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जयंती विशेष: प्रखर वक्ता, राजनेता और ओजस्वी कवि अटल बिहारी वाजपेयी, जिनसे विपक्ष भी हो जाता था मंत्रमुग्ध

भारत रत्न व देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का आज 96वां जन्मदिन है. उनके व्यक्तित्व को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता. एक ऐसा राजनेता जिसका सभी राजनीतिक दल सम्मान करते थे. यही नहीं अटल जी कुशल वक्ता थे. संसद में जब भी वह किसी विषय पर बोलते तो पक्ष क्या, विपक्ष क्या पूरा सदन शांत होकर उनकी बात सुनता.

आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है. साल 1924 में आज ही के दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था. वे न सिर्फ एक आजस्वी थे बल्कि एक कवि भी थे. अटल बिहारी वाजयेपी का जन्म 25 दिसबंर, 1924 को गुलाम भारत के ग्वालियर स्टेट में हुआ, जो आज के मध्यप्रदेश का हिस्सा है. दिलचस्प बात ये है कि अटल बिहारी वाजयेपी का जन्म ठीक उसी दिन हुआ, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी के पहली और आखिरी बार अध्यक्ष बने. 16 अगस्त 2018 को अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

राजनेता नहीं बल्कि एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी देश में एक अच्छे कवि के रूप में जाने जाते हैं. एक बार उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक राजनेता के रूप में नहीं बल्कि एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं. वाजयेपी ऐसे अकेले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहें जिन्होंने पूरा 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया. साल 1996 चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. राष्ट्रपति ने सबसे बड़ी पार्टी के नेता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया.

अटल बिहारी वाजपेयी के सियासी सफर पर एक नजर एक कवि पत्रकार, संघ के कार्यकर्ता के तौर पर लगातार विजय पथ पर बढ़ रहे वाजपेयी पहली बार 1957 के लोकसभा चुनाव में जीतकर संसद पहुंचे. वे 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे. वह उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात से सांसद रहे. उन्होंने साल 1991 से अपने आखिरी चुनाव तक यानि 2004 तक लखनऊ लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया.

पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी, 13 दिनों तक ही चल पाई थी सरकार

वाजपेयी 3 बार प्रधानमंत्री रहे. वह पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार सिर्फ 13 दिनों तक ही चल पाई थी. वाजपेयी 1998 में वह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, तब उनकी सरकार 13 महीने तक चली थी. 1999 में वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और पांच सालों का कार्यकाल पूरा किया. इस दौरान उन्होंने पड़ोसी देशों से रिश्ता मजबूत करने के लिए कई कोशिश की.

वाजपेयी में विदेश नीति मुद्दे की विशिष्ट योग्यता थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवधिकार कांफ्रेंस में पाकिस्तान के कश्मीर अभियान का जवाब देने के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करने के लिए चुना था.

कब-कब प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार साल 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने और फिर साल 1998 से 1999 तक यानि 13 महीने के लिए दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने. फिर आखिरी और तीसरी बार साल 1999 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहें. उन्होंने साल 2009 में राजनीति से संन्यास लिया. वहीं 25 दिसंबर, 2014 को वाजपेयी को उनके जन्मदिन पर देश का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत रत्न देने का ऐलान किया गया.

क्यों मनाया जाता है 'गुड गवर्नेंस डे' भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी की जयंती के उपलक्ष्य में हर साल भारत में 'गुड गवर्नेंस डे' मनाया जाता है. यह दिन पूरी तरह से पूर्व पीएम अटल विहारी वाजपेयी को समर्पित होता है. अटल विहारी वाजपेयी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने भारत को शिखर तक पहुंचाया. बता दें कि साल 2014 में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वर्गीय अटल विहारी वाजपेयी के सम्मान में हर साल 25 दिसंबर को 'गुड गवर्नेंस डे' मनाने की घोषणा की थी.

भारत सरकार द्वारा यह घोषित किया गया कि हर साल 25 दिसंबर (गुड गवर्नेंस डे) को पूरे दिन काम किया जाएगा. स्वर्गीय अटल विहारी वाजपेयी के कार्यकाल में बहुत से ऐसे काम हुए, जिनकी वजह से उन्हें हमेशा याद किया जाता है. भारत सरकार ने उनके मरने के बाद यह घोषणा की कि हर साल 25 दिसंबर को 'गुड गवर्नेंस डे' मनाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जाएगी.

1- मौत से ठन गई ठन गई! मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आज़मा

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए आज झकझोरता तेज तूफान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है पार पाने का कायम मगर हौसला, देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई

2- उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा कदम मिलाकर चलना होगा सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा कदम मिलाकर चलना होगा. कुछ कांटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा. क़दम मिलाकर चलना होगा. 3- हरी हरी दूब पर ओस की बूंदे अभी थी, अभी नहीं हैं ऐसी खुशियां जो हमेशा हमारा साथ दें कभी नहीं थी, कहीं नहीं हैं. क्‍कांयर की कोख से फूटा बाल सूर्य, जब पूरब की गोद में पाँव फैलाने लगा, तो मेरी बगीची का पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा, मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूं या उसके ताप से भाप बनी, ओस की बूंदों को ढूंढूं?

4-सूर्य एक सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता मगर ओस भी तो एक सच्चाई है यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं? कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊं? सूर्य तो फिर भी उगेगा, धूप तो फिर भी खिलेगी, लेकिन मेरी बगीची की हरी-हरी दूब पर, ओस की बूंद हर मौसम में नहीं मिलेगी. सोनिया गांधी के पुराने वीडियो को ट्वीट कर बोले बीजेपी अध्यक्ष नड्डा- किसानों पर कांग्रेस का सच फिर उजागर हो गया सुशासन दिवस: 19 हजार कार्यक्रम, पांच करोड़ किसान, मैदान में कई मंत्री और सीएम, जानें बीजेपी का पूरा प्लान
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