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'जज नेताओं और नौकरशाहों की तारीफ न करें, वरना...', सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गवई ने दी सख्त हिदायत

उन्होंने कहा कि जजों की ओर से विशिष्ट मामलों के दायरे से बाहर व्यापक टिप्पणी करना, विशेषकर लिंग, धर्म, जाति और राजनीति आदि जैसे संवेदनशील विषयों के संबंध में, चिंता का विषय है.

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई ने कहा कि जजों को नेताओं और नौकरशाहों की तारीफ नहीं करनी चाहिए. इससे न्यायापालिका को लेकर आम जनता का विश्वास प्रभावित होता है. जस्टिस गवई शनिवार (19 अक्टूबर, 2024) को गुजरात के न्यायिक अधिकारियों के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.

इस दौरान, उन्होंने कहा, 'न्यायिक नैतिकता और सत्यनिष्ठा ऐसे बुनियादी स्तंभ हैं जो कानूनी प्रणाली की विश्वसनीयता को बनाए रखते हैं. न्यायाधीश का आचरण, पीठ में रहते हुए और पीठ से बाहर, न्यायिक नैतिकता के उच्चतम मानकों के अनुरूप होना चाहिए. यदि कोई न्यायाधीश पद पर रहने के दौरान और शिष्टाचार के दायरे से बाहर जाकर किसी नेता या नौकरशाह की प्रशंसा करता है, तो इससे न्यायपालिका में आम जनता का विश्वास प्रभावित हो सकता है.'

जस्टिस गवई ने कहा, 'उदाहरण के लिए, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की आलोचना करने वाली टिप्पणी के लिए माफी मांगनी पड़ी. दूसरा उदाहरण यह है कि यदि कोई न्यायाधीश तुरंत चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे देता है, तो इससे उसकी निष्पक्षता के बारे में जनता की धारणा प्रभावित हो सकती है.'

उन्होंने कहा कि जजों की ओर से विशिष्ट मामलों के दायरे से बाहर व्यापक टिप्पणी करना, विशेषकर लिंग, धर्म, जाति और राजनीति आदि जैसे संवेदनशील विषयों के संबंध में, चिंता का विषय है. जस्टिस गवई ने विश्वास की कमी - न्यायिक संस्थाओं की विश्वसनीयता का क्षरण - सत्य के ह्रास से निपटने के तरीके और साधन, विषय पर सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बरकरार रखने का एक और सैद्धांतिक कारण यह है कि विश्वास की कमी लोगों को औपचारिक न्यायिक प्रणाली के बाहर न्याय पाने के लिए प्रेरित कर सकती है.

उन्होंने रेखांकित किया कि यह सतर्कता, भ्रष्टाचार और भीड़ द्वारा न्याय के अनौपचारिक तरीकों के माध्यम से हो सकता है. इससे समाज में कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है, जिसके कारण जनता मामले दर्ज करने और निर्णयों के खिलाफ अपील करने में हिचकिचाहट महसूस कर सकती है. जस्टिस गवई ने यह भी कहा कि लम्बी मुकदमेबाजी और धीमी गति से चलने वाली अदालती प्रक्रियाएं न्याय प्रणाली के प्रति मोहभंग पैदा करती हैं.

उन्होंने कहा कि न्याय में देरी से निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है और न्यायिक प्रणाली में विश्वास कम हो जाता है, जिससे अन्याय और अकुशलता की धारणा पैदा होती है. जस्टिस गवई ने कहा कि देरी से आरोपी को नुकसान होता है जो बाद में निर्दोष पाया जाता है और इससे कारागारों में भी भीड़ होती है. न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका दोनों से स्वतंत्र रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए जस्टिस रामाकृष्ण गवई ने कहा, 'न्यायपालिका की स्वायत्तता पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण, चाहे वह राजनीतिक हस्तक्षेप, विधायिका के अतिक्रमण या कार्यपालिका के हस्तक्षेप के माध्यम से हो, निष्पक्ष न्याय की अवधारणा को कमजोर करता है.'

उन्होंने कहा, 'संवैधानिक पीठ की कार्यवाही का वीडियो कॉन्फ्रेंस और लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से प्रसारण करना पारदर्शिता और पहुंच बढ़ाने की दिशा में कदम है, क्योंकि इससे जनता को वास्तविक समय में दलीलों और फैसलों को सुनने देखने की सुविधा मिलती है.' जस्टिस गवई ने आगे कहा, 'लेकिन अदालती कार्यवाही की छोटी क्लिप को संदर्भ से बाहर प्रस्तुत करने से न्यायाधीश के बारे में गलत धारणा बन सकती है. संदर्भ से बाहर प्रसारित की जा रही क्लिप के दुरुपयोग को रोकने के लिए अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग पर उचित दिशा-निर्देश तैयार करने की आवश्यकता है.'

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