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नौ महीने के तनाव के बाद जानें आखिर कैसे नरम पड़ा अड़ियल ड्रैगन? भारत ने विस्तारवादी गाड़ी पर लगाए ब्रेक

पिछले साल जून में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों की सेनाएं भारी-भरकम अस्त्र-शस्त्रों के साथ अत्यधिक ऊंचाई पर हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार हो गई थीं. दोनों पक्षों ने बड़ी संख्या में टैंक और बख्तरबंद वाहनों की तैनाती कर दी थी.

नई दिल्ली: नौ महीने के तनाव के बाद भारत और चीन की सेना सीमा पर पीछे हट रही है. सूत्रों से खबर मिली है कि इसी मुद्दें पर रक्षा मंत्री संसद में अपना बयान रख सकते हैं. चीन के रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की नौवें दौर की बैठक के बाद जो सहमति बनी थी, उसी के आधार पर दोनों देशों के फ्रंट लाइन सैनिकों का पैंगोंग-त्सो लेक के उत्तर और दक्षिण से सिंक्रोनाइज-डिसइंगेजमेंट शुरू हो गया है.

इस बयान के बाद सवाल उठ रहे हैं कि नौ महीने से भारत की सीमा पर अड़ा चीन आखिरकार अचानक कैसे मान गया. क्या अब चीन को अपनी गलती समझ आ गई है? दरअसल चीन के पीछे हटने की मुख्य वजह भारत की राजनीतिक और सैन्य इच्छाशक्ति है. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बन रहे दबाव ने भी चीन की विस्तारवादी गाड़ी पर लद्दाख में ब्रेक लगा दिए.

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ताइवान ने भी चीन को दिखाई आंख, भारत की तरह दिया जवाब दक्षिणी चीन सागर में अमेरिकी युद्धपोतों ने चीन के नजदीक आकर युद्धाभ्यास को अंजाम दिया. ये ड्रिल ताइवान को समर्थन दिखाने के लिए थी पर ड्रिल के निशाने पर सिर्फ और सिर्फ चीन था. भारत से करीब 4000 किलोमीटर दूर है ताइवान जिसका चीन के साथ रिश्ता उतना ही खराब है जितना भारत का. चीन की साजिश के बाद भी ताइवान ने तेवर कम नहीं किए बल्कि पिछले दिनों में बढ़ा दिए हैं.

ताइवान भी अब चीन को भारत की तरह जवाब दे रहा है. लद्दाख में भारतीय सेना का जज्बा और हिम्मत दुनिया के लिए मिसाल बन गई है. भारतीय सेना ने हड्डियां तक गला देने वाली ठंड में झंड़ा गाढ़कर चीन को बता दिया कि हम किसी से डरते नहीं. हमने ये भी साफ कर दिया कि चीन के पीछे हटे बिना समस्या का कोई समाधान नहीं है.

चीन के मुकाबले भारतीय सेना भी की थी बराबर की तैयारी भारतीय सेना ने सीमा पर मुकाबले की जबरदस्त तैयारी की. मतलब साफ था कि अगर चीन ने हिमाकत की तो जवाब जरूर दिया जाएगा. LAC पर जितनी सेना चीन ने उतारी उतनी ही भारत ने भी उतारी, जिसकी चीन को उम्मीद नहीं थी.

चीन की रणनीति इंच दर इंच बढ़ने की रही है. वो एक-एक इलाके पर कब्जा करता है और उस इलाके को अपना बताना शुरू कर देता है. अगर कोई देश नरम पड़ता है तो चीन आगे बढ़ जाता है लेकिन भारत ने चीन से निपटने का रास्ता दिखा दिया है वो है चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया जाना. भारत के पलटवार के बाद दुनिया भी मान रही है कि चीन पड़ोसियों के धमकाने की साजिश रचता है.

बाइडेन की ट्रंप नीति बनी नरम चीनी रुख की वजह अमेरिका विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड्स प्राइस ने कहा, ''अपने पड़ोसियों को डराने की चीन की नीति से हम चिंतित हैं. हमेशा की तरह, हम दोस्तों के साथ खड़े होंगे, हम भागीदारों के साथ खड़े होंगे, हम अपनी साझा समृद्धि, सुरक्षा और मूल्यों के लिए खड़े होंगे और, इंडो-पैसिफिक में भी यही होगा.''

चीन के रुख में नरमी की एक वजह है बाइडेन की ट्रंप नीति. चीन को उम्मीद थी कि ट्रंप के जाने के बाद अमेरिका के साथ संबंध बेहतर होंगे. लेकिन साउथ चाइना सी में बाइडेन ने युद्धपोत बढ़ाकर अपना संदेश दे दिया है कि वो चीन पर सख्त रहने वाले हैं. चीन अपने व्यापार के लिए लगातार अमेरिका से संबंध सुधारने की बात कर रहा है.

बाइडेन को लेकर चीन ने कहा कि अमेरिका-चीन को अपने देश के लोगों को बेहतर लाभ पहुंचाने के लिए विकास पर ध्यान देना चाहिए. चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, ''चीन अमेरिका के साथ एक बिना टकराव वाला संबंध विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें आपसी सम्मान हो और दोनों पक्षों की जीत हो. साथ ही हम अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और हितों का भी ध्यान रखना चाहते हैं. दोनों पक्षों को सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, मतभेदों को सुलझाते हुए मिलकर काम करना चाहिए. अमेरिका-चीन को अपने देश के लोगों को बेहतर लाभ पहुंचाने के लिए विकास पर ध्यान देना चाहिए.''

अमेरिका ने साफ कहा- बीजिंग अपनी हरकतों के लिए जिम्मेदार ट्रंप की तरह बाइडेन भी चीन की चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आए. अमेरिका ने साफ कर दिया था कि चीन को अपनी हरकतें सुधारनी होंगी. अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, ''चीन में अपने समकक्ष यांग जाएची से मैंने फोन पर बात की. मैंने साफ कर दिया है कि अमेरिका अपने हितों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध है और बीजिंग को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में उसकी हरकतों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा.''

भारक को साझीदार बता रहा अमेरिका, चीन के रुख पर रहेगी नजर अमेरिका अब भारत को सहयोगी बता रहा है. वैश्विक शक्ति बता रहा है और साथ ही चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी की बात कर रहा है. साफ है कि चीन को समझ आने लगा है कि उसकी हरकतों से युद्ध का माहौल तैयार हो रहा है जिसमें उसका सिर्फ और सिर्फ घाटा है. यही वजह है कि चीन के सुर और तेवर बदले नजर आ रहे हैं. लेकिन बड़ी समस्या ये है कि चीन की पिछली हरकतों के चलते उस पर विश्वास किया जाना मुश्किल है.

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