी नहीं हुए  तो नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) ने बिजली की आपूर्ति काट दी. इसके परिणामस्वरूप गाजियाबाद और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में आरएलडी समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया. 

पिछले साल तक शरद यादव भी राहुल गांधी के पड़ोसी थे. वह कई सालों से 7 तुगलक रोड पर रह रहे थे. जब शरद यादव 7 तुगलक रोड का आवास छोड़कर जाने लगे तो उनकी आंखों में आंसू थे.  

ऐतिहासिक एफआईआर का गवाह रह चुका है तुगलक लेन का पुलिस स्टेशन

राहुल गांधी जिस तुगलक लेन के हाउस नंबर 12 में लगभग 2 दशक से रह रहे थे, वहां के पुलिस स्टेशन में दो ऐतिहासिक एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी हैं.  इनमें महात्मा गांधी और बाद में इंदिरा गांधी की हत्या से संबंधित हैं.  इसके बारे में ये भी कहा जाता है कि राजनीतिक नेताओं के बारे में इस तरह के ' ट्रैक रिकॉर्ड' वाले और कोई पुलिस स्टेशन नहीं मिलेंगे.

31 अक्टूबर, 1984

31 अक्टूबर 1984...,राजधानी में सर्दियां शुरू हो रही थीं. दिन में हल्की धूप थी. तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के कुछ पुलिसकर्मी अपने कमरे के अंदर चाय की चुस्कियां ले रहे थे. स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) राजेंद्र प्रसाद अपने डिप्टी जेएस जून के साथ बातचीत कर रहे थे. बातचीत करने के बाद दोनों दिल्ली पुलिस ऑफिसर अलग हो गए.

बताया जाता है कि तुगलक रोड पुलिस स्टेशन से जुड़े 1 सफदरजंग रोड पर तैनात हेड कांस्टेबल नारायण सिंह उस समय अपने कार्यालय में थे. वह 1980 से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निजी सुरक्षा की ड्यूटी पर थे.

फर्स्ट पोस्ट में छपी खबर के मुताबिक जेएस जून बताते हैं ' 31 अक्टूबर 1984 को सुबह करीब 9.30 बजे एसएचओ राजेंद्र प्रसाद तीस जनवरी मार्ग, खान मार्केट और औरंगजेब रोड के चक्कर लगाने के लिए थाने से निकलने वाले थे.  तभी उन्हें वायरलेस के माध्यम से एक धरती को हिला देने वाली जानकारी मिली कि "पीएम इंदिरा गांधी को उनके घर में गोली मार दी गई है".  उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था. वह कांप रहे थे'.

कुछ ही सेकंड में तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मी की नींद उड़ गई. तुगलक रोड पर भयंकर हंगामा मच गया था. राजेंद्र प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत पीएम हाउस पहुंचे. पीएम हाउस के अंदर हेड कांस्टेबल नारायण सिंह गोलीबारी की घटना के गवाह बने थे. तुगलक रोड पुलिस स्टेशन में नारायण सिंह के बयान के आधार पर एक प्राथमिकी (एफआईआर संख्या 241/84) दर्ज की गई थी.

लगभग 37 सालों तक दिल्ली पुलिस की बहादुरी से सेवा करने के बाद नारायण सिंह 2010 में सेवानिवृत्त हुए . वो उत्तराखंड में अपने मूल स्थान चमोली में स्थानांतरित हो गए. राजेंद्र प्रसाद और जून 1999 और 2008 में सेवानिवृत्त हुए. 

तुगलक रोड, 30 जनवरी, 1948

30 जनवरी 1948 को दिल्ली में कपकपाती ठंड पड़ रही थी. पार्लियामेंट पुलिस स्टेशन के डीएसपी जसवंत सिंह और तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर दसौंधा सिंह अल्बुकर्क रोड (अब तीस जनवरी मार्ग) पर बिड़ला हाउस के गेट पर थे, जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मार दी थी. उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी थी.

चूंकि तुगलक रोड पुलिस स्टेशन तब पार्लियामेंट पुलिस स्टेशन का हिस्सा था. जसवंत सिंह और दसौंधा सिंह दोनों यह देखने के लिए बिड़ला हाउस जा रहे थे कि बापू की दैनिक प्रार्थना सभा में सब कुछ ठीक है या नहीं. बिड़ला हाउस के अंदर पूरी तरह अफरा-तफरी मच गई. गोडसे को बापू की प्रार्थना सभा में शामिल होने आए लोगों ने पकड़ लिया था. बाद में भीड़ ने गोडसे को जसवंत सिंह और दसौंधा सिंह को सौंप दिया.

बापू की हत्या शाम 5:17 बजे हुई थी, लेकिन एफआईआर नंबर 68 रात 9.45 बजे लिखी गई थी. नंद लाल मेहता नाम के एक व्यक्ति के चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर एएसआई डालू राम ने एफआईआर लिखी. मेहता एक गुजराती थे और गांधीजी के उपदेश सुनने के लिए रोजाना बिड़ला हाउस जाते थे. वह कनॉट प्लेस के एम-56 में रहते थे.मेहता का 70 के दशक की शुरुआत में निधन हो गया. उनके परिवार ने 1978 में कनॉट प्लेस स्थित अपना आवास छोड़ दिया था.

डीएसपी जसवंत सिंह का पोता अभी भी पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार में रहता है. जसवंत सिंह पंजाब पुलिस के अधिकारी थे, जो बापू को गोली मारे जाने के समय दिल्ली में दो साल की प्रतिनियुक्ति पर थे. बताया जाता है कि इंस्पेक्टर दसौंधा सिंह का परिवार कई साल पहले कनाडा चला गया था .

अब तुगलक रोड के हनुमान मंदिर का किस्सा

तुगलक रोड पर छोटा हनुमान मंदिर का जिक्र भी जरूरी है.  आप तुगलक रोड से कृष्ण मेनन मार्ग की ओर ड्राइव करते हैं तो यह बाईं तरफ है. मंगलवार और शनिवार को बहुत बड़ी संख्या में यहां पर भक्त आते हैं. पुराने लोग याद करते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री और जगजीवन राम भी वहां नियमित रूप से आते थे.

द पैट्रिऑट में छपी खबर के मुताबिक तमिल और हिंदी कवि भास्कर राममूर्ति याद करते हैं, 'मुझे अच्छी तरह से याद है जब लाल बहादुर शास्त्री यहां प्रार्थना करने के लिए आते थे.  हम आईएनए कॉलोनी के दोस्त भी साइकिल से तुगलक रोड तक जाते थे. यह 1960 के दशक की शुरुआत की बात है'.

किस्सा सचिन तेंदुलकर के तुगलक लेन बंगले का

2012 में मास्टर ब्लास्टर और राज्यसभा सांसद सचिन तेंदुलकर को तुगलक लेन में  बंगला नंबर 5 आवंटित किया गया था.  दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह तुगलक लेन के बंगला नंबर 5 में रहते थे.  लेकिन दोनों की मौत हादसों में हो गई. 

साहिब सिंह वर्मा की जयपुर-दिल्ली राजमार्ग (एनएच-8) पर एक कार दुर्घटना में 30 जून, 2007 को मौत हो गई थी. सुरेंद्र सिंह की 31 मार्च, 2005 को सहारनपुर के पास एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई थी.

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