मुंबई में किसानों की रैली में पहुंची कांग्रेस और एनसीपी, आखिर शिवसेना क्यों रही नदारद?
मुंबई के आजाद मैदान में सोमवार को कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन किया गया. इसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस नेता और सरकार में मंत्री बालासाहेब थोराट और समाजवादी पार्टी के अबू आजमी शामिल हुए. लेकिन शिवसेना की तरफ से कोई नेता शामिल नहीं हुआ.
मुंबई: महाराष्ट्र में किसानों ने आज कृषि कानून के खिलाफ रैली की और एक मोर्चा निकाला. किसानों की इस रैली को महाराष्ट्र की सत्ताधारी महाविकास आघाडी की सरकार का समर्थन था. एनसीपी और कांग्रेस के दिग्गज नेता तो किसानों के मंच पर पहुंचे लेकिन सरकार के सबसे प्रमुख घटक दल शिवसेना का न तो कोई नेता और न ही कार्यकर्ता रैली में नजर आया.
किसान और मजदूरों संगठनों की ओर से आज मुंबई के आजाद मैदान में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन किया गया. आंदोलन में शामिल होने के लिये शनिवार के दिन नासिक से बजे पैमाने पर किसान मुंबई की ओर निकले थे. मुंबई के आजाद मैदान में एक बड़ा मंच बनाया गया. मंच पर किसान-मजदूर और वामपंथी दलों के नेताओं के अलावा राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी शिरकत की. एनसीपी प्रमुख शरद पवार, महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व प्रमुख बालासाहेब थोराट और समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र प्रमुख अबू आजमी समेत कई नेताओं ने सभा को संबोधित किया.
इस भीड़ में राज्य के अलग अलग हिस्सों से आये किसानों के अलावा तमाम राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टियों के झंडे लेकर मौजूद थे लेकिन शिवसेना का न तो कोई नेता आया और न ही कोई कार्यकर्ता. रैली में न तो उद्धव ठाकरे आये, न आदित्य ठाकरे, न संजय राउत और न ही कोई दूसरा नेता दिखा. मंच पर आंदोलन में शामिल होने वाले तमाम दलों के नाम लिखे थे जिनमें शिवसेना का नाम भी था.
किसान आंदोलन को महाराष्ट्र के सियासी हलकों में तमाम गैर बीजेपी पार्टियों के एक साथ आने के मौके के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में शिवसेना की गैर मौजूदगी से सवाल उठने शुरू हो गये हैं. शिवसेना के रवैए किसान कानूनों को लेकर पहले से ही उलझनभरा और अस्पष्ट रहा है. लोकसभा में शिवसेना कृषि बिलों का समर्थन कर चुकी है तो राज्य सभा में उनका विरोध किया. सीएए के संसद में पारित किये जाते वक्त भी शिवसेना का बर्ताव ऐसा ही रहा.
अब सवाल ये उठाया जा रहा है कि शिवसेना किसानों के आंदोलन में शामिल न होकर इस इमेज को नकारने की कोशिश कर रही है कि वो शरद पवार के इशारों पर काम करती है? शिवसेना क्या ये जताना चाहती है कि वो बड़े मुद्दों पर स्वतंत्र फैसले ले सकती है या फिर इसे भविष्य की राजनीति के मद्देनजर बीजेपी के प्रति नरम रवैए की एक शुरुआत के तौर पर देखा जाये?
हाल के दिनों पर महाराष्ट्र सरकार के घटक दलों के बीच खूब मनमुटाव देखने को मिला है. खासकर औरंगाबाद के नामकरण के मसले को लेकर शिवसेना और कांग्रेस के बीच जमकर तनातनी हुई है. ऐसे में शिवसेना उम्मीदों के विपरीत रूख अपना सकती है, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
हालांकि, जब पत्रकारों ने शिवसेना नेताओं से रैली में उनके हाजिर न होने पर सवाल किया तो गोलमोल जवाब मिला. उद्धव ठाकरे के बेटे और राज्य के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने कहा कि शरद पवार राज्य में गठबंधन के नेता हैं. उनके जाने से फिर शिवसेना को किसी नेता को भेजने के जरूरत नजर नहीं आई. पवार ने ही उनका भी प्रतिनिधित्व कर दिया.
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