FMCG सेक्टर में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले सीईओ हैं मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी
पाकिस्तान के सियालकोट में 27 मार्च 1923 को जन्में धर्मपाल का जीवन काफी संघर्ष भरा रहा. उन्होंने भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद दिल्ली में शरण ली और पेट भरने के लिए तांगा चलाने का काम शुरू किया.

नई दिल्ली: कहते हैं मेहनत से इंसान हर मुकाम हासिल कर सकता है, चाहे हालात कितने ही मुश्किल क्यों न हो. ऐसे ही एक मेहनती इंसान है मसालों की दुनिया के बेताज बादशाह धर्मपाल गुलाटी. 95 साल के धर्मपाल गुलाटी विज्ञापन की दुनिया के सबसे उम्रदराज स्टार और 'महाशियां दी हट्टी' (एमडीएच) के मालिक हैं. कभी तांगा चलाकर पेट भरने को मजबूर ये शख्स आज 2000 करोड़ रुपयों के बिजनेस ग्रुप का मालिक है. धर्मपाल गुलाटी एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) सेक्टर में सबसे अधिक कमाई करने वाले सीईओ हैं. इतना ही नहीं, शनिवार को उन्हें गणतंत्र दिवस के मौके पर पद्मभूषण से सम्मानित भी किया गया.
क्या है एफएमसीजी सेक्टर? एफएमसीजी सेक्टर में वो उत्पाद होते हैं जिनकी बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है और ये जल्दी ही बिक भी जाते हैं. सब्जियां, मसाले, जूस, साबुन, सौंदर्य प्रसाधन और रोजमर्रा की चीजें इस सेक्टर में आती हैं. इस सेक्टर में कई बड़ी कंपनियों के बीच कॉम्पटिशन होता है जिनमें आईटीसी लिमिटेड, हिंदुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड, ब्रिटानिया, नेस्ले इंडिया और डाबर प्रमुख हैं. लेकिन, इनमें मसालों की सबसे बड़ी कंपनी एमडीएच है, जिनके सीईओ धर्मपाल गुलाटी एफएमसीजी सेक्टर में सबसे ज्यादा कमाई करते हैं.
पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए थे धर्मपाल गुलाटी पाकिस्तान के सियालकोट में 27 मार्च 1923 को जन्में धर्मपाल का जीवन काफी संघर्ष भरा रहा. उन्होंने भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद दिल्ली में शरण ली और पेट भरने के लिए तांगा चलाने का काम शुरू किया. लेकिन समय बदला और उन्होंने अपने पुश्तैनी कारोबार मसाले का काम शुरू किया. दिल्ली में नौ फुट बाई चौदह फुट की दुकान खोली और आज दुनिया भर के कई शहरों में महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) के ब्रांच हैं.
पांचवीं क्लास में छोड़ दी थी पढ़ाई धर्मपाल गुलाटी ने अपने संघर्ष भरे जीवन के बारे में एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए एक बार कहा था कि मेहनत, इमानदारी और लगन की वजह से आज लंदन-दुबई में कारोबार है. उन्होंने अपने शुरुआती जीवन के बारे में कहा था, ''पांचवी क्लास में मुझे टीचर ने डांटा तो मैंने स्कूल छोड़ दिया. फिर जब मैं बड़ा हुआ तो बढ़ई का काम किया. फिर मेरे पिताजी ने अपनी दुकान पर बैठा दिया. उसके बाद हार्डवेयर का काम किया.
मेहंदी बेचते थे एमडीएच के मालिक उन्होंने बातचीत में आगे कहा, ''मुझे एक बार चोट लगी तो मैंने हार्डवेयर का काम छोड़ दिया. फिर मैं घूम-घूम कर मेहंदी का काम करने लगा.'' मेहंदी के काम के बाद फिर पिताजी के साथ मसाले का काम शुरू किया. लेकिन बंटवारे में सबकुछ खत्म हो गया. भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत की तरफ लाशों भरी गाड़ियां आ जा रही थी. मैं भी पूरे परिवार के साथ दिल्ली आ गया. तब मेरे पास मात्र 15,00 रुपये थे.''
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