सत्ता के लिए भाईयों की हत्या, 49 वर्षों तक रहा बादशाह, कश्मीर से अफगानिस्तान तक राज करने वाले औरंगजेब के बारे में जानिए सबकुछ
Aurangzeb Profile: मुगल साम्राज्य के छठे शासक औरंगजेब आलमगीर का नाम भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद शासक के रूप में दर्ज है. उसका शासनकाल (1658-1707) लगभग 49 वर्षों तक चला.

Profile of Aurangzeb: मुगल साम्राज्य के छठे शासक औरंगजेब आलमगीर का नाम भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद शासक के रूप में दर्ज है. उसका शासनकाल (1658-1707) लगभग 49 वर्षों तक चला, जो मुगल वंश में सबसे लंबा था. हालांकि उसकी कट्टर धार्मिक नीतियों और सैन्य अभियानों ने साम्राज्य को अंत में काफी कमजोर कर दिया था.
उसका पूरा नाम अबुल मुज़फ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब आलमगीर था. आइये जानते हैं, औरंगजेब के जीवन से जुड़ी से कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं.
दोहद में हुआ था जन्म
औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को उज्जैन के निकट दोहद नामक स्थान पर हुआ था. वह शाहजहां और उनकी प्रिय पत्नी मुमताज महल का पुत्र था. 18 मई 1637 ई. को औरंगजेब का विवाह फारस के राजघराने की राजकुमारी दिलरास बानो बेगम (रबिया बीबी) से हुआ था.
सत्ता हासिल करने के लिए संघर्ष
औरंगजेब ने सत्ता हासिल करने के लिए अपने परिवार के खिलाफ संघर्ष किया. 1657 ई. में जब पिता शाहजहां बीमार हुए, तब उनके चारों पुत्रों दारा शिकोह, शुजा, मुराद और औरंगजेब के बीच उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हुआ.
दारा शिकोह से टकराव: शाहजहां का सबसे बड़ा पुत्र दारा शिकोह उत्तराधिकारी बनने का प्रमुख दावेदार था और अपने पिता का प्रिय भी था. लेकिन दारा शिकोह की उदार नीतियों और सूफी विचारधारा के कारण कई मुगल सरदार उससे असंतुष्ट थे. 1658 में समूगढ़ की लड़ाई (उत्तर प्रदेश) में औरंगजेब ने दारा शिकोह को पराजित किया. इसके बाद औरंगजेब ने शाहजहां को आगरा किले में कैद कर सत्ता पर अधिकार कर लिया.
समूगढ़ की हार के बाद दारा शिकोह गुजरात और राजस्थान की ओर भाग गया. उसने एक बार फिर सेना संगठित कर औरंगजेब से भिड़ने की कोशिश की. लेकिन 1659 में अजमेर के पास देवराई में औरंगजेब ने उसे दोबारा हराया. इस हार के बाद दारा शिकोह सिंध की ओर भागा, लेकिन वहां के स्थानीय सूबेदार ने उसे धोखा देकर औरंगजेब को सौंप दिया. औरंगजेब ने उसे कैद कर दिल्ली लाया और राजद्रोही करार देकर मौत की सजा सुना दी. 30 अगस्त 1659 को दारा शिकोह को मौत के घाट उतार दिया गया.
शुजा और मुराद से निपटना: औरंगजेब ने अपने छोटे भाई शुजा (बंगाल का सूबेदार) और मुराद (गुजरात का सूबेदार) के साथ पहले गठबंधन किया और दारा के खिलाफ मोर्चा खोला. बाद में औरंगजेब ने मुराद को विश्वास में लेकर उसे धोखे से बंदी बना लिया और शुजा को भी हराकर निर्वासन में भेज दिया.
गद्दी पर बैठना: 31 जुलाई 1658 को औरंगजेब ने स्वयं को सम्राट घोषित किया और 13 जून 1659 को औपचारिक रूप से मुगल सिंहासन पर बैठा. सत्ता हासिल करने के लिए उसने अपने भाइयों और पिता को पराजित कर साम्राज्य पर पूरी तरह नियंत्रण स्थापित कर लिया.
औरंगजेब के साम्राज्य का विस्तार
औरंगजेब का साम्राज्य मुगल इतिहास में सबसे विस्तृत और शक्तिशाली था. उसने अपनी कूटनीति और सैन्य अभियानों के माध्यम से मुगल साम्राज्य को उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में तमिलनाडु तक और पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैला दिया.
उत्तर भारत
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दिल्ली, पंजाब, कश्मीर पूरी तरह से मुगल नियंत्रण में था.
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सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब के आदेश पर शहीद कर दिया गया, जिससे मुगल-सिख संघर्ष बढ़ गया.
पश्चिम भारत
मराठों से संघर्ष
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1681 में औरंगजेब ने शिवाजी के पुत्र संभाजी को पकड़कर क्रूरता से मरवा दिया.
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इसके बाद मराठों के साथ उसका संघर्ष बढ़ता गया और उसने मराठा गढ़ों को जीतने की कोशिश की, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो पाया.
राजपूतों से संघर्ष
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पहले मुगल-राजपूत संबंध अच्छे थे, लेकिन औरंगजेब की धार्मिक नीतियों के कारण मेवाड़ और मारवाड़ के राजपूतों ने विद्रोह कर दिया.
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उसने जोधपुर और मेवाड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन अंत तक ये संघर्ष चलता रहा.
पूर्वी भारत
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बंगाल, असम और उड़ीसा उसके शासन के अधीन आए.
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1661 में मीर जुमला ने असम पर आक्रमण किया, लेकिन मुगलों को सीमित सफलता मिली.
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बंगाल में प्रशासनिक सुधार किए गए, लेकिन यूरोपीय शक्तियों (पुर्तगाली, डच और अंग्रेज) का प्रभाव बढ़ने लगा.
दक्षिण भारत
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औरंगजेब ने बीजापुर (1686) और गोलकुंडा (1687) पर कब्जा कर लिया.
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दक्षिण भारत में मुगलों की शक्ति का विस्तार हुआ, लेकिन मराठा छापामार युद्ध नीति के कारण औरंगजेब की सेना को बहुत नुकसान उठाना पड़ा.
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उसने लगभग 25 वर्षों (1681-1707) तक दक्षिण में अभियान चलाया, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हुआ.
पश्चिमी सीमाएं और अफगानिस्तान
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उसने कंधार और बलूचिस्तान पर नियंत्रण बनाए रखा.
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पठानों ने 1672 में विद्रोह किया, लेकिन औरंगजेब ने इसे दबा दिया.
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उसने सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा के लिए मजबूत किले बनाए.
1707 में हुआ था निधन
औरंगजेब ने अपने शासनकाल के अंतिम 25 वर्ष दक्षिण भारत (दक्कन) में युद्ध लड़ते हुए बिताए. मराठों से लगातार संघर्ष के कारण वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गया था. लंबी सैन्य गतिविधियों और बढ़ती उम्र के कारण उसकी सेहत बिगड़ने लगी.
88 वर्ष की आयु में अहमदनगर के पास बुहरानपुर में उसकी तबीयत और ज्यादा बिगड़ गई. उनका निधन 3 मार्च 1707 को हुआ था. औरंगजेब को दौलताबाद के पास खुलदाबाद (महाराष्ट्र) में दफनाया गया. उनकी कब्र बहुत साधारण हैक्योंकि उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि उन्हें बिना किसी शाही तामझाम के साधारण मिट्टी की कब्र में दफनाया जाए.
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